अल्लाह और अल्लाह या ब्रह्म एक ही हैं.
इस पोस्ट में हम कुरान में अल्लाह के वर्णन की तुलना हिन्दू धर्म के अल्लाह या ब्रह्म (इंग्लिश में brahman) से करेंगे. हमारा अध्ययन बताता है कि अल्लाह या ब्रह्म एक ही सत्ता के दो नाम हैं.
सर्वव्यापी
1] आयत- पूरब और पश्चिम अल्लाह ही के हैं, अतः जिस ओर भी तुम रुख़ करो उसी ओर अल्लाह का रुख़ है. निस्संदेह अल्लाह बड़ी समाईवाला (सर्वव्यापी) सर्वज्ञ है (कुरान 2:115).
हमारा दृष्टिकोण– इस सृष्टि के हर कोण का एक भौतिक रूप है और दूसरा उसकी चेतना है. जैसे बालू के एक-एक कण में सिलिका आदि भौतिक पदार्थ हैं और उसमें एक बहुत सूक्ष्म स्तर की चेतना भी है. इसी प्रकार वृक्ष, पशु और मनुष्य का भी एक भौतिक रूप है और दूसरा इनकी चेतना है. इन दोनों के बीच चेतना ही भौतिक को चलाती है जैसे मनुष्य पहले सोचता है और फिर उसके अनुसार उसका शरीर कार्य करता है. अतः चेतना प्रमुख हैं और भौतिक पदार्थ उसके द्वारा चलायमान होता है.
सृष्टि में जितने भी भौतिक पदार्थ हैं उन सबकी चेतना आपस में जुड़ी रहती है जैसे फुटबॉल टीम के 11 खिलाड़ीयों की चेतना आपस में मिलकर एकमय हो जाती है अथवा पार्लियामेंट में किसी पार्टी के सांसद मिलकर एक ध्वनि से बात करते हैं. यह जो जुड़ी हुई या समग्र चेतना है उसे यदि सृष्टि स्तर पर बढ़ा दिया जाये तो उसे अल्लाह या ब्रह्म कहा जाता है. अल्लाह की यह परिभाषा कुरान से मेल खाती है यद्यपि कुरान में अल्लाह क्या है इसका कोई विवरण नहीं दिया गया है. हम अल्लाह या ब्रह्म को एक विशाल आकाश या बादल के रूप में समझ सकते हैं. इसके द्वारा संसार के हर कण को चलाया जाता है. हर बालू, वृक्ष, पशु और मनुष्य की चेतना इस समग्र चेतना के संपर्क में रहती है और अल्लाह या ब्रह्म द्वारा आदेश दिया जाता है. मनुष्य स्वतंत्र है कि अल्लाह के आदेश को मने या न मने. कुरान का उद्देश्य है कि मनुष्य को समझाया जाय कि अल्लाह के आदेशों का पालन करे. अल्लाह या ब्रह्म की यह चेतना सम्पूर्ण सृष्टि में फैली हुई है इसलिए इस आयत में कहा गया कि पूरब और पश्चिम अल्लाह के ही है यानी कि अल्लाह या ब्रह्म की चेतना की इबादत किसी भी दिशा में की जा सकती है.
2] आयत- और जब तुमसे मेरे बन्दे मेरे सम्बन्ध में पूछें, तो मैं तो निकट ही हूँ, पुकारने वाले की पुकार का उत्तर देता हूँ जब वह मुझे पुकारता है, तो उन्हें चाहिए कि वे मेरा हुक्म मानें और मुझपर ईमान रखें, ताकि वे सीधा मार्ग पा लें (कुरान 2:186).
हमारा दृष्टिकोण– मनुष्य कहता है कि यह शरीर मेरा है तो मैं कहने वाली चेतना प्रमुख हुई और शरीर उसके आधीन हुआ. इस आया में कहा गया कि जब मनुष्य अल्लाह या ब्रह्म को पुकारता है तो हमारी व्यक्तिगत चेतना का संबंध अल्लाह या ब्रह्म की सर्वव्यापी चेतना से हो जाता है. जिस प्रकार याचक राजा से विनती करता है उसी प्रकार हमारी व्यक्तिगत चेतना सर्वव्यापी अल्लाह या ब्रह्म से याचना करती है. इस आया में कहा गया कि ऐसी पुकार होने पर अल्लाह या ब्रह्म उसका उत्तर देता है. अल्लाह या ब्रह्म सदा सक्रीय रहता है. वह कभी सोता नहीं है. याचना का उत्तर वह हर समय देता है.
अल्लाह या ब्रह्म संसार को एक किसी विशेष दिशा में चलाना चाहता है और उस दिशा में चलने को सम्पूर्ण सृष्टि को आदेश देता है. लेकिन कुछ लोग उस आदेश के विपरीत कार्य करते हैं और अल्लाह या ब्रह्म जिस दिशा में सृष्टि को चलाना चाह रहा है उसमें अवरोध पैदा करते हैं. इसलिये कहा गया कि सबको चाहिए कि अल्लाह या ब्रह्म का हुक्म माने और सीधे मार्ग पर चलें यानी उस दिशा में चले जो अल्लाह या ब्रह्म चाहता है.
3] आयत- अल्लाह कि जिसके सिवा कोई पूज्य-प्रभु नहीं, वह जीवन्त-सत्ता है, सबको सँभालने और क़ायम रखनेवाला है. उसे न ऊँघ लगती है और न निद्रा. उसी का है जो कुछ आकाशों में है और जो कुछ धरती में है. कौन है जो उसके यहाँ उसकी अनुमति के बिना सिफ़ारिश कर सके? वह जानता है जो कुछ उनके आगे है और जो कुछ उनके पीछे है. और वे उसके ज्ञान में से किसी चीज़ पर हावी नहीं हो सकते, सिवाय उसके जो उसने चाहा. उसकी कुर्सी (प्रभुता) आकाशों और धरती को व्याप्त है और उनकी सुरक्षा उसके लिए तनिक भी भारी नहीं और वह उच्च, महान है (कुरान 2:255).
