इस समय हमारा देश नागरिकता संशोधन कानून में उभल रहा है. हमारे संविधान का अनुच्छेद 14 स्पष्ट कहता है कि धर्म के आधार पर भारत में किसी भी व्यक्ति के साथ भेदभाव नहीं किया जायेगा.
डॉ. भीमराव आंबेडकर भारतीय संविधान के निर्माता
लेकिन नागरिकता संशोधन कानून हिंदुओं, सिख, पारसी, बौद्ध और ईसाई मात्र को छुट देता है. इस कानून में व्यवस्था है कि यदि इन धर्मो का पालन करने वाला कोई व्यक्ति 2014 से पहले देश में प्रवेश किया है तो उसे गैर क़ानूनी आगंतुक नहीं कहा जायेगा. उसे इस देश की नागरिकता प्रदान की जाएगी.
नागरिकता संशोधन अधिनियम मुसलमानों को बाहर करता है
यदि कोई व्यक्ति मुस्लिम धर्म को मानता है तो उसको गैर कानूनी घोषित कर दिया जायेगा. उसे या तो अपने देश वापस भेज दिया जायेगा या अलग स्थान पर रखा जायेगा और उसके विरुद्ध क़ानूनी कार्यवाही की जाएगी.
अहमदिया मुस्लिम समुदाय के मसीहा हजरत मिर्ज़ा मसरूर अहमद
प्रश्न है कि यदि हम मानते है कि सम्पूर्ण सृष्टि परमात्मा में ही स्थित है, तो अहमदिया जैसे लोग–जिन पर पाकिस्तान में भी अत्याचार किए जाते है–उन्हें हम क्यों संक्षरण नहीं देना चाहते हैं? उन्हें भी प्रताड़ित किया जा रहा है जिस प्रकार हिन्दू अथवा बौद्ध को. इसलिए नागरिकता संशोधन कानून पर पुनर्विचार करना जरुरी है.
अनुच्छेद 14 में दिया गया संरक्षण अनुच्छेद 51A से सीमित है
समस्या यह है कि संविधान के अनुच्छेद 51A स्पष्ट रूप से कहता है कि देश के हर नागरिक का दायित्व होगा की वह सब धर्मो के बीच में भाईचारा या प्रेम के साथ व्यवहार करें. यहां पर हमारे धर्म शास्त्रों के कई वक्तव्य आड़े आते हैं. जैसे मनुस्मृति में कहा गया है कि जो व्यक्ति शास्त्रों को बदनाम करता है वह नास्तिक जैसा है और उसे अपमानित करना चाहिए.
मनुस्मृति में नास्तिक की निंदा संविधान के विपरीत है.
इसी प्रकार बाइबिल में ईसामसीह कहते है कि कोई भी व्यक्ति जो होली स्पिरिट यानी पवित्र आत्मा के विरुद्ध बोलता है उसे माफ़ नहीं किया जायेगा.
बाइबल होली स्पिरिट के खिलाफ बोलने वालों को दोषी मानती है.
इसी प्रकार कुरआन में कहा गया कि जो अल्लाह के संकेतों का उपमान करते हैं उनसे अल्लाह घृणा करते हैं.
कुरआन में कहा गया कि जो अल्लाह का उपमान करते हैं उनसे अल्लाह घृणा करते है.
हमारे शास्त्रों के ये वक्तव्य संविधान के धारा 51A के पूर्णतः विरुद्ध है. धारा 51A के अनुसार धर्मो के बीच प्रेम और सामंजस्य बनाया जायेगा. लेकिन ये वक्तव्य कहते हैं कि दूसरे धर्मों का आप अपमान करेंगे विशेषकर नास्तिकों का. हमारी परम्परा में नास्तिकों को भी एक धर्म जैसा सम्मान दिया गया है. हमारे यहां लोकायत विचारधारा है जोकि भौतिकवाद से जुड़ी हुई है और जो इश्वर के अस्तित्व को नहीं मानती है–उसका भी हम सम्मान करते है. नास्तिक होना बुरा नहीं है. लेकिन हमारे शास्त्रों में ये जो वक्तव्य हैं वे घृणा पैदा करते हैं.
सिगमंड फ्रायड और कार्ल गुस्टाफ युंग ने दर्शाया है कि हमारा अचेतन ही हमारी बुद्धि को चलाते जाता है.
इस समस्या का एक हल यह सुझाया जाता है कि धार्मिक विश्वास व्यक्तिगत मामला है और हमे इसे कानून के दायरे में नहीं लाना चाहिए. यानि व्यक्ति का एक क़ानूनी रूप है जोकि देश के संविधान से निर्धारित होता है और उसका एक व्यक्तिगत रूप है जो उसके धर्म से संचालित होता है. मैं इस भेद को नहीं मानता हूँ. मनोविज्ञान के वैज्ञानिक जैसे सिगमंड फ्रायड और कार्ल गुस्टाफ युंग ने बहुत अच्छी तरह प्रमाणित किया है कि हमारा अचेतन यानि हमारी विचारधारा या हमारा विश्वास ही हमारी बुद्धि को चलाता है. हम जो सोचते है और जो बाहरी व्यवहार करते हैं उसमे मन में बैठे विचारों का बड़ा प्रभाव होता है. अतः यह सोचना कि मन में हम नास्तिक की घृणा करेंगे और कानून में उसके साथ समन्वय करेंगे यह बात चलेगी नहीं.
