वर्तमान में फ्रांस समेत तमाम पश्चिमी देशों में इस्लाम के विरुद्ध मुहिम चल रहा है. इस मुहिम की शुरुआत फ्रांस में सैमुअल पेटी नामक एक शिक्षक का सर कलम किए जाने से शुरू हुई है.
सैमुअल पेटी
पेटी ने मोहम्मद साहब का एक नग्न चित्र अपने छात्रों को दिखाया. उनका उद्देश्य “फ्रीडम ऑफ स्पीच” यानी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को चित्रित करना था. इससे आहत होकर एक मुसलमान भाई ने उनका सर कलम कर दिया. इस प्रकरण में दोनों तरफ ही अति हुई है. सैमुअल पेटी के लिए जरूरी नहीं था कि किसी दूसरे धर्म को दुख देने वाले मोहम्मद साहब के नग्न चित्र को दिखाएं और मुसलमान भाई के लिए यह जरूरी नहीं था कि कानून को अपने हाथ में लेकर उनका सर कलम कर दें. लेकिन दोनों तरफ जो आक्रामकता दिखती है उसकी जड़े गहरी है. इस पोस्ट में हम यह दिखाएंगे पश्चिम तथा इस्लाम दोनों एक ही वृक्ष के दो शाखाएं हैं और इनकी जड़े वास्तव में एक ही हैं.
18 वीं सदी में फ्रांस की क्रांति की उद्घोषणा में परम शक्ति को माना गया. साथ में कहा गया कि मनुष्य स्वतंत्र पैदा होता है. इस स्वतंत्रता का उपयोग संपूर्ण पश्चिमी सभ्यता ने मूल रूप से खपत बढ़ाने के लिए किया है. पश्चिम ने माना है कि जितनी खपत करेंगे उतना ही मनुष्य सुखी होगा.
अब्राहम मास्लो द्वारा बताए गए मनुष्य की इच्छाओं के सात स्तर.
इस विचारधारा का आधार मनोवैज्ञानिक अब्राहम मास्लो का चिंतन माना जा सकता है. मासलो ने बताया कि मनुष्य की इच्छाओं में सात स्तर होते हैं. सबसे नीचे के दो स्तर भौतिक जीवन और सुरक्षा हैं. इनके ऊपर अन्य पांच स्तर हैं. सबसे ऊपर आत्म-ज्ञान को उन्होंने माना है. उनके चिंतन के अनुसार भौतिक जरूरतों को पूरा करना और सुरक्षित रहना ऊपर चढ़ने की पहली कड़ी है. इस दृष्टि से फ्रांस की उद्घोषणा में जो मनुष्य को स्वतंत्रता दी गई कि वह खपत बढ़ाए–यह एक सार्थक विचार है. जब मनुष्य की भौतिक जरूरतें पूरी हो जाएंगी तब ही वह उनसे ऊपर सोच सकेगा. सीमित मात्रा में खपत करने के बाद मनुष्य ऊपर की इच्छाओं की तरफ बढ़ गया तब खपत सार्थक है. लेकिन यदि मनुष्य खपत करने के बाद उत्तरोत्तर अधिक खपत में ही उलझा रहे तो यह खपत नकारात्मक हो जाती है. इससे पर्यावरण नष्ट होता है और दूसरे मनुष्यों को भी हानि पहुंचती है. इस दृष्टि से भारतीय संस्कृति में कहा गया की वासनाओं की जितनी पूर्ति करेंगे उतनी वासनाएं बढ़ती जाती हैं जैसे आग में घी डालने से अग्नि बढ़ती जाती है.
ब्रुनेल यूनिवर्सिटी लंदन के ब्रायन मोरोस कहते हैं कि “हम स्वतंत्रता से थक जाते हैं.”
यूनिवर्सिटी ऑफ़ लंदन के ब्रायन मोरोस का कहना है कि “हम स्वतंत्रता से थक जाते हैं और हम उस प्रकार का जीवन नहीं जी पाते जैसा हम जी सकते हैं. नीचे की इच्छाओं की पूर्ति के बाद ऊपर की इच्छाओं तक बढ़ना बहुत कठिन होता है.” इसलिए पश्चिमी सभ्यता की वस्तु स्थिति यह है कि मनुष्य नीचे की इन्हीं दोनों इच्छाओं में उलझा हुआ है और इन्हीं खपत में फंसा हुआ है और संपूर्ण पश्चिमी सभ्यता कोरे भोगवाद में उलझी हुई है.