हमारा दृष्टिकोण– जिस प्रकार मनुष्य अपने हाथ पांव शरीर को संभालता और कायम रखता है उसी प्रकार अल्लाह या ब्रह्म इन पहाड़, आकाश, हवा, बादल, पशु, पक्षी, मनुष्य आदि सभी को संभालता है. अल्लाह या ब्रह्म की चेतना में सूर्य और चंद्रमा आदि की चेतना सम्मिलित है. जिस प्रकार सूर्य सोता नहीं है और चौबिस घंटे जलता रहता है उसी प्रकार अल्लाह या ब्रह्म की चेतना सदैव सक्रिय रहती है; अथवा जैसे धरती के चारों तरफ किसी न किसी स्थान पर दिन रहता है उसी प्रकार अल्लाह या ब्रह्म 24 घंटे जागृत रहता है और सम्पूर्ण सृष्टि को चलाता रहता है. जिस प्रकार मनुष्य की अनुमति के बिना उसका हाथ ऊपर नहीं उठता उसी प्रकार संसार में जो कुछ भी है वह अल्लाह या ब्रह्म के आदेश पर चलता है. यहां यह स्पष्ट करना जरूरी है कि अल्लाह या ब्रह्म के आदेश को मानने अथवा न मानने के लिए मनुष्य स्वतंत्र है. लेकिन यदि मनुष्य अल्लाह या ब्रह्म के आदेश के विपरीत चलता है तो उसके दुष्परिणाम होते हैं क्योंकि सम्पूर्ण संसार में अधिकतर सृष्टि अल्लाह या ब्रह्म के आदेशों को मानती है. इसलिए यदि कोई व्यक्ति अल्लाह या ब्रह्म के आदेश के विपरीत चलता है तो सृष्टि के शेष अंश उसका विरोध करते हैं और उसे संकट में डालते हैं. जैसे चोर को सामान्य जनता पकड़ लेती है. इसलिए कहा गया कि अल्लाह या ब्रह्म की अनुमति के बिना कुछ नहीं होता है.
4] आयत- आकाशों और धरती में जो कुछ है उसी का है और वह सर्वोच्च महिमावान है (कुरान 42:4).
हमारा दृष्टिकोण– अल्लाह या ब्रह्म की चेतना सर्वव्यापी है. वह हर तरफ फैली हुई है. इस सृष्टि में जितने भी कण हैं उनमे चेतना है. जैसे कुरान में कहा गया कि पहाड़ों ने अल्लाह को सजदा करना स्वीकार किया. इस सृष्टि के हर कण की चेतना अल्लाह कसे जुडी हुई है. इसलिए कहा गया कि आकाशों और धरती में जो कुछ है उसी का है.
5] आयत- अल्लाह आकाशों और धरती का प्रकाश है (मोमिन के दिल में) उसके प्रकाश की मिसाल ऐसी है जैसे एक ताक़ है, जिसमें एक चिराग़ है – वह चिराग़ एक फ़ानूस में है. वह फ़ानूस ऐसा है मानो चमकता हुआ कोई तारा है. – वह चिराग़ ज़ैतून के एक बरकतवाले वृक्ष के तेल से जलाया जाता है, जो न पूर्वी है न पश्चिमी. उसका तेल आप ही आप भड़का पड़ता है, यद्यपि आग उसे न भी छुए. प्रकाश पर प्रकाश! – अल्लाह जिसे चाहता है अपने प्रकाश के प्राप्त होने का मार्ग दिखा देता है. अल्लाह लोगों के लिए मिसालें प्रस्तुत करता है. अल्लाह तो हर चीज़ जानता है (कुरान 24:35).
हमारा दृष्टिकोण– पहले वाक्य में कहा गया अल्लाह आकाशों और धरती का प्रकाश है. यहां प्रकाश का अर्थ जीवंतता से लेना चाहिए. जिस प्रकार आकाश में सूर्य जीवंत है उसी प्रकार इस संसार में जो कुछ भी चलायमान है वह अल्लाह या ब्रह्म की चेतना से चलायमान है इसलिए कहा गया कि आकाश और धरती का प्रकाश अल्लाह या ब्रह्म है.
इसके आगे इस आयत में कहा गया कि अल्लाह मानो चमकता हुआ कोई तारा है. जैसे विशाल सृष्टि में तारा चमकता है उसी तरह इस सृष्टि में अल्लाह या ब्रह्म की चेतना ही चलायमान है और चमकती है.
इसके आगे कहा गया जैसे जैतून के तेल से वह तारा या चिराग जलाया जाता है. कुरान इस धरती पर अरबिया में उतरी थी. वहां पर जैतून के तेल को श्रेष्ट मन जाता है. लेकिन कुरान सम्पूर्ण मानवता के लिए उतारी गयी है. दुनिया के हर देश में जैतून पैदा नहीं होता है. इसके आगे कहा गया कि अल्लाह न पूर्वी है न पश्चिमी. इन दोनों बातों में अंतर्विरोध है. जैतून एक विशेष स्थान पर पैदा होता है जबकि अल्लाह हर जगह है. ऐसा संभव नहीं है कि जिन देशों में जैतून का तेल उपलब्ध नहीं हो वहां पर अल्लाह का चिराग न जले, इसलिए जैतून का अर्थ “उत्कृष्ट” अथवा “अच्छे” से लेना चाहिए. वह श्रेष्ठ तेल से चलने वाले दिए या तारे के समान है.
इसके आगे कहा गया जो न पूर्वी है न पश्चिमी यानी अल्लाह या ब्रह्म की चेतना सर्वव्यापी है, सम्पूर्ण सृष्टि में व्याप्त है. उसमें पूरब और पश्चिम नहीं है क्योंकि पूरब और पश्चिम किसी एक स्थान से गिने जाते हैं. लेकिन अल्लाह या ब्रह्म तो हर स्थान पर है इसलिए उसमें वह न पूर्वी है न पश्चिमी है.
इसके आगे कहा गया कि उसका तेल आप ही आप भड़कता है. अल्लाह या ब्रह्म को कोई दूसरा नहीं चलाता है. अल्लाह या ब्रह्म स्वयंभू है. वह स्वयं अपने को चलाता है. उसकी अपनी ऊर्जा है इसलिए कहा गया कि वह तेल आप ही आप भड़कता है यानी उसे कोई दूसरा नहीं चलाता. यह भी कहा गया की अल्लाह या ब्रह्म एक तारे के समान है या जैतून के तेल के दीये के समान है. उसकी आग से वह स्वयं नहीं जलता है. अल्लाह या ब्रह्म आग, पानी इत्यादि में सम भाव से व्याप्त रहता है.
अंत में कहा गया कि अल्लाह या ब्रह्म जिसे चाहता है अपने प्रकाश का मार्ग दिखा देता है. सच तो यह है कि अल्लाह या ब्रह्म इस सृष्टि के हर कण को सही मार्ग दिखाता है लेकिन कुछ लोग उस बताए गए मार्ग को समझने वाले होते हैं जबकि कुछ उसको नकारते हैं. इसलिए कहा गया कि जो लोग सही दिशा में चलते हैं वह अल्लाह या अल्लाह या ब्रह्म के आदेश के कारण ही चलते हैं. इस बात को कहा गया कि “अल्लाह जिसे चाहता है अपने प्रकाश के प्राप्त होने का मार्ग दिखा देता है.” जो लोग गलत दिशा में चलते हैं वह अल्लाह या ब्रह्म के आदेश को नहीं मानते हैं.
