इस पोस्ट में हम कुरान कि उन आयात पर विचार करेंगे जिनमे काफिरों को क़त्ल आदि करने की बात कही गयी है. कुरान में बहुदेववादियों को मुशरिक कहा गया है. उन्हें सही रास्ते पर लाने की बात की गयी है. उन्हें क़त्ल करने को नहीं कहा गया. काफ़िर उन्हें कहा गया है जो जानते हुए भी सच को झुटलायें अथवा जहाँ राजनितिक वादाखिलाफी की गयी हो. मुशरिकों, बहुदेववादियों और अल्लाह की सत्ता को न मानने वालों के लिए जहन्नुम बताया गया है. उन्हें क़त्ल अदि करने के लिए नहीं कहा गया है.
1] आयात- फिर उस व्यक्ति से बढ़कर अत्याचारी कौन होगा, जिसने झूठ घड़कर अल्लाह पर थोपा और सत्य को झुठला दिया जब वह उसके पास आयात। क्या जहन्नम में इनकार करनेवालों का ठिकाना नहीं है? (कुरान 39:32)
हमारा दृष्टिकोण– इस आयात में कहा गया है की यदि किसी को अल्लाह की सत्ता के बारे में बताया जाए और उस बात को समझने के स्थान पर वह अल्लाह पर झूठे आरोप लगाए तो उसे अत्याचारी बताया गया है और कहा गया कि वह जहन्नम में जाएगा. यहां विशेष बात यह है कि वे लोग जो अल्लाह को नहीं मानते वे तब तक दोषी नहीं है जब तक उन्हें अल्लाह के बारे में बताया न जाए. अतः जो मूर्तिपूजक आदि अल्लाह या ब्रह्म की सत्ता को नहीं मानते हैं वे तब तक दोषी नहीं है जब तक उन्हें यह बताया न जाए की मूर्तियां ब्रह्म की सत्ता का ही अंश है और ब्रह्म तक पहुंचने के लिए एक सीढ़ी मात्र है. यह बात बताए जाने के बावजूद यदि कोई बिना अल्लाह या ब्रह्म को माने मूर्तिपूजा करता है तो वह अत्याचारी होगा. मोहम्मद साहब ने काबा में मूर्तियों के बारे में पहले बताया कि इनमे कोई शक्ति नहीं होती है. अल्लाह की आराधना मात्र करनी चाहिए. जब लोगों ने नहीं सुना तो उन्होंने मूर्तियों को तोड़ डाला.
कुरान 53:20 में कहा गया: “ तो भला तुम लोगों ने लात व उज्ज़ा और तीसरे पिछले मनात को देखा.” ये तीन स्त्रियों की मुर्तिया थी. इन्हें तोडा नहीं गया. सिर्फ यह कहा गया कि “वे तो बस कुछ नाम है जो तुमने और तुम्हारे बाप-दादा ने रख लिए है। अल्लाह ने उनके लिए कोई सनद नहीं उतारी। वे तो केवल अटकल के पीछे चले रहे है और उनके पीछे जो उनके मन की इच्छा होती है“ (53:23). मूर्तियों को तोड़ने की यहाँ कोई बात नही की गयी है.
2] आयात- और यदि मुशरिकों में से कोई तुमसे शरण माँगे, तो तुम उसे शरण दे दो, यहाँ तक कि वह अल्लाह की वाणी सुन ले। फिर उसे उसके सुरक्षित स्थान पर पहुँचा दो, क्योंकि वे ऐसे लोग हैं, जिन्हें ज्ञान नहीं। (कुरान 9:6)
हमारा दृष्टिकोण– इस आयात में स्पष्ट कहा गया कि वो लोग जो मुशरिक यानी बहु मूर्तिपूजक है उन्हें भी शरण देना चाहिए और उन्हें अल्लाह की बात बतानी चाहिए, फिर उन्हें किसी प्रकार की यातना नहीं देनी चाहिए क्योंकि वे ऐसे लोग हैं जिन्हें ज्ञान नहीं, मुख्य बात यह है कि जब अल्लाह का ज्ञान हो और उसकी अवमानना की जाए तब ही व्यक्ति दोषी माना जाता है.