सैय्यद मुजतबा मूसवी लारी कहते हैं कि “विज्ञान वैभव प्रदान करता है परंतु आनंद प्रदान नहीं करता है.”
इसी क्रम में ईरान के शिया विद्वान सैय्यद मुजतबा मूसवी लारी कहते हैं कि “विज्ञान वैभव प्रदान करता है परंतु आनंद प्रदान नहीं करता क्योंकि आनंद उसके दायरे के बाहर है.” इस्लाम द्वारा पश्चिमी सभ्यता की गई यह आलोचना मूल रूप से सही है और इस पर पश्चिम को ध्यान देना चाहिए.
मनोवैज्ञानिक कार्ल युंग कहते है “मनुष्य का अचेतन सम्पूर्ण मनुष्यों के अचेतन से जुड़ा हुआ है.”
इस दिशा में मनोवैज्ञानिक कार्ल युंग हमारी मदद करते हैं. उनका कहना है कि हर मनुष्य के अंतर्मन में एक अचेतन होता है और यह अचेतन मनुष्य के सामूहिक अचेतन से जुड़ा होता है. जैसे आज “वर्ल्ड वाइड वेब” ने आपस में सबको बौद्धिक स्टार पर जोड़ रखा है, एक जाल सा बना हुआ है, उसी प्रकार का एक अचेतन जाल संपूर्ण मनुष्यों के बीच में होता है. इसके आगे वे कहते हैं कि यह जो संपूर्ण जाल है यह एक स्वतंत्र सत्ता का रूप ले लेता है और इस स्वतंत्र सत्ता द्वारा बहुत हद तक मनुष्य संचालित होता है. इस सामूहिक अचेतन द्वारा मनुष्य के मन में प्रेरणाएं डाली जाती हैं जिन की पूर्ति के लिए वह समाज में सक्रिय हो जाता है. इसलिए पश्चिमी सभ्यता के लिए जरूरी हो गया है कि वह असीमित खपत के नरक से निकले और मनुष्य की बुद्धि को उसके अचेतन से जोड़ें अथवा सम्पूर्ण मानवता से जोड़े. यदि मनुष्य अपने अचेतन को समझ कर अचेतन की इच्छाओं के अनुसार सीमित खपत करे तो उसका बाहरी कार्य वह समस्त मनुष्य जगत के अचेतन जाल से जुड़ जाएगा. व्यक्तिगत मनुष्य और संपूर्ण मनुष्य सृष्टि के बीच सामंजस्य बन जाएगा. इसलिए इस्लाम की दृष्टि से पश्चिम सभ्यता की इस आलोचना के अनुसार सुधार करने की जरूरत है.
अब हम विचार करें कि पश्चिम किस दृष्टि से इस्लाम की आलोचना कर रहा है.
समाजशास्त्री एमिल डर्कहाइम कहते हैं “मनुष्यों के समहू की एक सामूहिक चेतना है.”
समाजशास्त्री एमिल डर्कहाइम ने कहा है कि व्यक्ति की चेतना का एक समूह होता है जैसे कक्षा में जितने छात्र बैठे होते हैं उनकी एक सामूहिक चेतना बन जाती है. वे कहते हैं कि यह सामूहिक चेतना एक स्वतंत्र रूप ले लेती है. वे उदाहरण देते हैं कि ऑक्सीजन और हाइड्रोजन दो अलग-अलग तत्व होते हैं लेकिन मिलकर वे पानी बनने के बाद दोनों के अतिरिक्त और दोनों से ऊपर हो जाते हैं. युंग के अनुसार यह जुड़ाव, अचेतन का होता है जबकि डर्कहाइम के अनुसार यह जुड़ाव स्तर पर होता है. हम इसे इस प्रकार समझ सकते हैं कि फुटबॉल टीम का जो कैप्टन होता है वह फुटबॉल टीम का सदस्य भी है लेकिन पूरी तीं की सामूहिक चेतना की अभिव्यक्ति भी करता है. अथवा जैसे सदन में प्रधानमंत्री उस सदन का सदस्य भी होता है लेकिन उस संपूर्ण सदन की चेतना की अभिव्यक्ति भी करता है. इसी प्रकार डर्कहाइम और युंग के अनुसार मनुष्य का चेतन और अचेतन एक सामूहिक अभिव्यक्ति करता है और उसकी स्वतंत्र सत्ता उत्पन्न हो जाती है.