कुरान इस बात को स्पष्ट नहीं करती है कि जो लोग अल्लाह के आदेश को नहीं मानते हैं वह क्यों? यह उचित नहीं दीखता है कि अल्लाह चाहता हो कि वे अल्लाह के आदेश को न माने. इसलिए हमारा दृष्टिकोण है कि हर व्यक्ति अल्लाह के आदेश को मानाने या न मानाने के लियी स्वतंत्र है. जो लोग अल्लाह के आदेश को मानते हैं उनके लिए कहा गया कि “अल्लाह जिसे चाहता है अपने प्रकाश के प्राप्त होने का मार्ग दिखा देता है.”
6] आयत- अल्लाह वह है जिसने आकाशों को बिना सहारे के ऊँचा बनाया जैसा कि तुम उन्हें देखते हो. फिर वह सिंहासन पर आसीन हुआ. उसने सूर्य और चन्द्रमा को काम पर लगाया. हरेक एक नियत समय तक के लिए चला जा रहा है. वह सारे काम का विधान कर रहा है; वह निशानियाँ खोल-खोलकर बयान करता है, ताकि तुम्हें अपने रब से मिलने का विश्वास हो (कुरान 13:2).
हमारा दृष्टिकोण– किसी समय सम्पूर्ण सृष्टि एक असीमित भार के बिन्दु में समाई हुई थी जिसे सिंगुलारिटी (singularity) कहते हैं. उस बिंदु में चेतना और भौतिक पदार्थ दोनों एक दुसरे में समाये हुए थे. उनमे भिन्नता नहीं थी जैसे दिए की एक ही होती है. लौ और धुआं – दोनों भौतिक पदार्थ हैं और उनमे भिन्नता है. लेकिन लौ और रौशनी में भिन्नता नहीं होती है. जब लौ होगी तो रौशनी भी अवश्य होगी. दोनों को अलग नहीं किया जा सकता है. इसी प्रकार सिंगुलारिटी में पदार्थ और चेतना को अलग नहीं किया जा सकता है. बिदु की उस चेतना ने उस बिंदु भौतिक पदार्थ में विस्फोट किया और वह बिंदु फैल गया. भौतिक पदार्थ के जितने असंख्य अंश बने उन सबकी अलग-अलग चेतना भी उत्पन्न हो गई. इन तमाम अलग-अलग चेतनाओं का आपस में समन्वय हुआ और इस समग्र चेतना को अल्लाह या ब्रह्म कहा गया. इस अल्लाह या ब्रह्म ने भौतिक पदार्थों को दिशा दी. इस बात को इस आयत में कहा गया की अल्लाह या ब्रह्म ने आकाश, सूर्य और चंद्रमा बनाए और उन्हें काम पर लगाया. काम पर लगाया यानि कि उन्हें दिशा दी.
इस क्रम में धीरे-धीरे भौतिक पदार्थ से जीवंत पदार्थ बने फिर पौधे बने, पशु बने और मनुष्य बने. कुरान का कहना है कि यह सब प्रपंच इसलिए बनाया गया कि मनुष्य इस बात को समझ सके कि अल्लाह या ब्रह्म ही सबका सृष्टिकर्ता है और वह अल्लाह या ब्रह्म से मिले. इसलिए कहा गया ताकि तुम्हें अपने रब से मिलने का विश्वास हो. इसी बात को हिंदू धर्म में ब्रह्मलीन होना बताया गया है.
7] आयत- अल्लाह हर चीज़ का स्रष्टा है और वही हर चीज़ का ज़िम्मा लेता है (कुरान 39:62).
हमारा दृष्टिकोण– इस आयत में कहा गया कि अल्लाह या ब्रह्म हर चीज का जिम्मा लेता है यानी जो कुछ संसार में हो रहा है वह अल्लाह या ब्रह्म की चेतना के द्वारा भौतिक पदार्थों को दिशा देकर हासिल किया जा रहा है. जैसे अल्लाह या ब्रह्म किसी को बोलता है कि तुम खेती करो, किसी को बोलता है व्यापार करो, किसी को बोलता है युद्ध करो इत्यादि. इसलिए जो कुछ संसार का प्रपंच है उसकी जिम्मेदारी अल्लाह या ब्रह्म की है और अल्लाह या ब्रह्म ही सबका संचालन कर रहा है. हर व्यक्ति स्वतंत्र है कि अल्लाह के आदेशों का पालन करे या न करे. सञ्चालन करने का अर्थ यह है कि अल्लाह के आदेशों का जो व्यक्ति पालन नहीं करेगा उसे सजा दी जाएगी. अल्लाह ने दुनिया इसलिए बनायीं कि आदमी अल्लाह की तरफ मुड़े. इसके लिए जीवित रहना जरूरी है. जीवित रहने के लिए अल्लाह ने तमाम चीज़ों को बनाया है. अल्लाह चाहता है कि इनका उपयोग करके आदमी अल्लाह द्वारा बताये गए मार्ग पर चले.
विकास
8] आयत- क्या तुमने यह समझ लिया था कि हमने तुम्हें व्यर्थ ही पैदा किया है और तुम हमारी ओर कभी लौटकर नहीं आओगे? (23.115).
हमारा दृष्टिकोण– किसी समय यह सम्पूर्ण सृष्टि एक बिंदु में समाई हुई थी जिसका अनंत घनत्व था. उस बिंदु में इस सृष्टि की चेतना और भौतिक पदार्थ दोनों समाहित थे. इसे इंग्लिश में सिंगुलेरिटी कहा जाता है यानी कि केवल सिंगल या अकेला अस्तित्व था. इसके बाद उस बिंदु की चेतना ने चाहा कि वह एक से अनेक हो जाए जैसा कि उपनिषदों में कहा गया है. उस बिंदु ने अपना विस्फोट किया और उस सिंगलेरिटी से यह सृष्टि पैदा हुई. फिर उसमें अलगाव पैदा हुआ जैसे मिट्टी के दो कण अलग-अलग होते हैं. सिंगुलेरिटी में संपूर्ण जड़ भौतिक पदार्थ एकमय था. सब कुछ एक ही बिंदु में समाहित था. वह विस्फोट के बाद अलग-अलग हो गया.
उसका क्रम से विकास हुआ. उसमें से पौधे, पशु और बाद में मनुष्य का इव्यूल्यूशन हुआ. इस अलगाव या पृथकता का उद्देश्य यह है कि हर कण की चेतना अथवा हर आत्मा अल्लाह या ब्रह्म को प्राप्त कर सके. इसलिए कहा गया कि ऐसा मत समझो कि तुम यानी कि हर कण की चेतना वापस अल्लाह या ब्रह्म के पास नहीं आएगी. उस अल्लाह या ब्रह्म से अलग हुए और उसी अल्लाह या ब्रह्म में वापस विलीन हो जाएंगे.