3] आयात- लोगों को, जिन्होंने इनकार किया, कठोर यातना का मज़ा चखाएँगे, और हम अवश्य उन्हें उसका बदला देंगे जो निकृष्टतम कर्म वे करते रहे हैं. (कुरान 41:27)
हमारा दृष्टिकोण– यहां कहा गया कि जिन लोगों ने अल्लाह की सत्ता को इनकार किया. यहां इनकार शब्द महत्वपूर्ण है. केवल अल्लाह को न मानना जुल्म नहीं है. वह जुल्म तब हो जाता है जब बताए जाने पर भी उसका इनकार किया जाता है.
4] आयात- हमने आकाशों और धरती को और जो कुछ उन दोनों के मध्य है उसे केवल हक़ के साथ और एक नियत अवधि तक के लिए पैदा किया है। किन्तु जिन लोगों ने इनकार किया है, वे उस चीज़ को ध्यान में नहीं लाते हैं जिससे उन्हें सावधान किया गया है। (कुरान 46:3)
हमारा दृष्टिकोण– पुनः यहां पर कहा गया कि जिन लोगों ने अल्लाह की सत्ता को इनकार किया है उन्हें सावधान किया गया था लेकिन उन्होंने फिर भी इनकार किया तब वे जुल्म करते हैं और उन्हें अल्लाह उसकी सजा जहन्नम में देता है.
5] आयात- ऐ नबी! इनकार करनेवालों और कपटाचारियों से जिहाद करो और उनके साथ सख़्ती से पेश आओ. उनका ठिकाना जहन्नम है और वह अन्ततः पहुँचने की बहुत बुरी जगह है. (कुरान 66:9)
हमारा दृष्टिकोण– यहां पर अल्लाह की सत्ता से इनकार करने वाले और कपटाचारियों को एक ही श्रेणी में रखा गया है यानी जिन लोगों को अल्लाह का पैगाम पहुंच जाता है और उसके बावजूद वे अल्लाह को इनकार करते हैं तो वे कपटाचारी जैसे ही होते हैं और उनके साथ सख्ती की जानी चाहिए.
6] आयात- निस्संदेह किताबवालों और मुशरिकों (बहुदेववादियों) में से जिन लोगों ने इनकार किया है, वे जहन्नम की आग में पड़ेंगे; उसमें सदैव रहने के लिए। वही पैदा किए गए प्राणियों में सबसे बुरे हैं। (कुरान 98:6)
हमारा दृष्टिकोण– यहूदी धर्म में भी गॉड या अल्लाह या ब्रह्म की सत्ता मानी जाती है. कुरान में कहा गया कि यहूदियों ने मूसा की बात नहीं मानी. लेकिन यह नहीं बताया गया कि क्या बात नहीं मानी. हमारी समझ से व्यवहार में यहूदी मूसा के नियमो को प्राथमिकता देते हैं. 600 से अधिक नियम बताये गए हैं. इतना सही है की मूसा के पर्वत पर जाने के बाद यहूदियों ने सोने का बछड़ा बनाया था. लेकिन उसे मूसा की अवमानना नहीं कहा जा सकता है चूँकि मूसा के आने के बाद उन्होंने उस बछड़े को चूर चूर कर दिया और मूसा कि बात को मान लिया.
इसी प्रकार ईसाइयों में गॉड की सत्ता को माना जाता है लेकिन वे ईसामसी को गॉड की संतान बताते हैं. व्यवहार में वे ईसा मसीह को महत्व देते हैं. इसी प्रकार सेबीअन, मुशरिक या बहुत से देवताओं को मानने वाले अल्लाह या ब्रह्म की सत्ता को स्वीकार करें तो भी वे व्यहवार में मूर्ति तक सीमित रहते हैं. क्योंकि इन लोगों को गॉड अल्लाह या ब्रह्म की सत्ता के बारे में ज्ञान है या बताया जा चुका है फिर भी ये उसे झुठलाते हैं इसलिए इनका स्थान जहन्नम में बताया गया है. विशेष बात यह है कि जब तक लोगों को गॉड, अल्लाह या ब्रह्म की सत्ता की ठोस सूचना न दी जाए तब तक उनके उनके द्वारा अल्लाह को न मानने में कोई दोष नहीं है. जब वे जानते हुए भी अल्लाह की सत्ता को नकारते हैं तब ही वे दोषी बनते हैं.