इस सामूहिक अभिव्यक्ति को हम अल्लाह के रूप में देख सकते हैं. हम समझ सकते हैं कि अल्लाह संपूर्ण मानव जगत की सामूहिक चेतना की अभिव्यक्ति करता है और वह स्वतंत्र है जैसा कि युंग और डर्कहाइम ने बताया है. इस दृष्टि से हम क़ुराआन की कुछ आयतों को देखने का प्रयास करेंगे.
“याद करो ए नवी हमने तुमसे कह दिया कि तेरे अल्लाह ने इन लोगों को घेर रखा है” (17:60).
“घेर रखे” का अर्थ यह हुआ कि जैसे प्रधानमंत्री की चेतना ने संपूर्ण सदन की चेतना को घेर रखा होता है अथवा फुटबॉल टीम के कैप्टन ने फुटबॉल टीम के सभी सदस्यों की चेतना को घेर लिया होता है–वह उनके चारों तरफ फैल गया है होता है—उसी प्रकार यह आयत कह रही है कि अल्लाह ने सब लोगों को घेर रखा है.
“जो लोग बताए गए मार्गदर्शन को स्वीकार करने से इनकार करेंगे और हमारी आयतों को झूठलाएंगे वे आग में जाने वाले हैं” (2:39).
प्रश्न है यह मार्गदर्शन किसने दिया? निवेदन है कि यह मार्गदर्शन मनुष्य की सामूहिक चेतना ने दिया हो सकता है. इस आयत को हम इस तरह से समझ सकते हैं कि जो लोग “सामूहिक चेतना को स्वीकार करने से इनकार करेंगे और उसे झूठलाएंगे वह आग में जाने वाले हैं.” आग में जाने का अर्थ हुआ कि समस्त जगत मेरे विरुद्ध खड़ा होगा जैसे यदि किसी व्यक्ति ने चोरी की तो उस गाँव के सभी लोग उसके विपरीत खड़े हो जाते हैं. इसी प्रकार यह आयत यह कह रही है यदि कोई व्यक्ति सामूहिक चेतना या अल्लाह के आदेश को झूठलाएगा तो वह आग में पड़ेगा.
“जिन लोगों ने कुफ्र की नीति अपनाई और कुफ्र की हालत में मरे उन पर अल्लाह और फरिश्तों के सारे इंसानों की फटकार है” (2:161).
यहाँ कहा गया कि कुफ्र यानी सामूहिक चेतना के विपरीत कार्य किया उनका नुकसान हुआ; और सारे इंसानों की उनको फटकार है. हमारी संपूर्ण मनुष्य सृष्टि की एक सामूहिक चेतना है और यदि कोई व्यक्ति उसके विपरीत काम करता है तो बाकी सारे मनुष्य उसको फटकार देते हैं.
“जो लोग अल्लाह और उसके रसूल से लड़ते हैं उनकी सजा यह है कि उनका कत्ल किया जाए” (5:33).
यहां पर अल्लाह की बात शत शत सही है. अल्लाह यानी सामूहिक चेतना के विरुद्ध जो काम करते हैं उन्हें दंड दिया जाए. उनका कत्ल किया जाए या न किया जाए वह समय के कानून की बात है. इस आयत में रसूल यानी पैगंबर मोहम्मद की बात को दो तरह से समझा जा सकता है. इस आयत की पृष्ठभूमि यह है कि कुछ लोगों का स्वास्थ्य ठीक नहीं था. वे मोहम्मद साहब के पास आए और उनसे कहा तो मोहम्मद साहब ने कुछ ऊंट उन्हें दे दिए. वे ऊंट और चरवाहे को लेकर चले गए. ऊंट का दूध पीकर वे कुछ दिन में स्वस्थ हो गए. उसके बाद उन्होंने उस चरवाहे का कत्ल कर दिया और ऊंट को लेकर भाग गए. इस पृष्ठभूमि में यह आयत उतरी और कहा गया कि जो लोग अल्लाह के रसूल से लड़ते हैं उनका कत्ल किया जाए. यानी कि जिन लोगों ने अल्लाह के रसूल से शरण मांगी, जिनको अल्लाह के रसूल ने ऊंट दिए, जिन्होंने अल्लाह के रसूल के ही चरवाहे को मारा और उनके ऊंटों को लेकर भाग गए–उनका उस समय की कानून व्यवस्था के अनुसार कत्ल किया जाए. जैसे आज यदि कोई व्यक्ति चोरी करे तो उसे पुलिस द्वारा दंड दिया जाता है.
