दुनिया भर के डॉक्टर कडूसियस के सर्पयुक्त चिन्ह को स्वास्थ्य का चिन्ह क्यों मानते हैं? इस चिन्ह में दो सांप एक लट्ठ के चारों तरफ घूमते हुए दिखते हैं और ऊपर दो पर है. सांप एक जहरीला जानवर है और उसको स्वास्थ्य के संकेत के रूप में दिखाना एक आश्चर्य की बात है. पश्चिमी डॉक्टर इस चिन्ह के उपयोग को अकसर गलत मानते हैं लेकिन इसके पीछे एक रहस्य है जो हमारे हिंदू नाड़ी विज्ञान से सामने आ जाता है. हिंदू मनोविज्ञान के अनुसार हमारे मेरुदंड के दोनों तरफ दो नाड़ियां है– ईडा और पिंगला. जो मुख्य नाड़ी बीच में है उसे हम सुषुम्ना कहते हैं. इन तीन नाड़ीयों के माध्यम से हमारे मस्तिष्क और शरीर के विभिन्न अंग जैसे हाथ, पैर, हृदय, गुर्दा इत्यादि के बीच में निर्देशों का संचार होता है. पश्चिमी वैज्ञानिक भी मानते हैं कि हमारा जो मनोवैज्ञानिक सिस्टम है उसमें बीच में एक स्पाइनल कॉर्ड है और उसके दोनों तरफ दो गैंग्लियन की नाड़ियां है जो बिल्कुल हमारी ईडा और पिंगला के समान है. जिस प्रकार हमारे यहां इन दोनों नाड़ियों में एक गर्म और ठंडी है उसी प्रकार पश्चिमी विज्ञान में भी दोनों गैंग्लियन में एक गर्म और ठंडी होती है. हमारा मानना है यह जो तीन रास्ते है ये हमारे शरीर के के लिए बहुत महत्वपूर्ण है. यदि हमारे मस्तिष्क के निर्देश हमारे अंगों तक पहुंच जाए और अंदर को जो सुख दुख है इनकी सूचना हमारे मस्तिष्क को मिल जाए तो हम अपने शरीर को स्वस्थ रख सकते हैं जैसे मान लीजिए आपका बी0पी0 बड़ा हुआ है. अब हृदय की जो चाल है वह आपके मस्तिष्क तक पहुंच जाए तो आपका मस्तिष्क आपके हृदय को प्रेरित कर सकता है कि आप विराम करें. यदि यह सूचना मस्तिष्क तक नहीं पहुंचती है तो आप विराम नहीं करेंगे और आपका शरीर और अधिक बिगड़ने लगेगा इसलिए जो सांप को स्वास्थ्यवर्धक बताया गया है वह इसके भौतिक रूप के कारण नहीं बल्कि इसके माध्यम से जो मनोवैज्ञानिक सूचनाओं का आदान-प्रदान होता है उसे दर्शाया गया है. इसलिए यह सही बैठता है इसलिए सांप को स्वास्थ्यवर्धक दिखाना सही बैठता है.
बाइबल में सांप के इस प्रकार के दर्शन के कई उदाहरण है. पहला उदाहरण गार्डन आफ ईडन का है. कहा गया है की एडम और ईव गार्डन का ईडन में रहते थे. उनको ऐसा आभास था कि भगवान ने उनको कहा था कि ट्री आफ नॉलेज का फल वे न खाएं. लेकिन ईव को एक सांप ने कहा कि “क्या वास्तव में भगवान ने कहा है कि इस पेड़ के फल को मत खाओ?” सांप के इस कथन से प्रेरित होकर ईव और एडम ने उस फल को खाया, उनकी आंखें खुल गई, और सृष्टि का विस्तार हुआ. प्रश्न है कि यह सांप क्या था? हमें मालूम है कि सांप बोलते नहीं हैं. सांप ने मुंह से आवाज निकाल कर ईव को यह संदेश दिया हो ऐसा तो संभव नहीं दिखता है. मेरा यह मानना है कि यह जो कहा गया कि सांप ने बोला, वह वास्तव में अंतर्मन की ध्वनि थी जो आपके मेरुदंड में सुषुम्ना नाड़ी में निहित अंतर विचार थे.यह विचार बाहर आये. जैसे आपके सामने एक टेबल पर सेब रखा हुआ है और आपको एक गलत विश्वास हो गया कि आपकी मां ने आपको कहा है कि इस फल को मत खाओ. लेकिन यदि आपको सही सूचना मिल गई की माँ ने ऐसा नही कहा तो आप सेब को खाएंगे और आपका स्वास्थ्य ठीक हो जाएगा. इस प्रकार यह जो गार्डन आफ ईडन का सांप है वह आपके अचेतन का प्रतीक है.