कुरान का मानना है कि अल्लाह की सत्ता सिंगुलैटी से बहार स्वतंत्र थी. अल्लाह ने सिंगुलैटी के बहार रह कर सिंगुलैरिटी में विस्फोट किया. अल्लाह की चेतना यथावत रहती है. इस बिंदु पर हमारा मानना है कि इस सृष्टि के हर कण में चेतना है. इसलिए सिंगुलैरिटी में भी चेतना है. यदि अल्लाह सिंगुलैरिटी के बहार था तो सिंगुलैरिटी समय दो चेतना उपलब्ध हो गयी—सिंगुलैरिटी की और अल्लाह की. इन दोनों चेतनाओं में क्या सम्बन्ध था इसे हम समझ नहीं सकते हैं. संभव है की ये दोनों चेतना एक ही थी जैसा कि हम मानते हैं. यह भी संभव है कि ये दोनों चेतना अलग थी जैसा परंपरा में कुरान में माना गया है.
इस्लाम में यह बहस है कि अल्लाह ने दुनिया को बिना किसी पदार्थ के शून्य से बनाया या कोई पदार्थ पहले से था और अल्लाह ने उसे फिर पैदा किया. दोनों बातें सही हो सकती हैं. सिंगुलारिटी कहाँ से आई यह हमें मालूम नहीं. संभव है कि अल्लाह ने शून्य से सिंगुलारिटी को बनाया. यह भी संभव है कि सिंगुलारिटी के पहले कोई पदार्थ था. दोनों बातें कुरान से सम्मत हैं.
इसमें कोई विवाद नहीं है कि मनुष्य की चेतना का विकास होता है. वह चेतना जो अल्लाह की ओर वापस जाती है वह ऊँची है. यदि हम माने की सिंगुलैरिटी की चेतना ही अल्लाह थी और इसने स्वयं विस्फोट किया तो इसका तार्किक परिणाम होगा कि उस चेतना या अल्लाह का विकास होता है. कुरान में ऐसा नहीं कहा गया है परन्तु इस विचार का खंडन भी नहीं किया गया है. दोनों सम्भावना हैं.
हमारा मानना है कि जब अल्लाह या ब्रह्म सिंगुलेरिटी एक बिंदु में थे तो उस चेतना का स्तर न्यून था. जब अलगाव हुआ और पौधे, पशु, मनुष्य आदि पैदा हुए. उन्होंने श्रम किया तो उनकी चेतना का विकास हुआ और वह उच्च चेतना से अब अल्लाह या ब्रह्म में दोबारा विलीन होगी.
कुरान का यह कहना हिन्दू मायावाद के विपरीत है. मायावाद में कहा जाता है कि ब्रह्म ने संसार को खेल में या यूँ ही विलास में पैदा किया. जबकि यहां कुरान में कहा गया कि सृष्टि के पैदा होने का कुछ उद्देश्य है. उस उद्देश्य को कुरान में स्पष्ट नहीं किया गया है. हमारी समझ है कि यह उद्देश्य नीचे जड़ चेतना का विकास है कि वह उच्च चेतना बने और अल्लाह के पास वापस लौटे अथवा ब्रह्म में विलीन हो जाए.
कुरान सृष्टि के प्रति सकारात्मक है. सृष्टि को अच्छी और पॉजिटिव दृष्टि से देखा जाए कि इसके माध्यम से हम अल्लाह या ब्रह्म में विलीन होंगे.
इस बिंदु पर हिन्दूओं में कई विचारधाराएं हैं. इनमे मायावाद की विचारधारा मूलतः नकारात्मक है कि यह संसार माया है या सपना है और इसमें कोई सार नहीं है. लेकिन ऐसा कह कर व्यक्ति को ब्रह्म के प्रति सजग किया गया है. इसलिए मायावाद भी ब्रह्म की प्राप्ति का रास्ता है.
अल्लाह या ब्रह्म की ओर लौट कर आने की बात कुरान और हिन्दू धर्म दोनों में बताई गई लेकिन भौतिक सृष्टि के प्रति कुरान की दृष्टि सकारात्मक है जबकि हिन्दुओं में कुछ दृष्टियाँ सकारात्मक हैं और कुछ नकारात्मक हैं जैसा कि मायावाद में.
9] जिसने उत्पन्न कर दिया आकाशों तथा धरती को और जो कुछ उनके बीच है, छः दिनों में, फिर (सिंहासन) पर स्थिर हो गया, अति दयावान्, उसकी महिमा किसी ज्ञानी से पूछो (कुरान 25:59).
इस आयात में कहा गया कि अल्लाह ने आकाश और धरती को बनाया. इससे कहा जा सकता है कि अल्लाह और धरती भिन्न हैं. लेकिन यह बात सिंगुलारिटी के विस्फोट के बाद लागू हो सकती है. यह कहना मुश्किल है कि सिंगुलारिटी में पदार्थ और चेतना एकमय थे या अलग अलग थे. कुरान से दोनों संभावनाएं में खाती हैं. सिंगुलारिटी में जो भी हो, विस्फोट के बाद वे अलग हो गए. अलग होने के बाद अल्लाह ने छः दिनों में आकाश और धरती को पैदा किया.
10] आयत- और उनके समक्ष सांसारिक जीवन की उपमा प्रस्तुत करो, यह ऐसी है जैसे पानी हो, जिसे हमने आकाश से उतारा तो उससे धरती की पौध घनी होकर परस्पर गुँथ गई. फिर वह चूरा-चूरा होकर रह गई, जिसे हवाएँ उड़ाए लिए फिरती हैं. अल्लाह को तो हर चीज़ की सामर्थ्य प्राप्त है (कुरान 18:45).
हमारा दृष्टिकोण– इस आयत में बताया गया कि वर्षा से धरती पर पौधे बनते हैं फिर वह मृत हो जाते हैं और धूल बनकर हवा में उड़ जाते हैं. यह विकास की प्रक्रिया का एक अंग है. कुरान में जो कहा गया कि सृष्टि और सृष्टिकर्ता अलग अलग हैं, यह विस्फोट के बाद की बात है. सिंगुलैरिटी में विस्फोट के पहले कि स्तिथि के बारे में कुरान में कुछ नहीं कहा गया है. इसपर अलग अलग मत हो सकते हैं.
कुरान से यह बात सम्मत है कि सिंगुलैरिटी या बिन्दु से हर अणु अलग हुआ और वह खनिज बना, फिर पौधे के रूप में पैदा हुआ, पौधे के बाद वह बीज बना, बीज के बाद पुनः पौधा बना और इसके बाद क्रमशः पशु और मनुष्य बना. वही आत्मा जो बालू के कण में है उसका विकास होते होते वह पौधे, पशु और मनुष्य की आत्मा बन जाती है. मनुष्य कि आत्मा के रूप में उसमें यह सामर्थ्य होता है कि वह अल्लाह या ब्रह्म को प्राप्त कर सके. यह समझे कि यह जो सृष्टि का चक्र है उसे अल्लाह या ब्रह्म चला रहा है और इसे उसने ने सिर्फ इसलिए बनाया है कि वह न्यून स्तर पर सिंगुलारिटी कि चेतना से आगे बढ़ते हुए चेतन रूप से अल्लाह या ब्रह्ममय होकर अल्लाह या ब्रह्म में विलीन हो जाए.