इसी आयत की दूसरी व्याख्या है कि यहां पर संपूर्ण इस्लामिक राज्य की ही बात की जा रही है.
मौलाना मौदूदी कहते है अल्लाह के रसूल के विरुद्ध चलना इसी प्रकार है जैसे इस्लामिक राज्य के नियमों के विरुद्ध चलना.
इस्लामिक विद्वान और क़ुराआन पर तफसीर लिखने वाले मौलाना मौदूदी का कहना है कि “यहाँ अल्लाह के रसूल के विरुद्ध चलना इसी प्रकार है जैसे इस्लामिक राज्य के नियमों के विरुद्ध चलना.” इस आयात का एक विशेष संदर्भ था. पैगंबर के समय कुछ लोगों ने कुछ किया और कहा गया कि उनका कत्ल कर दिया जाए. उस रसूल को आज हम इस्लामिक राज्य से जोड़ते हैं तो बात बिल्कुल बदल जाती है. इस्लामिक राज्य कुछ क्षेत्र का राज्य है. वह संपूर्ण मानवता का राज्य नहीं है. लेकिन अल्लाह का जो पैगाम संपूर्ण मानवता का है. अल्लाह कहता है कि उसने संपूर्ण मानवता को घेर रखा है. अल्लाह ने केवल इस्लामिक लोगों को नहीं घेर रखा है. अब यदि हम रसूल को इस्लामिक राज्य से जोड़ दें तब यह आयत कहती है जो कोई भी इस्लामिक राज्य के विरुद्ध चलेगा उसका कत्ल किया जाएगा. यह अल्लाह का विचार नहीं हो सकता कि वह केवल इस्लामिक राज्य की बात करें. इसलिए इस्लामिक विद्वानों को वर्तमान परिपेक्ष में क़ुरआन की आयतों को नए ढंग से समझना होगा. यह आयतें ईश्वर की वाणी है. लेकिन इनका अर्थ समय के अनुसार बदलता जाता है जैसे किसी व्यक्ति ने रसूल के चरवाहे को मारा तो वह संदर्भ अलग था और आज का संदर्भ अलग है. अल्लाह जो परम शक्ति है वह मनुष्य को खंडित नहीं करती है. वह मनुष्य के हिस्से नहीं करती है. वह सर्वव्यापी है जैसा क़ुरआन में कहा गया की अल्लाह ने सबको घेर रखा है. किसी को छोड़ा नहीं है.
इस दृष्टि से हम क़ुरआन की आयतों का पुनार्विवेचन करें, अल्लाह को संपूर्ण मानवता कि चेतना के रूप में देखें तो जो पश्चिमी सभ्यता और इस्लाम के बीच द्वंध चल रहा है इसके बीच हमें रास्ता मिल सकता है. जैसा पहले बताया गया फ्रांस की क्रांति में भी परम शक्ति और मनुष्य की सामूहिकता दोनों की बात की गई है और इस्लाम में भी परम शक्ति यानी अल्लाह और मनुष्य की सामूहिकता यानी सबको घेरने की बात की गई है. दोनों मूल रूप से एक ही बात कह रहे हैं. आज जरूरत है कि पश्चिमी सभ्यता अपने भोगवाद से पीछे हटे और मनुष्य के चिंतन को अचेतन और विशेषकर सामूहिक अचेतन से जोड़े और इस्लामिक विद्वान क़ुरआन की आयतों को संपूर्ण मनुष्य जगत की सामूहिक चेतना के संदर्भ में समझे तो दोनों सभ्यताओं में सामंजस्य और प्रेम स्थापित हो सकता है.