7] आयात- कह दो, “यह सत्य है तुम्हारे रब की ओर से। तो अब जो कोई चाहे माने और जो चाहे इनकार कर दे।” हमने तो अत्याचारियों के लिए आग तैयार कर रखी है, जिसकी क़नातों ने उन्हें घेर लिया है। यदि वे फ़रियाद करेंगे तो फ़रियाद के प्रत्युत्तर में उन्हें ऐसा पानी मिलेगा जो तेल की तलछट जैसा होगा; वह उनके मुँह भून डालेगा। बहुत ही बुरा है वह पेय और बहुत ही बुरा है वह विश्रामस्थल! (कुरान 18:29)
हमारा दृष्टिकोण– इस आयात में बताया गया कि हर व्यक्ति स्वतंत्र है कि वह अल्लाह या ब्रह्म की सत्ता को माने या इनकार कर दे. यदि वह जानते हुए भी इनकार करता है तो वह अपराध करता है और वह नरक में जाएगा. यहां महत्व इनकार करने का है यानी जानते हुए भी इनकार करना ही अपराध है अनजाने में अल्लाह या ब्रह्म को न मानना अपराध नहीं है.
8] आयात- ऐ ईमान लानेवालो! उन इनकार करनेवालों से लड़ो जो तुम्हारे निकट हैं और चाहिए कि वे तुममें सख़्ती पाएँ, और जान रखो कि अल्लाह डर रखनेवालों के साथ है. (कुरान 9:123)
हमारा दृष्टिकोण– यहां पुनः इनकार करने वालों से लड़ने की बात कही गई है. यानी जो लोग अल्लाह या ब्रह्म की सत्ता को नहीं मानते हैं उनके प्रति सख्त व्यहवार करने की बात कही गई है. जैसे हिन्दू समाज में नास्तिकों की भर्त्सना की जाती है क्योंकि वे ब्रह्म की सत्ता को नहीं मानते हैं. उसी प्रकार यहां पर इनकार करने वालों की भर्त्सना की गई है.
9] आयात- या ये लोगों से इसलिए ईर्ष्या करते हैं कि अल्लाह ने उन्हें अपने उदार दान से अनुग्रहीत कर दिया? हमने तो इबराहीम के लोगों को किताब और हिकमत (तत्वदर्शिता) दी और उन्हें बड़ा राज्य प्रदान किया. (कुरान 4:54)
जिन लोगों ने हमारी आयतों का इनकार किया, उन्हें हम जल्द ही आग में झोंकेंगे. जब भी उनकी खालें पक जाएँगी, तो हम उन्हें दूसरी खालों में बदल दिया करेंगे, ताकि वे यातना का मज़ा चखते ही रहें. निस्संदेह अल्लाह प्रभुत्वशाली, तत्वदर्शी है. (कुरान 4:56)
हमारा दृष्टिकोण– आयात 4:54 में कहा गया कि जो लोग नबी इब्राहीम की सीख को नकारते हैं उन्हें अल्लाह आग में झोंकेगा. इब्राहीम की मुख्य शिक्षा यह थी की मूर्तियां अपने में सत्ताधारी नहीं है. उनमें स्वयं की कोई शक्ति नहीं है इसलिए उनकी पूजा करने के स्थान पर अल्लाह या ब्रह्म की पूजा करनी चाहिए. जिन लोगों को यह बात बताई जाती है लेकिन वे नहीं मानते उनके लिए कहा गया कि मृत्यु के बाद उन्हें आग में झोंका जाएगा.
10] आयात- फिर, जब हराम (प्रतिष्ठित) महीने बीत जाएँ तो मुशरिकों को जहाँ कहीं पाओ क़त्ल करो, उन्हें पकड़ो और उन्हें घेरो और हर घात की जगह उनकी ताक में बैठो. फिर यदि वे तौबा कर लें और नमाज़ क़ायम करें और ज़कात दें तो उनका मार्ग छोड़ दो, निश्चय ही अल्लाह बड़ा क्षमाशील, दयावान है. (कुरान 9:5)
हमारा दृष्टिकोण– यहां कहा गया कि मुश्रिकों को क़त्ल करो. इस आयात की पृष्ठभूमि यह है कि कुछ लोगों ने जो राजनैतिक समझौता हुआ था उसका पालन नहीं किया. जिस प्रकार राजनीति में वादाखिलाफी करने वाले पर आक्रमण किया जाता है उसी प्रकार यहां कहा गया कि जो लोग अपनी राजनीतिक बात के ऊपर सही न उतरें उन्हें दंड देना उचित है.