10] आयत- वह अल्लाह ही है जिसने आकाशों और धरती की सृष्टि की और आकाश से पानी उतारा, फिर वह उसके द्वारा कितने ही पैदावार और फल तुम्हारी आजीविका के रूप में सामने लाया. और नौका को तुम्हारे काम में लगाया, ताकि समुद्र में उसके आदेश से चले और नदियों को भी तुम्हें लाभ पहुँचाने में लगाया (कुरान 14:32).
हमारा दृष्टिकोण– इस आयात में सृष्टि पर अल्लाह के प्रभुत्व को बताया गया है. मूल प्रश्न है की अल्लाह द्वारा इस सृष्टि को बनाने का उद्देश्य क्या है? इस बिंदु पर कुरान स्पष्ट उत्तर नहीं देती है लेकिन यह कहा गया है कि मनुष्य को अल्लाह की ओर वापस जाना है. ऐसा तब ही संभव है जब मनुष्य की चेतना का विकास हो. इस आधार पर इस आयात को सम्ह्जना चाहिए. इसमें पौधों आदि के अतिरिक्त समुद्र और नाव की बात कही गई है. मनुष्य नाव से व्यापार करता है. दूसरे स्थान पर जाता है और समुद्र की विशालता के सामने अपने को छोटा पाता है. इसके अलावा नौका से व्यापार करने में उसकी चेतना का विकास होता यद्यपि कुरान में ऐसा नहीं कहा गया है परन्तु ऐसे विकास का खंडन भी नहीं किया गया है. इन दोनों बातों–यानी समुद्र की विशालता और व्यापार आदि के माध्यम से विकास–दोनों के सहयोग से मनुष्य अपनी चेतनता का उपयोग अल्लाह या ब्रह्म में लीन होने के लिए कर सकता है. इस बात को यहाँ कहा गया है.
11] आयत- वह अल्लाह ही है जिसने समुद्र को तुम्हारे लिए वशीभूत कर दिया है, ताकि उसके आदेश से नौकाएँ उसमें चलें; और ताकि तुम उसका उदार अनुग्रह तलाश करो; और इसलिए कि तुम कृतज्ञता दिखाओ (कुरान 45:12).
हमारा दृष्टिकोण– इस आयात में कहा गया है कि अल्लाह ही समुद्र में नाव को चलाता है. अथवा हम कह सकते हैं कि अल्लाह की प्रेरणा से मनुष्य समुद्र में नाव को चलता है. मुख्य विषय है कि नाव चलने का उद्देश्य क्या है? हम इस आयात को इस प्रकार समझते हैं कि किसी समय हम जड़ थे और अब हमारी चेतना का विकास हो गया है. इस बात को कुरान में इस प्रकार कहा गया है कि हमारा उद्देश्य अल्लाह की ओर वापस जाना है. ऐसा तब ही संभव है जब हमारी चेतना का विकास हो. हमें अपने को अर्थात अपनी इस विकसित चेतना को अल्लाह या ब्रह्म की तरफ मोड़ना है और उससे जुड़ना है. इस आया में कहा गया कि जिस प्रकार समुद्र में नौकाएं चलती हैं और समुद्र की विशाल ताकत के सामने वह नौका छोटी सी आगे बढ़ती है उसी प्रकार अल्लाह या ब्रह्म की विशाल शक्ति को मानते हुए और हमको अपने जीवन को आगे बढ़ाना है. अल्लाह या ब्रह्म के प्रति कृतज्ञ होना है कि उसने हमें इस संसार मे रास्ता दिया बिल्कुल उसी तरह जैसे विशाल समुद्र नाव को रास्ता देता है.
12] आयत- अल्लाह ही है जिसने तुम्हारे लिए चौपाए बनाए ताकि उनमें से कुछ पर तुम सवारी करो और उनमें से कुछ को तुम खाते भी हो (कुरान 40:79).
हमारा दृष्टिकोण– इस सृष्टि में एक प्राकृतिक खाद्य श्रृंखला विद्यमान है जैसे घास उगती है, उस घास को पशु खाते हैं, और उन पशुओं जैसे बकरी को मनुष्य खाता है. क्रमशः घास की चेतना से बकरी की चेतना ऊंची है और बकरी की चेतना से मनुष्य की चेतना ऊंची है. इस प्रकार घास की छोटी चेतना क्रमशः बढ़ती जाती है. इस विकास की प्रक्रिया में चार पैर वाले पशु एक कड़ी है जिसमें से जिन्हें हम सवारी के लिए और खाने के लिए दोनों के लिए उपयोग करते हैं. मूल बात यह है कि इस प्राकृतिक खाद्य श्रृंखला को सकारात्मक दृष्टि से देखा गया है कि यह चेतना के विकास का रस्ता है जिस चेतना का अंतिम पढ़ाव अल्लाह या ब्रह्म में लीन हो जाना है.
13A] आयत- अल्लाह ही है जिसने तुम्हें पैदा किया, फिर तुम्हें रोज़ी दी; फिर वह तुम्हें मृत्यु देता है; फिर तुम्हें जीवित करेगा. क्या तुम्हारे ठहराए हुए साझीदारों में भी कोई है, जो इन कामों में से कुछ कर सके? महान और उच्च है वह उससे जो साझी वे ठहराते हैं (कुरान 30:40).
13B] आयत- अल्लाह ही है जिसनें तुम्हें निर्बल पैदा किया, फिर निर्बलता के पश्चात शक्ति प्रदान की; फिर शक्ति के पश्चात निर्बलता औऱ बुढापा दिया. वह जो कुछ चाहता है पैदा करता है. वह जाननेवाला, सामर्थ्यवान है (कुरान 30:54).
हमारा दृष्टिकोण– इस आया में बताया गया कि मनुष्य को अल्लाह ने पैदा किया उसे भोजन दिया और फिर उसे मृत्यु दी. इसके बाद उसे पुनः जीवित किया. पुनर्जीवित करने के दो संभावित अर्थ है. इस्लाम की पारंपरिक सोच है कि क़यामत के दिन पुनर्जीवित किया जायेगा. इससे अलग हमारी सोच है कि इस आयात में पुनर्जन्म की बात कही गई है. हमारा मानना है कि इस आयात को दोनों तरह से समझा जा सकता है.