भगवान ने एडम और ईव गार्डन को कहा कि ट्री आफ नॉलेज का फल वे न खाएं. |
इसके बाद दूसरा उदाहरण मिलता है कि एक समय नबी मूसा पहाड़ पर भगवान से बात कर रहे थे. भगवान एक जलती हुई झाड़ी में देखा. भगवान ने मूसा से कहा कि आप वापस मित्रसायिम जाइए और अपने कुनबे के लोगों को वहां पर जो उनकी दुखद स्थिति है उनको बाहर निकाल कर लाइए. मूसा ने भगवान से पूछा कि यह बताइए कि वह लोग मेरे ऊपर विश्वास क्यों करेंगे? तब भगवान ने कहा मैं तुमको इसका प्रमाण देता हूं भगवान ने मूसा से कहा कि तुम अपनी लाठी को जमीन पर फेंक दो. जैसे ही मूसा ने लाठी को जमीन पर फेंका वह सांप बन गया. उसके बाद भगवान ने कहा अब इस सांप को इसकी पूछ से पकड़ लो. जैसे ही मूसा ने उस सांप को पूछ से पकड़ा वह पुनः एक लाठी बन गया. प्रश्न है कि यह क्या दर्शाता है? मेरा सुझाव है कि लाठी मूसा के अचेतन का भौतिक प्रतिक है.और जब आपका अचेतन चलायमान हो जाता है तो वह लट्ठ सांप के रूप में दर्शाया गया है. भगवान मूसा को कह रहे थे कि तुम चिंता मत करो. तुम्हारी सुषुम्ना में तुम्हारी आंतरिक शक्ति है वह जागृत हो जाएगी और उसके माध्यम से तुम लोगों को विश्वास में ले सकते हो.
नबी मूसा पहाड़ पर भगवान से बात कर रहे थे. |
इसके बाद मूसा मित्रसायिम गए. वह वहां के राजा फिरौन से बोले कि मेरे कुनबे को रेगिस्तान में भगवान की पूजा करने के लिए जाने दो. फिरौन ने उन्हें जाने नहीं दिया तो भगवान ने मूसा को कहा कि तुम फिरौन के सामने अपने लट्ठ को भूमि पर फेंक दो. मूसा ने वैसा ही किया और उनका लट्ठ सांप के रूप में चलने लगा. तब फिरौन ने अपने जादूगरों को बुलाया और उन्होंने भी अपने लट्ठों को फेंका. दोनों पक्षों के सांपों में युद्ध हुआ और मूसा के सांप ने जादूगरों के सांपों को पराजित कर दिया. पुनः प्रश्न है कि इसका अर्थ क्या है? मैं मानता हूं कि जब मूसा ने अपने लट्ठ को जमीन पर फेंका और वह सांप बन गया इसका अर्थ है कि उनके सुषुम्ना में जो चक्र बताए गए हैं वे जागृत हो गए. इसी प्रकार फिरौन के जादूगरों के चक्र जागृत हो गए. दोनों पक्षों के इन चक्रों के बीच में मनोवैज्ञानिक युद्ध हुआ. यह सांपों को युद्ध के रूप में दिखाया गया है. मूसा के सांप ने जादूगरों के सांपों को खा लिया.
तीसरा उदाहरण उस समय का है जब मूसा हिब्रू लोगों को मित्रसायिम से इजराइल लेकर जा रहे थे. रास्ते में बहुत कठिनाइयां आई और वे लोग पूरी तरह हताश हो गए. उन्हें सांप ने काटा. तब भगवान ने मूसा से कहा की तुम एक कांसे का सांप बनाओ और उसको एक लाठी पर ऊपर टांग दो. बाइबल कहता है कि जिन हिब्रू लोगों ने उस कांसे के सांप को देखा वे जीवित रहे और जिन्होंने उस सांप को नहीं देखा वे मृत्यु को प्राप्त हुए. मेरी समझ से इस कहानी का रहस्य इस प्रकार है. जब हिब्रू लोगों के हताश होने का अर्थ यह हुआ कि उनकी सुषुम्ना नाड़ी में जो संदेश आते जाते थे वे अवरुद्ध हो गए. वे सब चक्र अलग-अलग हो गए. वे कमजोर हो गए और इससे उनके शरीर के सब अंग अलग-अलग काम करने लग गए. इसके बाद जब उन्होंने उस कांसे के सांप को देखा तो मूसा ने उनसे कहा होगा कि इस सांप में आपनी सुषुम्ना नाड़ी को देखो और जैसे सांप का पूरा शरीर जुड़ा हुआ है इसी तरह अपनी सुषुम्ना नाड़ी के चक्रों को आपस मे जुड़ा हुआ देखो. इस प्रकार सुषुम्ना के चक्रों के बीच मनोवैज्ञानिक संचार शुरू हो गया और वे जीवित हो गए. लेकिन जिन्होंने इस सांप को नहीं देखा, इसके पीछे के रहस्य को नहीं समझा, उनका शरीर कमजोर हो गया क्योंकि मस्तिष्क और अंगों के बीच आदेशों का आदान-प्रदान बंद हो गया. सांप का यह मनोवैज्ञानिक पक्ष बाइबल में लिखा हुआ नहीं है. इसे हमे समझना पड़ता है. प्रतीत होता है कि समय क्रम में हिब्रुओं द्वारा खंबे पर सांप को लटकाने का रिवाज की प्रथा चालू हो गइ थी लेकिन वह लोग इस बात को भूल गए कि सांप केवल सुषुम्ना नाड़ी में मनोवैज्ञानिक संचार का संकेत मात्र है. इसलिए वहां के राजा हेज़कील ने खंबो पर लगे हुए सांपों को तुड़वा दिया क्योंकि वे लोग इसे सिर्फ पत्थर के सांप के रूप में देख रहे थे और उनका जो मनोवैज्ञानिक रहस्य है उसे भूल गए थे.