11] आयात- क्या तुम ऐसे लोगों से नहीं लड़ोगे जिन्होंने अपनी क़समें तोड़ डालीं और रसूल को निकाल देना चाहा और वही हैं जिन्होंने तुमसे छेड़ में पहल की? क्या तुम उनसे डरते हो? यदि तुम मोमिन हो तो इसका ज़्यादा हक़दार अल्लाह है कि तुम उससे डरो. (कुरान 9:13)
उनसे लड़ो अल्लाह तुम्हारे हाथों से उन्हें यातना देगा और उन्हें अपमानित करेगा और उनके मुक़ाबले में वह तुम्हारी सहायता करेगा. और ईमानवाले लोगों के दिलों का दुखमोचन करेगा. (कुरान 9:14)
हमारा दृष्टिकोण– आयात 9:13 में बताया गया कि कुछ लोग थे जिन्होंने वादाखिलाफी की और मुहम्मद साहब को मक्का से निकालने की साजिश रची. उनसे युद्ध करना चाहिए. यह सीधी राजनीतिक बात है कि जो लोग राजनीतिक सत्ता का विरोध करते हैं उन्हें राजनीतिक दंड दिया जाता है.
12] आयात- सिवाय उन मुशरिकों के जिनसे तुमने संधि-समझौते किए, फिर उन्होंने तुम्हारे साथ अपने वचन को पूर्ण करने में कोई कमी नहीं की और न तुम्हारे विरुद्ध किसी की सहायता ही की, तो उनके साथ उनकी संधि को उन लोगों के निर्धारित समय तक पूरा करो। निश्चय ही अल्लाह को डर रखनेवाले प्रिय हैं। (कुरान 9:4)
हमारा दृष्टिकोण– इस आयात में स्पष्ट कहा गया कि यदि मुशरिक यानी बहुदेववादीयों ने कोई समझौता किया और उसको पूर्ण किया तो उनके साथ संधि करके उनको उनके साथ मैत्रीपूर्ण व्यवहार करना चाहिए जैसे दो राजनीतिज्ञ एक दूसरे को दिए गए वचन पर टिके रहते हैं तो उनके साथ मैत्री की जाती है. यह सीधी राजनीतिक शिक्षा है.
13] आयात- यदि कपटाचारी और वे लोग जिनके दिलों में रोग है और मदीना में खलबली पैदा करनेवाली अफ़वाहें फैलाने वाले बाज़ न आएँ तो हम तुम्हें उनके विरुद्ध उभार खड़ा करेंगे. फिर वे उसमें तुम्हारे साथ थोड़ा ही रहने पाएँगे. (कुरान 33:60)
फिटकारे हुए होंगे. जहाँ कहीं पाए गए पकड़े जाएँगे और बुरी तरह जान से मारे जाएँगे. (कुरान 33:61)
हमारा दृष्टिकोण– आयात 33:60 में कहा गया कि जो मदीना में लोग प्रोफेट मोहम्मद के विरोध में अफवाहें पैदा करते थे उन्हें मारा जाना चाहिए जो कि पूरी तरह राजनीतिक स्ट्रैटेजी है.
14] आयात- और जहाँ कहीं उनपर क़ाबू पाओ, क़त्ल करो और उन्हें निकालो जहाँ से उन्होंने तुम्हें निकाला है, इसलिए कि फ़ितना (उपद्रव) क़त्ल से भी बढ़कर गम्भीर है। लेकिन मस्जिदे-हराम (काबा) के निकट तुम उनसे न लड़ो जब तक कि वे स्वयं तुमसे वहाँ युद्ध न करें। अतः यदि वे तुमसे युद्ध करें तो उन्हें क़त्ल करो – ऐसे इनकारियों का ऐसा ही बदला है। (कुरान 2:191)
हमारा दृष्टिकोण– इसमें कहा गया कि जिन लोगों ने आपको किसी स्थान से पहले निकाल दिया है उन्हें अब आप युद्ध करके उस स्थान से निकालें और उनका कत्ल करें. यह सीधी राजनीतिक बात है. इसमें केवल इतना जोड़ा गया की काबा के निकट यह लड़ाई नहीं करनी चाहिए.