हमारा दृष्टिकोण है कि यह पुनर्जन्म की बात से मेल खाता है. मूल उद्देश्य यह है कि मनुष्य एक ही जन्म में अल्लाह या ब्रह्म तक नहीं पहुँच पाता है. एक जन्म में उसके हृदय में कुछ इच्छाएं पैदा होती हैं उनकी वह पूर्ति करता है. जब तक वह अपनी सभी इच्छाओं की पूर्ति नहीं कर लेता अथवा योग अदि की सहायता से उन्हें नष्ट नहीं कर देता, तब तक उसे अल्लाह या ब्रह्म या अल्लाह तक पहुंचने का सामर्थ्य उसमें पैदा नहीं होता है. इसलिए सृष्टि में यह व्यवस्था बनी कि मनुष्य की एक जन्म में जो इच्छाएं अपूर्ण रह जाती हैं उनको पूर्ण करने के लिए मृत्यु के बाद पुनर्जन्म हासिल करें और फिर उन इच्छाओं की पूर्ति करें. इस क्रम में जब उसकी सभी इच्छाएं पूर्ण हो जाती है तब वह अल्लाह या ब्रह्म के बारे में सोचने की स्थिति में आता है. इन आयत में जो दोबारा पैदा होने की बात कही गई है वह पुनर्जन्म से मेल खाती है.
यह पुनर्जीवित होना क़यामत के दिन से भी मेल खाता है. दोनों संभावनाओं में से पाठक अपनी समझ से चयन कर सकता है.
14] आयत- अल्लाह ही सृष्टि का आरम्भ करता है. फिर वही उसकी पुनरावृति करता है. फिर उसी की ओर तुम पलटोगे (कुरान 30:11).
हमारा दृष्टिकोण– इस आयत में कहा गया कि अल्लाह सृष्टि का आरंभकर्ता है. यहां सृष्टि का पारंपरिक अर्थ सम्पूर्ण सृष्टि से लिया जाता है. सम्पूर्ण सृष्टि को क़यामत के दिन अल्लाह के सामने खड़ा किया जायेगा. इसे ही पुनरावृति कहा गया. लेकिन हिन्दुओं के साथ साझा समझ बनाने के लिए हमारा सुझाव है कि पुनरावृति का अर्थ किसी व्यक्ति के जीवन में जो सृष्टि दिखती है उससे लिया जा सकता है. यह आयात दोनों अर्थो से मेल खाती है. हमारी समझ है कि किसी व्यक्ति का जन्म होता है तो उसको जो संसार मिलता है वह उसकी सृष्टि हुई. फिर मृत्यु के बाद उसका जन्म किसी अन्य स्थान पर होता है और उसके लिए वह एक नई सृष्टि होती है. इसी को कहा गया कि यह सृष्टि की पुनरावृत्ति हुई.
अंत में कहा गया कि इस पुनरावृत्ति के अंत में वह आत्मा अल्लाह या ब्रह्म की ओर पलटेगी यानी कि उस तरफ जाएगी. जब संसार में बार-बार आने जाने से यह आभास हो जाता है कि यह संसार सदा चलता रहेगा और इससे ऊपर इस संसार को चलाने वाला अल्लाह या ब्रह्म है तो आत्मा में इच्छा पैदा होती है कि वह अल्लाह या ब्रह्म से सीधे जुड़ जाए इस बात को पलटने के रूप में कहा गया है.
15] आयत- अल्लाह ही है जिसने तुम्हारे लिए धरती को ठहरने का स्थान बनाया और आकाश को एक भवन के रूप में बनाया, और तुम्हें रूप दिए तो क्या ही अच्छे रूप तुम्हें दिए, और तुम्हें अच्छी पाक चीज़ों की रोज़ी दी. वह है अल्लाह, तुम्हारा रब. तो बड़ी बरकतवाला है अल्लाह, सारे संसार का रब (कुरान 40:64).
हमारा दृष्टिकोण– इस आया में सृष्टि का बहुत ही सकारात्मक चित्रण किया गया है. कहा गया कि अल्लाह ने मनुष्य को अच्छा रूप दिया और अच्छी चीजें दी.
यहां प्रचलित हिन्दू धर्म और कुरान में दो अलग-अलग रास्ते बताए गए हैं. प्रचलित हिन्दू धर्म में कहा जाता है कि दुख से आदमी अल्लाह या ब्रह्म की ओर मुड़ता है. जब सांसारिक कार्यों में दुख प्राप्त होता है तो आदमी संसार के प्रति विरक्त होता है और उसका ब्रह्म के प्रति लगाव पैदा होता है.
तुलना में कुरान का कहना है कि यह संसार में अच्छे रूप और अच्छी चीजें दी गई यह एक सकारात्मक प्रक्रिया है. इस प्रक्रिया के साथ-साथ यदि कुरान की शिक्षा को ग्रहण किया जाए तो इस सुखमय संसार के माध्यम से भी हम अल्लाह तक पहुच सकते हैं.
हिंदू धर्म में निवृत्ति मार्ग और प्रवृत्ति मार्ग दोनों बताए गए हैं. कुरान द्वारा प्रवृत्ति मार्ग का अनुसरण किया गया है. कहा गया है कि जिस प्रकार प्रवृत्ति मार्ग में संसार में कार्य करते हुए व्यक्ति मोक्ष को प्राप्त हो जाता है उसी प्रकार यहां कहा गया कि रूप और अच्छी चीजें दी गई जिससे उनमें प्रविर्त होकर मनुष्य अल्लाह या ब्रह्म को प्राप्त हो.
16] आयत- अल्लाह ही है जिसने तुम्हारे लिए रात (अंधकारमय) बनाई, तुम उसमें शान्ति प्राप्त करो और दिन को प्रकाशमान बनाया (ताकि उसमें दौड़-धूप करो). निस्संदेह अल्लाह लोगों के लिए बड़ा उदार अनुग्रहवाला है, किन्तु अधिकतर लोग कृतज्ञता नहीं दिखाते (कुरान 40:61).
हमारा दृष्टिकोण– इस आयात में कहा गया कि अल्लाह ने रात बनायी कि मनुष्य आराम करे और दिन बनाया कि दौड़-धूप करे. लेकिन हिन्दू दृष्टि से इसका एक और गंभीर अर्थ है. वेदों में कहा गया कि हमें अंधकार से प्रकाश की ओर ले चलो. उसी प्रकार इस आया में कहा गया कि अल्लाह ने पहले रात बनाई और उसके बाद दिन को प्रकाशमान बनाया. इस अंधकार से प्रकाश तक ले जाने की बात को उदार बताया गया.
साथ में कहा गया कि अधिकतर लोग इस सुखद प्रक्रिया के लिए अल्लाह या ब्रह्म के प्रति कृतज्ञ नहीं होते हैं. कुरान का मूल पैगाम यह है कि विकास की इस प्रक्रिया में हमें कुरान की शिक्षा से यह समझ आये कि यह प्रकाश अल्लाह या ब्रह्म की देन है और हम उसकी ओर मुड़ें. यानी सुख, भोग और प्रकाश के माध्यम से अल्लाह या ब्रह्म की प्राप्ति हो. यह कुरान की सकारात्मक स्ट्रैटिजी है.
