बाइबिल | सिंधु घाटी सभ्यता | मत्सयावतार | लूनी नदी | नूह | मनु | टिगरिस | युफ्रिटिस | जेरार्ड एफ हेसल
हमारा प्रस्ताव रहा है कि बाइबिल की जड़े सिंधु घाटी सभ्यता में रही है. बाइबिल की एक प्रमुख कहानी बाढ़ की है. हिंदू धर्म में इसे मत्सयावतार के समय बताया जाता है. इस पोस्ट में हम पहले दिखाएंगे कि बाइबल में नूह और हिंदू धर्म में मत्सयावतार की कहानी एक दूसरे के समकक्ष है. इसके बाद हम दिखाएंगे कि यह यह बाढ़ लूनी घाटी में हुई हो सकती है.
पहला बिंदु है कि इस कहानी का समय दोनों धर्मों में एक ही होना चाहिए. प्रोफेसर जेरार्ड एफ हेसल ने आकलन किया है कि नूह की बाढ़ 3402 से 2462 BCE के बीच हुई होगी. हिंदू धर्म में समय को लेकर विवाद है लेकिन एस बी रॉय ने आकलन किया है कि यह 3212 से 2798 BCE के बीच हुई होगी. अतः साझा समय 3000 BCE का दिखता है.
दूसरा बिंदु वंशावली का है. बाइबल में अदम के 3 पुत्र हुए सेठ, एबल और केन. हिंदू धर्म में स्वयंभू मनु के 3 पुत्र हुए विवास्वान, वृत्त और इंद्र. बाइबिल में सेठ के पुत्र हुए नूह, उनके पुत्र हुए शेम, और उनके पुत्र हुए आरफाकसाड जिनके 15 भाई थे. हिंदू धर्म में विवास्वान के पुत्र हुए वैवस्वत मनु, उनके पुत्र हुए इक्ष्वाकु जिनके 15 भाई थे.
तीसरा बिंदु इनके नाम का है. नूह शब्द को हिब्रू में noach लिखा जाता है . बाइबिल में एक व्यक्ति का नाम manoach बताया गया है. यदि हम नूह को manoach के रूप में लिखे तो यह नाम मनु से मेल खाता है. Manu > manoach > noach > noah.
चौथा बिंदु दोनों के जीवन वृत्त में समानता है. दोनों को बाढ़ की पूर्व सूचना दी गई. दोनों की नाव बाढ़ के पानी में बहुत दिन तक रही. दोनों की नाव एक पहाड़ में जाकर टिकी. दोनों के वंशावली आरफाकसाड अथवा इक्ष्वाकु से आगे बढ़ी. इन तमाम समानताओं को देखते हुए हम कह सकते हैं कि यह दोनों एक ही व्यक्ति थे.
अदम | स्वयंभू मनु | सेठ | एबल | केन | विवास्वान | वृत्त | इंद्र | नूह | शेम | आरफाकसाड | विवास्वान | वैवस्वत मनु | इक्ष्वाकु
हमारे सामने अगला प्रश्न है कि नूह अथवा मनु कहां पर हुए? बाइबल के स्कॉलर्स का कहना है कि वह बाढ़ पुरातन इराक या सुमेर में टिगरिस और युफ्रिटिस नदियों की घाटी में हुई जबकि हमारा प्रस्ताव है यह बाढ़ सिंधु घाटी सभ्यता में लूनी घाटी में हुई.
पहला विषय है कि क्या इनके समय यानी लगभग 3000 वर्ष ईसा पूर्व इन स्थानों पर रिहाईश और बाढ़ के सबूत मिलते हैं? इस चित्र में आप देख सकते हैं कि सुमेर में 5 बड़ी बाढ़ के संकेत पाए गए हैं. पहली 2 बाढ़ 3100 और 2900 BCE के बीच हुई जो कि नूह की कहानी से मेल खाते हैं. इसी प्रकार लूनी नदी में सबसे पहली बड़ी बाढ़ लगभग 3000 BCE में आई थी.
दूसरा बिंदु बाढ़ के पानी के बहुत दिन तक टिकने का है. सुमेर की दो बड़ी नदियां युफ्रिटिस और टिगरिस का निरंतर बहाव है इसलिए बाढ़ के पानी का अधिक समय तक टिका रहना कठिन होगा. तुलना में लूनी नदी के दक्षिण में सुखड़ी नदी बहती है. इस नदी के दक्षिण-पश्चिम में एक धार है जो कि पानी को समुद्र की तरफ नहीं बहने देती है. फलस्वरुप सुखड़ी के उत्तर-पूर्व में एक कटोरे जैसा आकार बन जाता है. इस कटोरे में से बरसात के पानी के निकलने में बहुत समय लगेगा. यह नूह की बाढ़ का स्थान हो सकता है. वर्तमान में भी लूनी के उत्तर में गाले का बास गाँव में मानसून के पीछे जाने के 2 महीने बाद भी टिका रहता है क्योंकि बह कर समुद्र को नहीं जा पाता है.