15] आयात- (मुसलमानों) फिर तुमको क्या हो गया है कि तुम मुनाफ़िक़ों के बारे में दो फ़रीक़ हो गए हो (एक मुवाफ़िक़ एक मुख़ालिफ़) हालॉकि ख़ुद ख़ुदा ने उनके करतूतों की बदौलत उनकी अक्लों को उलट पुलट दिया है क्या तुम ये चाहते हो कि जिसको ख़ुदा ने गुमराही में छोड़ दिया है तुम उसे राहे रास्त पर ले आओ हालॉकि ख़ुदा ने जिसको गुमराही में छोड़ दिया है उसके लिए तुममें से कोई शख्स रास्ता निकाल ही नहीं सकता (4:88).
वे तो चाहते हैं कि जिस प्रकार वे स्वयं अधर्मी हैं, उसी प्रकार तुम भी अधर्मी बनकर उन जैसे हो जाओ; तो तुम उनमें से अपने मित्र न बनाओ, जब तक कि वे अल्लाह के मार्ग में घर-बार न छोड़ें. फिर यदि वे इससे पीठ फेरें तो उन्हें पकड़ो, और उन्हें क़त्ल करो जहाँ कहीं भी उन्हें पाओ – तो उनमें से किसी को न अपना मित्र बनाना और न सहायक. (कुरान 4:89)
हमारा दृष्टिकोण– इन आयात में कहा गया कि जो तुम्हारे साथ रह कर भी गलत काम करते है उन्हें अल्लाह ने उनके हाल पर छोड़ दिया है. उन्हें सही रस्ते पर लाने का प्रयास नहीं करना चाहिए जब अल्लाह ने ही उन्हें छोड़ दिया है. उनसे दोस्ती नहीं करनी चाहिए. जहां तक कत्ल करने का विषय है वह तभी आता है जब वे पीठ फेरें यानी किसी राजनीतिक उपद्रम में लिप्त होते हैं.
16] आयात- ऐ ईमान लानेवालो! तुमसे पहले जिनको किताब दी गई थी, जिन्होंने तुम्हारे धर्म को हँसी-खेल बना लिया है, उन्हें और इनकार करनेवालों को अपना मित्र न बनाओ. और अल्लाह का डर रखो यदि तुम ईमानवाले हो. (कुरान 5:57)
हमारा दृष्टिकोण– पूर्व में यहूदियों और ईसाइयों को किताब दी गई थी यानी उन्हें गॉड या ब्रह्म की शिक्षा दी गई थी लेकिन उन्होंने उसको हँसी खेल बना लिया और उसे गंभीरता से नहीं लिया. यहूदियों ने जानते हुए भी गॉड को छोड़कर मूसा के कानूनों को अपनाया. ईसाईयों ने जानते हुए भी गॉड को छोड़कर ईसामसी को गॉड की संतान बताया और उन्हें अपनाया. सेबियनों ने जानते हुए भी गॉड को छोड़कर मूर्तिपूजा को अपनाया. ऐसे लोगों को मित्र नहीं बनाना चाहिए क्योंकि संगत का प्रभाव पड़ता है.
17] आयात- ऐ नबी! मोमिनों को जिहाद पर उभारो. यदि तुम्हारे बीस आदमी जमे होंगे, तो वे दो सौ पर प्रभावी होंगे और यदि तुममें से ऐसे सौ होंगे तो वे इनकार करनेवालों में से एक हज़ार पर प्रभावी होंगे, क्योंकि वे नासमझ लोग हैं. (कुरान 8:65)
हमारा दृष्टिकोण– इस आयात में बताया गया कि कम संख्या में होते हुए भी वे लोग युद्ध में विजयी होते हैं जिनकी अल्लाह या ब्रह्म में आस्था होती है क्योंकि तब संसार की मनोवैज्ञानिक शक्तियां सहायता करती है.