पुरातत्व के तमाम प्रमाण मिलते हैं कि वर्तमान में हरियाणा-राजस्थान से जो घग्गर नदी निकलती है उसके किनारे तमाम शहर किसी समय बसते थे. इस संस्कृति को सिन्धु-सरस्वती सभ्यता का नाम दिया गया है. जोकि पूर्णतः उचित है. लेकिन यह परिस्थिति महाभारत काल की है या उससे कुछ पहले की है—यह विचारणीय है क्योंकि ये अवशेष 2500 ईसा पूर्व के बाद के हैं. जबकि ऋग्वेद में वर्णित घटनाएँ 3000 ईसा पूर्व पहले की हैं.
ऋग्वेद की नदी स्तुति ऋचा में बताया गया की गंगा पश्चिम में बहती है.
ऋग्वेद की नदी स्तुति ऋचा के प्रथम श्लोक में कहा गया कि तीन गुणा सात यानि इक्कीस नदियाँ बहती हैं, लेकिन इस ऋचा में केवल उन्नीस नदियों के ही नाम दिए गये हैं दो नदियों के नाम नही दिए गये.
ऋग्वेद की इक्कीस और उन्नीस नदियों की पहेली
ये दो नदियाँ कौन सी हो सकती हैं? ऋग्वेद की ही एक और ऋचा में सिन्धु, सरस्वती और सरयू इन तीन नदियों का नाम आता है. अब कौतुहल की बात यह है कि इस ऋचा में सरयू नदी को बहुत अधिक महत्व दिया गया है और उसे सिन्धु और सरस्वती के बराबर रखा गया है. लेकिन नदी स्तुति ऋचा में सरयू नदी का नाम गायब है. इससे प्रतीत होता है कि सरयू नदी का नाम इस ऋचा से जबरन निकाला गया है.
ऋग्वेद की सरयू कौन सी नदी थी?
अब सोचना है कि सिन्धु, सरयू और सरस्वती नदियों की क्या विशेषता थी जिसके कारण इन्ही तीन नदियों को इस श्लोक में बताया गया? संभव है कि ये तीनो नदियाँ तीन नदियों के बेसिन थे. ऋग्वेद की सभ्यता मूलतः पश्चिम भारत में थी. इस क्षेत्र में तीन नदी बेसिन मिलते हैं—सिन्धु, घग्गर और लूनी के. सिन्धु बेसिन मे पंजाब की नदियाँ आती थी. बाकि दो बेसिन घग्गर और लूनी के थे. प्रतीत होता है की घग्गर बेसिन मे मारकंडा, सोम और यमुना नदी आती हैं और लूनी बेसिन मे सागरमती, सुखडी और अन्य नदियाँ आती हैं. ये तीन रिवर बेसिन इस ऋचा में कहें गये हो सकते हैं.
इस संभावना का एक प्रमाण यह है कि पुरातत्व में सिन्धु घाटी की जो विस्तृत सभ्यता थी उसमे तीन हिस्सों को चिन्हित किया है. जैसा की आप निम्न चित्र में देख सकते हैं.
क्या यह ऋग्वेदिक सिन्धु, सरयू और सरस्वती के बेसिन हो सकते है?
हमारा मानना है कि घग्गर बेसिन सरयू नदी का था और लूनी बेसिन सरस्वती नदी का. प्रमाण यह है कि घग्गर को पटियाला में सरयू कहा जाता है; और पुष्कर में लूनी के ऊपरी हिस्से को सरस्वती कहा जाता है.
क्या ऋग्वेद की सरयू घग्गर हो सकती है?
प्रश्न यह भी उठता है कि यदि ऋग्वेद की सरस्वती नदी, लूनी नदी थी तो क्या इसके आस-पास रिहाइश के प्रमाण मिलते हैं? नीचे दिए गए चित्र में लूनी नदी के किनारे पुरानी पुरातत्व साइट्स के नाम दिए गये हैं. यह साइट्स लगभग ईसा पूर्व की चौथी शताब्दी की हैं जिस समय ऋग्वेद की घटनायें हुई होंगी.
ऋग्वेदिक समय में लूनी-सरस्वती के किनारे रिहाइश
नदी स्तुति ऋचा के आधार पर सरस्वती को चिन्हित करने में समस्या है कि इसमें प्रथम नदी का नाम गंगा दिया गया है जबकि यह ऋचा मुख्यत: सिन्धु नदी की प्रशंसा में बनाई गई है. कहा गया है कि “हे सिन्धु नदी तुम अपने साथ इन सब नदियों के पानी को लेकर बहती हो”. प्रश्न यह उठता है कि गंगा नदी का पानी सिन्धु में कैसे गया?. गंगा नदी तो पूर्व में बहती है. भूगर्भ-वैज्ञानिकों के अनुसार कोई भी संभावना नही है कि गंगा का पानी पश्चिम में बहता हो.
ऋग्वेद की गंगा पश्चिम को कैसे बही?
नदी स्तुति ऋचा में दो नदियों के नाम गायब हैं. जिसमे एक संभवतः सरयू है. इस ऋचा में गंगा नदी जो कि पूर्व में बहती है उसे कहा गया कि वह सिन्धु में जाकर मिलती है. इसलिए नदी स्तुति ऋचा पर हमको विशेष भरोसा नही करना चाहिए.
इसके अतिरिक्त हमको ऋग्वेद के समय के तमाम जीवंत परम्पराएँ लूनी नदी के बेसिन में मिलती हैं. पुष्कर में ब्रह्मा जी के मंदिर के सामने भगवान् इन्द्र के द्वारपाल होने का चित्र है.
ब्रह्मा मंदिर के द्वारपाल के रूप में ऋग्वेद के इन्द्र?
पुष्कर में जमनी कुंड के सम्बन्ध में कहा गया है कि ऋग्वेद में यम और यमी का संवाद इस स्थान पर हुआ था.
ऋग्वेद- यम और यमी संवाद का स्थान पुष्कर, राजस्थान
उत्तर गुजरात के दैथिली में दधीचि ऋषि की मूर्ति है. मान्यता है कि इन्द्र ने दधीचि ऋषि से उनकी हड्डियाँ इसी स्थान पर मांगी थी.
ऋग्वेद के दधिची ऋषि ने अपनी हड्डियाँ इन्द्र को गुजरात में दी?
दक्षिणी राजस्थान के उनवास के लोगों का मानना है कि किसी समय यहाँ एक विशाल तालाब था और इन्द्र ने वृत्रासुर की हत्या करने के बाद यहीं आकर अपनी ब्रह्म-हत्या से छुटकारा पाया था.
उनवास में इन्द्र ने ब्रह्म हत्या से छुटकारा पाया?
इसलिए हमे ऋग्वेदिक सरस्वती के लूनी होने के तीन प्रमाण मिलते हैं. पहला यह कि ऋग्वेद में सरस्वती बेसिन लूनी से मेल खता है. दूसरा, लूनी के किनारे ऋग्वैदिक समय रिहाइश के प्रमाण मिलते हैं. तीसरा लूनी नदी के किनारे ऋग्वेद से सम्बंधित जिवंत साक्ष्य मिलते हैं. अतःऋग्वेद की सरस्वती लूनी हो सकती है. महाभारत काल के समय उस नाम को घग्गर से जोड़ दिया गया होगा.