अचेतन में रहने वाले धार्मिक विचार हमारे व्यवहार को प्रभावित करते हैं.
इसका असल उपाय यह है कि हम अपने धर्म शास्त्रों के इस प्रकार के वक्तव्यओं को पुनर्परिभाषित करें और उन्हें अपने संविधान की धारा 51A के अनुरूप समझे.
जैसे कि मनुस्मृति कहती है कि वह व्यक्ति जो धर्मशास्त्रों को बदनाम करता है उसका अपमान करना चाहिए. इसे हम इस प्रकार से समझे कि जो धर्मशास्त्रों की पुस्तकों को आग लगा दे या पैर के नीचे दबा दे तो उसके द्वारा शास्त्रों को बदनाम किया गया मानना चाहिए. लेकिन यदि कोई व्यक्ति कहे कि वह धर्म शास्त्र उचित नहीं है, गलत है या उसमे कोई कमी है तो उसने धर्म शास्त्र को बदनाम किया नहीं मानना चाहिए.
जो धर्मशास्त्रों को बदनाम करता है उसे अपमानित करना चाहिए
अथवा बाइबिल में जब कहा गया कि जो व्यक्ति होली स्पिरिट यानी की पवित्र आत्मा के विरुद्ध बोलता है उसे माफ़ नहीं किया जायेगा, तो विरुद्ध बोलने को हम इस प्रकार से समझे की व्यक्ति यदि पवित्र आत्मा के अस्तित्व को नकारे तो उसे पवित्र आत्मा के विरुद्ध बोलना नहीं मानेगे. लेकिन यदि कोई व्यक्ति कहे की पवित्र आत्मा दुष्ट है तो उसे हम माफ़ नहीं करेंगे.
पवित्र आत्मा के विरुद्ध बोलना गाली देने जैसा है.
इसी प्रकार कुरआन कहती है कि जो अल्लाह के संकेतों को नहीं मानता उससे अल्लाह घृणा करते हैं. इसे इस प्रकार परिभाषित करें कि सम्पूर्ण मानव अल्लाह के हैं. यदि कोई सब मनुष्यों का सम्मान करता है यदपि वह सुप्रीम पॉवर या अल्लाह के अस्तित्व को नहीं मानता तो उससे अल्लाह घृणा नहीं करेंगे चूँकि वह अल्लाह को ही मानवता के रूप में देखता है.
जो मानवता का अपमान करते हैं उनसे अल्लाह घृणा करते हैं
यदि हम धर्मशास्त्रों को इस प्रकार से पुनर्भाषित करें तो संविधान के अनुच्छेद 51 और 14 के बीच के अंतर्विरोध को दूर कर सकते हैं और नागरिकों के मन में सौहार्द की भावना ला सकते हैं
अनुच्छेद 14 और 51 के बीच सामंजस्य के लिए धर्म शास्त्रों को पुनर्परिभाषित करना जरूरी है.
सरकार को एक आयोग बनाकर सभी धर्मग्रंथों के जो वक्तव्य धारा 51A के विपरीत दिखते हैं उनको पुनर्परिभाषित करना चाहिए. जो व्यक्ति हमारे देश की नागरिकता हासिल करना चाहते हैं उनसे हम कहे कि आप अपने धर्म के इन वक्तव्यों का इस प्रकार की विवेचना को स्वीकार कीजिए. यदि आप इस विवेचना को स्वीकार नहीं करेंगे तो हम आपको नागरिकता नहीं देंगे क्योंकि ये वक्तव्य हमारे देश की विचारधारा के विपरित है. यदि हम यह परिवर्तन करें तो नागरिकता संशोधन कानून में मुसलमानों को भी सम्लित कर सकते हैं. जो मुसलमान कुरआन की पुनर भाषा स्वीकार करें उन्हें भी भारत को नागरिकता देनी चाहिए.
इसका यह अर्थ नहीं कि इन देशों के हर व्यक्ति को भारत में नागरिकता हासिल करने का अधिकार हो. नागरिकता हासिल करने की तीन शर्ते होनी चाहिए. पहली यह कि आपको अपने देश में प्रताड़ना दी जाती हो जिसके कारण आप भागकर भारत में आये हो. दूसरी यह कि आप अपने धर्म ग्रंथों का सौहार्दपूर्ण पुनर विवेचन स्वीकार करे. तीसरी यह कि आप भारत के उत्थान के लिए योगदान कर सके.
इन शर्तों को लगाने के बाद हमें नागरिकता संशोधन कानून को मुसलमान भाइयों के लिए खोल देना चाहिए. हमारी संस्कृति में सम्पूर्ण विश्व को परमात्मा का घर माना गया है. हम इस अनुसार आचरण करे. हम सभी धर्मों का अंदर से पुनर उत्थान करे. ऐसी पुनर्विवेचना से हम सम्पूर्ण विश्व को सौहार्दपूर्ण बनाने की ओर बढ़ा सकते हैं. इस महान कार्य में भारत का महत्वपूर्ण योगदान हो सकता है.