सुमेर | युफ्रिटिस | टिगरिस | बाढ़ | लूनी नदी | सुखड़ी नदी | गाले का बास
तीसरा बिंदु वर्षा के समय का है. यहूदी परंपरा के अनुसार नूह की बाढ़ अक्टूबर के महीने में हुई थी. ईराक में बाढ़ का पैटर्न मई से सितंबर कम वर्षा का है. जबकि भारत में वर्षा का पैटर्न जून से सितंबर अधिक वर्षा का है. इसलिए अक्टूबर में बाढ़ का भारत में आना ज्यादा संभव है. यह भारत में वर्षा काल का अंतिम समय होता है.
चौथा बिंदु रिहाईशी का है. सुमेर में 3100 से 2900 BCE में रिहाईश और उसके बाढ़ से ध्वस्त होने के संकेत मिलते हैं. ऐसी ही परिस्थिति लूनी नदी की है. लूनी नदी के किनारे पुरातत्व साइट्स में भी 3000 BCE के समय रिहाईश पाई गई है (डिस्क्रिप्शन में श्रीधर का परचा देखें).
पांचवा बिंदु मीनार का है. बाइबल के अनुसार बाढ़ के बाद ये लोग वहां से शीनार गए और वहां उन्होंने ईटों से मीनार बनाई जिसमें वे पूजा करते थे. मीनार का बेस छोटा और ऊंचाई ज्यादा होनी चाहिए. लेकिन जिगुर्रात में बेस ज्यादा चौड़ा है और ऊंचाई कम है. इसी जिगुर्रात को स्कॉलर्स बाइबल का मीनार बताते हैं जो कि मेल नहीं खाता है. तुलना में दिया गया चित्र अनूपगढ़ के मंदिर का है. यह पकी हुई ईटों से बना है. चौड़ाई की तुलना में इसकी ऊंचाई बहुत ज्यादा है इसलिए यह बाइबल के मीनार से मेल खाता है.
छटा बिंदु ईटों का है बाइबल में कहा गया कि मीनारें पकी हुई ईटों से बनाई थी. सुमेर में अधिकतर कंस्ट्रक्शन कच्ची ईंटों से होता है. पकी हुई ईंटें केवल जिगुर्रात के नीचे के हिस्से में लगाई जाती थी. तुलना में सिंधु घाटी सभ्यता में पूरे शहर ही पकी हुई ईटों से बनते थे.
सांतवा बिंदु सुमेर की गिलगामेश की कहानी का है. उसमें बताया गया कि गिलगामेश नाम का एक राजा सुमेर से डीलमुन गया. वहां पर उसकी मुलाकात उतनापिष्टिम से हुई जिसने उसे बाढ़ के बारे में बताया. उस बाढ़ की कहानी सुमेर में बताई गई; और दूसरा कि वह कहानी स्वयं डीलमुन में घटित हुई. सुमेरी भाषा के जानकार शमूएल नोआह क्रेमर के अनुसार डीलमुन नाम से सिंधु घाटी को जाना जाता था. अतः यदि हम यह माने कि वह बाढ़ डीलमुन में हुई तो वह सिंधु घाटी में हुई.
आठवां बिंदु नामों का है. बाइबल में कहा गया कि बाढ़ के बाद नूह की नाव अरारत पहाड़ पर जाकर टिकी थी. लूनी के दक्षिण में स्थित पहाड़ियों को अरावली कहा जाता है जो कि अरारत से मेल खाता है.
नवां बिंदु लूनी नदी के दक्षिण जालौर नाम का शहर स्थित है. जालौर का अर्थ हुआ जल +उर या जल का शहर जो कि बाढ़ से मेल खाता है.
अंतिम बिंदु जीवंत परंपराओं का है. हिंदू संस्कृति में पहले तीन अवतार मछली, कछुआ और वराहा के हुए. इन तीनों अवतारों का लूनी के क्षेत्र में महत्व है. सुखड़ी नदी के किनारे गौतमजी मंदिर में चित्र लगा है जिसमें मीना लोग भगवान मत्स्य की पूजा कर रहे हैं. मीना नाम मीन से बना है. मीन यानी मत्स्य यानी यानी मत्स्य अवतार. अतः उस क्षेत्र का मत्सयावतार से संबंध बनता है. उस क्षेत्र में लगभग हर मंदिर में दरवाजे के सामने कछुए की मूर्ति लगी रहती है. भीनमाल में वराह भगवान का मंदिर है. वहां के पुजारियों का कहना है कि यह वही स्थान है जहां वराह भगवान अवतरित हुए थे.
हिंदू संस्कृति | मीना | मीन | मत्सयावतार | मछली | कछुआ | वराहा | सुखड़ी नदी | लूनी नदी | गौतमजी मंदिर | भगवान मत्स्य
अतः नूह और मनु कि कहानी लूनी घाटी से ज्यादा मेल खाती है और टिगरिस और युफ्रिटिस घाटी से कम. मेरा मानना है कि मत्सयावतार अथवा नूह की बाढ़ लूनी घाटी में हुई थी. समय क्रम में यहां से यह लोग पश्चिम की तरफ गए और अपने साथ इस कहानी को लेकर गए. हो वहां पर यह कहानी बाइबल में समावेशित हो गई.