पूजनीय
17A] आयत- अल्लाह ने गवाही दी कि उसके सिवा कोई पूज्य नहीं; और फ़रिश्तों ने और उन लोगों ने भी जो न्याय और संतुलन स्थापित करनेवाली एक सत्ता को जानते हैं. उस प्रभुत्वशाली, तत्वदर्शी के सिवा कोई पूज्य नहीं (कुरान 3:18).
17B] आयत- अल्लाह, कि उसके सिवा कोई पूज्य-प्रभू नहीं. उसके नाम बहुत ही अच्छे हैं (कुरान 20:8).
17C] आयत- अल्लाह वह है जिसके सिवा कोई पूज्य-प्रभु नहीं. अतः अल्लाह ही पर ईमानवालों को भरोसा करना चाहिए (कुरान 64:13).
हमारा दृष्टिकोण– हिन्दू भी मानते हैं कि अल्लाह या ब्रह्म की सत्ता ही सर्वोपरि है और अंतिम अधिकार अल्लाह या ब्रह्म का ही है. लेकिन कुरान में जो कहा गया कि अल्लाह या ब्रह्म के सिवा दूसरा कोई पूज्य नहीं है इस पर हिन्दू धर्म में थोड़ा अलग मत है. हिन्दुओं का मानना है कि अल्लाह या ब्रह्म का चिंतन करना कठिन होता है इसलिए अल्लाह तक पहुंचने के लिए कुछ सीढ़ियां उपयोग करनी पड़ती है जिसमें मूर्तिपूजा, देवता और अवतार शामिल होते हैं.
कुरान का कहना है कि देवता और अवतार पूज्य नहीं होते और केवल अल्लाह या ब्रह्म पूज्य होता है. इसमें हिन्दुओं को कोई विरोध नहीं है कि अल्लाह या ब्रह्म पूज्य है लेकिन उस पूज्य अल्लाह या ब्रह्म तक पहुंचने के लिए जो सीढ़ियों की व्यवस्था हिन्दू धर्म में की गई है उस पर मतभेद है. इस्लाम में भी मस्जिद और काबा आदि को सीढ़ी के रूप में देखा जा सकता है लेकिन मस्जिद और काबा की पूजा नहीं की जाती जिस प्रकार देवता और अवतार की हिंदुओं में पूजा की जाती है. सारांश यह है की केवल अल्लाह या ब्रह्म सर्वोपरी और परमसत्ता है इसमें हिन्दू और इस्लाम धर्म में कोई अंतर नहीं है लेकिन उस अल्लाह या ब्रह्म तक पहुंचने के रास्ते में इस्लाम सीधे हर व्यक्ति को अल्लाह या ब्रह्म तक पहुंचने के लिए कहता है जबकि हिन्दू धर्म उसके बीच में सीढ़ियों को स्वीकार करता है.
18] आयत- अल्लाह ही पूज्य है, उसके सिवा कोई पूज्य नहीं. वह जीवन्त है, सबको सँभालने और क़ायम रखनेवाला (कुरान 3:2).
हमारा दृष्टिकोण– इस सृष्टि के हर कण की चेतना अल्लाह या ब्रह्म से जुड़ी हुई है जिस प्रकार कक्षा में हर छात्र की चेतना अध्यापक से जुड़ी रहती है और अध्यापक उन्हें बताता रहता है कि क्या पढ़ना है, कैसे पढ़ना है इत्यादि. इसी प्रकार अल्लाह या ब्रह्म सम्पूर्ण सृष्टि के प्रत्येक कण को दिशा देता रहता है. अल्लाह या ब्रह्म के दिमाग में एक प्लान है जिसके अनुसार इस सृष्टि का चलन हो रहा है. जो लोग अल्लाह या ब्रह्म के प्लान के अनुसार चलते हैं उनका कार्य सफल होता जाता है. इसके विपरीत जो लोग अल्लाह या ब्रह्म द्वारा दी गई दिशा को नहीं अपनाते हैं वे संकट में पढ़ते हैं.
यह सफलता एवम संकट किस प्रकार कार्यान्वयित होता है इसपर हमारी समझ है कि जो लोग अल्लाह या ब्रह्म के प्लान के अनुसार चलते हैं और उनको दूसरों का सहयोग मिलता है और उनका कार्य सफल होता जाता है. इसके विपरीत जो लोग अल्लाह या ब्रह्म द्वारा दी गई दिशा को नहीं अपनाते हैं वे संकट में पढ़ते हैं क्योंकि दुसरे उनका विरोध करते हैं. यानी अल्लाह दूसरों के माध्यम से सफलता या संकट देता है. अल्लाह या ब्रह्म द्वारा बताई गई दिशा को अधिकांश लोग स्वीकार करते हैं और उसी के अनुसार व्यवहार करते हैं. इसलिए “अल्लाह या ब्रह्म सबको संभालने वाला है” का अर्थ यह हुआ कि जो लोग अल्लाह या ब्रह्म के निर्देश के अनुसार अपना कार्य करते हैं उन्हें दूसरे लोगों से सहयोग मिलता है और उनके कार्य सफल होते रहते हैं. हर व्यक्ति स्वतंत्र है कि वह अल्लाह या ब्रह्म के निर्देश को माने या न मानें लेकिन यदि नहीं मानेगा तो उसे अल्लाह के निर्देशों को मानने वालों के द्वारा सजा दी जाती है.
19] आयत- अल्लाह कि उसके सिवा कोई इष्ट -पूज्य नहीं, वह महान सिंहासन का रब है.” (कुरान 27:26).
हमारा दृष्टिकोण– यहां अल्लाह या अल्लाह या ब्रह्म को महान सिंहासन पर विराजमान बताया गया है. देश के जितने भी नागरिक होते हैं उन पर प्रधानमंत्री राज्य करता है और प्रधानमंत्री उनके द्वारा पूज्य होता है. प्रधानमंत्री केवल अपने देश के नागरिकों द्वारा पूज्य होता है. लेकिन अल्लाह या ब्रह्म सम्पूर्ण विश्व के सभी नागरिकों द्वारा पूज्य होता है. इसके अलावा अल्लाह केवल मनुष्यों द्वारा ही नहीं बल्कि पशुओं, वनस्पतियों और बालू आदि पदार्थों द्वारा भी पूजनीय होता है जैसे कुरान में कहा गया कि अल्लाह ने पहाड़ों से पूछा कि तुम मेरे समक्ष सर झुकाओ तो उन्होंने स्वीकार किया. इससे पता लगता है कि अल्लाह या ब्रह्म का सिंहासन इतना विशाल है की वह केवल मनुष्यों द्वारा नही बल्कि इस सृष्टि में जो कुछ है वह इन सब द्वारा पूजनीय होता है.
क़यामत
20] आयत- अल्लाह के सिवा कोई इष्ट-पूज्य नहीं. वह तुम्हें क़ियामत के दिन की ओर ले जाकर इकट्ठा करके रहेगा, जिसके आने में कोई संदेह नहीं, और अल्लाह से बढ़कर सच्ची बात और किसकी हो सकती है (कुरान 4:87).
