अक्सर लोग कहते हैं कि पुनर्जन्म एक कपोल-कल्पना मात्र है, और इसमें कोई सच्चाई नहीं है। लेकिन जीवन में हमें कुछ विशेष क्षण ऐसे दिखाई देते हैं जो इस बात को चुनौती देते हैं। जैसे गर्भ में एक समय आता है जब भ्रूण में धड़कन शुरू हो जाती है। धड़कन के पहले वह निष्क्रिय होता है, और धड़कन के बाद वह सजीव हो जाता है। यह क्षण क्या दर्शाता है? इसी प्रकार जब किसी की मृत्यु होती है, तो एक क्षण पहले वह जीवित होता है और एक क्षण बाद मृत। आखिर वह कौन-सा परिवर्तन होता है जो जीवन को मृत्यु में परिवर्तित कर देता है? यह समझने के लिए हमें यह मानना होगा कि जब आत्मा शरीर में प्रवेश करती है तो भ्रूण सजीव हो जाता है और जब आत्मा शरीर को छोड़ देती है तो वह शरीर मृत हो जाता है। यह वही आत्मा है जो जीवन और मृत्यु के बीच की कड़ी है।
बाइबल एक्लेसिआस्टिस 12:7 में कहा गया है, ” तब मिट्टी ज्यों की त्यों पृथ्वी में मिल जाएगी, और आत्मा (spirit) परमेश्वर के पास, जिसने उसे दिया लौट जाएगी।”
बाइबल कहती है कि जब मृत्यु होती है तो हमारा शरीर मिट्टी में मिल जाता है और आत्मा परमेश्वर के पास लौट जाती है जिसने उसे दिया था। इसके विपरीत, कुछ लोग यह मानते हैं कि जीवन एक मोमबत्ती की लौ के समान है—जब मोमबत्ती बुझ जाती है तो लौ समाप्त हो जाती है और उसमें कुछ भी शेष नहीं रहता। लेकिन यह दृष्टिकोण सही नहीं है। वास्तव में, जो लौ थी वह मोमबत्ती के बुझने के बाद भी सुप्त अवस्था में उस धागे में ही रहती है और उसे फिर से प्रज्वलित किया जा सकता है। बचपन में हम अक्सर छोटी-छोटी मोमबत्तियों के बचे हुए मोम को जोड़कर एक नई मोमबत्ती बना लेते थे। यह भी एक प्रकार से पुनर्जन्म की ही तरह है—पुराने मोम का एक नया रूप, एक नई शुरुआत। इसीलिए यह कहना गलत होगा कि मोमबत्ती के बुझने से कुछ समाप्त हो जाता है। जैसे उस मोम का पुनर्जन्म हो सकता है, उसी प्रकार जीवन और आत्मा का भी पुनर्जन्म हो सकता है। मोमबत्ती का बुझना अंत नहीं है बल्कि एक नई शुरुआत का संकेत है।
अब प्रश्न उठता है कि क्या पुनर्जन्म का कोई प्रमाण है? प्रमाण की बात वैसे ही है जैसे बिजली के हाई टेंशन तार का। यदि आपको यह जानना हो कि उस तार में बिजली है या नहीं तो आप तार को छूकर नहीं देखेंगे क्योंकि ऐसा करना खतरनाक हो सकता है। इसके बजाय आप अपने माता-पिता, किसी इलेक्ट्रीशियन या विशेषज्ञ से पूछेंगे और उनकी बातों पर विश्वास करेंगे। वे आपके लिए प्रमाण होंगे कि उस तार में बिजली है या नहीं।
उसी प्रकार आत्मा और पुनर्जन्म के विषय में भी हमें जानने के लिए सीधे अनुभव की आवश्यकता नहीं है। इसके बारे में हमें विशेषज्ञों, विद्वानों और संतों से बातचीत करनी चाहिए। अगर दस में से नौ लोग इस बात पर एकमत हों कि पुनर्जन्म होता है तो हमें इसे स्वीकार करना चाहिए। अगर उनकी राय अलग-अलग हो तो इस पर विचार-विमर्श करना चाहिए या तर्क-वितर्क कर के अपनी व्यक्तिगत समझ बनानी चाहियें, ताकि हम एक निष्कर्ष पर पहुँच सकें।