बाइबल में अगला संदर्भ प्रॉफेट ईसाया के समय का मिलता है. उन्होंने अपने ध्यान में एक सर्प को अपने ऊपर देखा जिसके छः पर थे. ऐसा समझ आता है कि यह छः सर्प हमारी सुषुम्ना में छः चक्रों के चिन्ह है और इस बात को उन्होंने सांप के छः पर के रूप में कहा था इन चक्रों से निकल रही मनोवैज्ञानिक तरंगों को पंख के रूप में बताया गया होगा.
आखरी संदर्भ कडूसियस का है. ग्रीस में एक देवता हुए हर्मिस. उन्हें दैविक शक्तियां प्राप्त थी. वे दृश्य और अदृश्य के बीच अथवा चेतन और अचेतन के बीच संबंध स्थापित कर पाते थे. उनका जो चिन्ह कडूसियस था जैसे की आप इनके हाथ में देख सकते हैं यह कडूसियस चेतन और अचेतन, एवं दृश्य और अदृश्य को जोड़ता है. इस प्रकार कडूसियस स्वास्थ्य का चिन्ह बन गया और उस समय से लेकर आजतक हमारे डॉक्टरों ने इस स्वास्थ्य का चिन्ह बना दिया.
ग्रीस के देवता हर्मिस का चिन्ह कडूसियस था. |
यह कहने की जरूरत नहीं है कि हिंदू व्यवस्था में सर्प का बहुत महत्व है. भगवान शिव अपने गले के चारों तरफ सर्प को लपेट कर रखते हैं जिसका अर्थ है कि सुषुम्ना में जो चक्र हैं उन पर भगवान शिव नियंत्रण है. भगवान शिव जैसा चाहते हैं वैसा ही यह चक्र करते हैं.
भगवान विष्णु के लिए कहा गया कि ये क्षीरसागर में शेषनाग के ऊपर शयन करते हैं यह क्षीरसागर एक मनोवैज्ञानिक संसार है और शेषनाग सुषुम्ना नाड़ी है भगवान विष्णु का शेषनाग पर शयन करना इस बात को दिखता है उनकी सम्पूर्ण मनोवैज्ञानिक सृष्टि से मेल खाती है. सम्पूर्ण मनोवैज्ञानिक सृष्टि पर इनका नियंत्रण है.
भगवान कृष्ण का कालिया नाग का जो विवरण है वह भी इसी से मेल खाता है. कृष्ण की सुषुम्ना नाड़ी इतनी नियंत्रित एवं चलायमान थी कि उससे कालिया नाग नियंत्रित हो गया.
हिंदू मान्यता में सर्प का विशेष महत्व है. |
इन उदाहरणों का सारांश है कि हमारे शरीर के मेरुदंड में जो सुषुम्ना नाड़ी है उसके चक्र संसार से जुड़े हुए हैं और वह हमारे शरीर के अंगों को भी एक दूसरे से जोड़ते हैं और उनके बीच यदि संचार सही रहता है तो मनुष्य का स्वास्थ्य, जीवन, समृद्धि सब उपस्थित हो जाता है.
भारतीय हमारी संस्कृति में इस विषय के केवल मनोवैज्ञानिक पक्ष को देखा गया है जबकि पश्चिमी व्यवस्था में इसके केवल भौतिक स्वरूप को देखा गया है. क्योंकि उन्होंने केवल भौतिक स्वरूप को देखा और मनोवैज्ञानिक स्वरूप का उन्हें ध्यान नही था इसलिए उन्हें समझ नहीं आता है कि सांप को एक स्वास्थ्य के चिन्ह के रूप में क्यों लिया गया.
प्रश्न उठता है कि भारतीय मनोविज्ञान की यह समझ पश्चिमी व्यवस्था में कैसे पहुंची. मेरा मानना है कि पश्चिमी व्यवस्था के मूसा वही व्यक्ति हैं जिन्हें हिंदु भगवान कृष्ण के रूप में जानते हैं. महाभारत के मौसल पर्व में विवरण आता है की यादवों के संघार के बाद कृष्ण किसी अज्ञात देश को चले गए थे. मेरा मानना है कि यह अज्ञात देश इसराइल था और कृष्ण अपने साथ सांपों की ये कहानियां पश्चिम को ले गए और वे बाइबल में जोड़ दी गईं वहां यह डॉक्टरों का चिन्ह बन गया.
अतः समय आ गया है कि हम अपनी संस्कृति के इस विज्ञान को समझें और पश्चिम को भी समझाएं की आप कडूसियस को जो मात्र भौतिक चिन्ह समझ रहे हैं यह वास्तव में मनोवैज्ञानिक सर्प है.