हमारा दृष्टिकोण– इस आयात का पारंपरिक अर्थ है कि क़यामत के दिन सभी जीवित और मृत व्यक्तियों को अल्लाह के सामने निर्णय के लिए खड़ा किया जायेगा. कुरान में स्पष्ट “तुम्हे” शब्द बहुवचन में उपयोग किया गया है.
आगे इस आयात की हमारी समझ है कि सभी व्यक्तियों की मृत्यु के बाद उनकी आत्मा आकाश में जाती है और पूर्व में मृत लोगों की आत्माओं का सामना होता है. तब न्यायालय लगता है. मृत आत्माओं को पूर्व की आत्माएं अच्छे कार्यों के लिए अल्लाह के आदेशों के अनुसार आशीर्वाद देती हैं और बुरे कार्यों के लिए सजा देती है. इसे ही कयामत कहा जाता है. इस प्रकार अल्लाह का प्रभुत्व और आत्माओं द्वारा निर्णय—दोने बातें सही बैठती हैं. मृत्यु अनिवार्य है इसलिए कहा गया कि अल्लाह कयामत के दिन की तरफ सभी व्यक्तियों को ले जाते हैं.
21] आयत- अल्लाह ही प्राणों को उनकी मृत्यु के समय ग्रस्त कर लेता है और जिसकी मृत्यु नहीं आई उसे उसकी निद्रा की अवस्था में (ग्रस्त कर लेता है). फिर जिसकी मृत्यु का फ़ैसला कर दिया है उसे रोक रखता है. और दूसरों को एक नियत समय तक के लिए छोड़ देता है. निश्चय ही इसमें कितनी ही निशानियाँ हैं सोच-विचार करनेवालों के लिए (कुरान 39:42).
हमारा दृष्टिकोण– इस आया में बताया गया कि व्यक्ति गहरी निद्रा में सुषुप्ति के स्तर पर चला जाता है तो भी वह अल्लाह या अल्लाह या ब्रह्म के संपर्क में रहता है. इसके बाद जो मृत्यु को प्राप्त होते हैं उनकी आत्मा आकाश में जाती है. परंपरा के अनुसार इस समय अल्लाह स्वयं न्याय देते हैं. लेकिन हमारी समझ है कि यह न्याय अल्लाह के द्वारा दूसरी आत्माओं के माध्यम से न्याय दिया जाता है. मृत्यु के बाद मृत आत्मा का आकाश में दूसरी आत्माओं से उसका संपर्क होता है और वहाँ उस न्यायालय का संचालन अल्लाह या ब्रह्म करता है. कुछ लोगों को सुषुप्ति के बाद अल्लाह वापस संसार में जाग्रित अवस्था में भेज देता है और ये क्रम तब तक चलता रहता है जब तक उनका समय पूरा ना हो जाये.
दयालु
22A] आयत- या, तेरे प्रभुत्वशाली, बड़े दाता रब की दयालुता के ख़ज़ाने उनके पास हैं? (कुरान 38:9).
22B] आयत- तो सम्भव है कि अल्लाह ऐसे लोगों को छोड़ दे; क्योंकि अल्लाह छोड़ देनेवाला और बड़ा क्षमाशील है (कुरान 4:99).
हमारा दृष्टिकोण– कुरान के अनुसार मनुष्य जीवन का उद्देश्य अल्लाह के प्रति वापस लौटना है. इसी बात को हिन्दू धर्म में ब्रह्मलीन होना बताया गया है. अल्लाह को प्राप्त करने के लिए मनुष्य को इस जीवन में तमाम कार्य करने पड़ते हैं जिस प्रक्रिया में चेतना ऊपर उठे और अंत में अल्लाह तक पहुंचे. इस प्रक्रिया में यदि किसी व्यक्ति द्वारा अल्लाह के आदेश को सही नहीं समझा गया और उसने कोई गलत कदम उठाया तो अल्लाह उसको क्षमा कर देता है. अल्लाह चाहता है कि चेतना का विकास हो. अगर किसी ने गलती की तो उसे सजा देने से चेतना का विकास नहीं बढ़ता जबकि उसे क्षमा कर दिया जाए और वह सही दिशा में चले तो आगे चेतना का विकास होता रहता है. इसलिए कहा गया कि अल्लाह क्षमाशील है. जिन लोगों द्वारा गलती की जाती है उनको सही दिशा में ला कर उन्हें अल्लाह तक पहुंचने का अवसर दिया जाये या ब्रह्मलीन होने का अवसर दिया जाये.
23] आयत- अल्लाह अपने बन्दों पर अत्यन्त दयालु है। वह जिसे चाहता है रोज़ी देता है. वह शक्तिमान, अत्यन्त प्रभुत्वशाली है (कुरान 42:19).
हमारा दृष्टिकोण– इस आया में कहा गया कि अल्लाह जिसे चाहता है उसे रोजी देता है. इसका यह अर्थ नहीं कि अल्लाह सिरफिरा है या अपने मनचाहे जैसा उलटफेर करता रहता है. सही स्थिति यह है कि यह विश्व इतना विशाल है कि इसमें अल्लाह के निर्देश को समझना अत्यंत कठिन है. हमें समझ नहीं आता कि अल्लाह ने क्या आदेश दिए और हमें किस दिशा में चलना है. अतः जो यह कहा गया कि जिसे अल्लाह चाहता है उसे रोजी देता है उसको ऐसा समझना चाहिए कि सही दिशा हमारी समझ से परे है इसलिए हमें लगता है कि अल्लाह ने जिसे चाहा वैसा कर दिया.
24] आयत- यह बात तो सुन ली. और जो कोई बदला ले, वैसा ही जैसा उसके साथ किया गया और फिर उसपर ज़्यादती की गई, तो अल्लाह अवश्य उसकी सहायता करेगा. निश्चय ही अल्लाह दरगुज़र करनेवाला (छोड़ देनेवाला), बहुत क्षमाशील है (कुरान 22:60).
हमारा दृष्टिकोण– यदि किसी ने गलती की और गलती के बाद उसे सजा मिली जिससे कि वह सही दिशा को पकड़े. यदि सजा कम दी गई तो वह सही दिशा को नहीं पकड़ेगा. और यदि सजा अधिक दे दी गई तो भी वह हतोत्साहित हो जाता है और पुनः सही दिशा को नहीं पकड़ता है. इसलिए कहा गया कि उस पर यदि जातती हुई तो अल्लाह उसकी सहायता करेगा यानी यदि सजा आवश्यकता से अधिक दी गई तो उसको अल्लाह सहायता करेगा कि वह सही दिशा में आये. मूल उद्देश्य यह है कि हर व्यक्ति अल्लाह के बताए गए दिशा का अनुसरण करें और इसके लिये केवल उतनी ही सजा दी जानी चाहिये जितनी कि व्यक्ति को सही दिशा में ले जाने को पर्याप्त है.