प्रश्न उठता है कि पुनर्जन्म की प्रक्रिया का उद्देश्य क्या है? इसे हम एक कुंडली (स्पाइरल) के रूप में समझ सकते हैं। जैसे स्पाइरल के हर चक्कर के साथ हम थोड़े ऊपर उठते हैं, उसी प्रकार जन्म और मृत्यु के चक्र में आत्मा आध्यात्मिक रूप से ऊपर उठती है। आत्मा की कुछ इच्छाओं की पूर्ति के लिए जन्म होता है और जब ये इच्छाएं पूरी हो जाती हैं तो हम आध्यात्मिक उन्नति की ओर बढ़ते हैं। जैसे एक बच्चा पहले छोटे-छोटे खिलौनों से खेलता है और धीरे-धीरे उनसे ऊबकर आगे बढ़ जाता है ठीक वैसे ही कोई मनुष्य जन्म लेता है परिवार बनाता हैं शिक्षा प्राप्त करता हैं और अपने जीवन कि तमाम इच्छाओं कि पूर्ति कर स्पाइरल में ऊपर उठ जाता है. उसकी मृत्यु हो जाती है तब अगला चक्र शुरू हो जाता है.

आत्मा जीवन के अनुभवों के माध्यम से अपनी इच्छाओं की पूर्ति करती है और फिर उनसे ऊपर उठ जाती है। यह चक्र हमें हर नए जन्म में थोड़ा और आध्यात्मिक उन्नति की ओर ले जाता है जिससे आत्मा क्रमशः उच्चतर अवस्थाओं की ओर अग्रसर होती जाती है। इस बात को मुस्लिम संत ने बहोत सुन्दर रूप से कहा – रूमी ने कहा है, “मैं खनिज के रूप में मरा और पौधा बन गया, पौधे के रूप में मरा और जानवर बन गया, जानवर के रूप में मरा और इंसान बन गया। मुझे क्यों डरना चाहिए? मैं मरने के लिए कब छोटा था ? फिर भी एक बार में इंसान के रूप में मारूंगा, ऊपर से धन्य सवर्ग-दूतों के साथ उड़ने के लिए।”
रूमी ने चार विभिन्न रूपों में पुनर्जन्म का अनुभव किया है। इस विचार के अनुसार, आत्मा जीवन के विभिन्न रूपों में यात्रा करती है और आध्यात्मिक उन्नति की ओर बढ़ती है।
इसी क्रम में कुरान में कहा गया है कि “अल्लाह ने मौत और जिंदगी को इसलिए पैदा किया ताकि वह तुम्हारी परीक्षा ले सके कि तुम में से कौन सबसे अच्छे कर्म करता है” (कुरान 67:2) – इसका अर्थ है कि हमारे कर्मों पर निर्भर करता है कि हम स्पाइरल के अगले चरण में ऊपर जाएंगे या नीचे। यदि हमने अच्छे कर्म किए तो हम अगले जीवन में और ऊपर उठेंगे और यदि गलत कर्म किए तो नीचे गिरेंगे ताकि आप पुन: अपनी यात्रा फिर से शुरु करें ।
पुनर्जन्म के विरोध में एक तर्क यह दिया जाता है कि किसी समय यीशु कहीं जा रहे थे फिर उन्होंने एक मनुष्य को देखा जो जन्म का अन्धा था। और येशु के चेलों ने उनसे से पूछा, हे रब्बी, किस ने पाप किया था कि यह अन्धा जन्मा, इस मनुष्य ने, या उसके माता पिता ने? यीशु ने उत्तर दिया, कि न तो इस ने पाप किया था, न इस के माता पिता ने: परन्तु यह इसलिये हुआ कि परमेश्वर के काम उस में प्रगट हों।” (जॉन 9:1-2)
उसके बाद ईशा मसीह ने भूमि पर थूका और उस थूक से मिट्टी सानी, और वह मिट्टी उस अन्धे की आंखों पर लगाकर उस से कहा – जा शीलोह के कुण्ड में धो ले. उसने जाकर धोया और देखता हुआ लौट आया। लेकिन इस वक्तव्य से यह बात नहीं सपष्ट होती कि वह जन्म से अन्धा क्यों हुआ था क्योंकि ईशा मसीह यह भी कह रहे हैं कि न तो इस मनुष्य ने पाप किया न इसके माता-पिता ने, तो प्रश्न यह है कि वह अंधा पैदा क्यों हुआ?
इसका कारण यह है कि हिन्दू पद्धति में किसी भी परिणाम के तीन कारक बताए गए हैं: 1) प्रारब्ध, 2) प्रयास, 3) भाग्य। तीसरा जो कारक है – भाग्य—उसके कारण वह अंधा पैदा हुआ। इस विशाल संसार में सब कुछ नियम से नहीं चलता है। जैसे किसी व्यक्ति का सड़क पर चलते हुए बिना किसी कारणवश किसी दुर्घटना से सामना हो जाता है. सामने से आकर कोई गाड़ी ठोकर मार देती है। इसे क्या कहेंगे? उस व्यक्ति ने कोई गलती नहीं की, वह सड़क के नियमों का पालन कर रहा था फिर भी उसका भाग्य था कि गाड़ी चलाने वाले ने उसके टकर मार दी। कुछ घटनाएं हमारे नियंत्रण में नहीं होतीं, जैसे सड़क पर चलते हुए कोई दुर्घटना हो जाना। इसका कारण केवल हमारे कर्म नहीं हो सकते, इसमें भाग्य भी भूमिका निभाता है। लेकिन हमारे कर्म हमारे हाथ में होते हैं, और यही हमें अपने जीवन को सुधारने का अवसर देता है। इसलिए हमें यह नहीं सोचना चाहिए कि जो कुछ हो रहा है वह केवल हमारे पूर्व के कर्मों के कारण हो रहा है। कर्म के अलावा भाग्य भी एक महत्वपूर्ण कारक होता है। लेकिन कर्म पर हमारा नियंत्रण है। अगर हमें अपने जीवन को सुधारना है तो चाहे भाग्य में कुछ भी हो, हम अपने कर्मों को सुधार सकते हैं और उसमें आगे बढ़ सकते हैं।
अगला प्रश्न यह है कि क्या हम अपनी ‘आत्मा’ को जान सकते हैं? भगवान बुद्ध ने ध्यान के माध्यम से अपने 70 पूर्व जन्मों को देखा था। ध्यान के माध्यम से हम अपने पूर्व जन्मों के बारे में जान सकते हैं। हालांकि, इस पर आपत्ति की जा सकती है कि यह भ्रम या ऑटो-सजेशन हो सकता है। लेकिन इस मामले में हमें उन सिद्ध पुरुषों की बातों पर ध्यान देना चाहिए, जिन्होंने ध्यान किया है।
कुछ लोग यह भी कहते हैं कि समाज पुनर्जन्म में विश्वास कराने के लिए किसी व्यक्ति को प्रभावित (कंडीशन) कर देता है। लेकिन यह बात दोनों ओर से है—कुछ लोग पुनर्जन्म में विश्वास करने के लिए प्रभावित(कंडीशन) करते हैं और कुछ लोग इसे नकारने के लिए।
एक तर्क यह दिया जाता है कि यदि पुनर्जन्म होता है तो नई आत्माएं कहाँ से आती हैं? इसका उत्तर रूमी ने दिया है कि जब मैं पशु था और अब मनुष्य बन गया हूँ. इसका मतलब यह है कि नई आत्माएं पशुओं से आती हैं, जो मनुष्य रूप में जन्म लेती हैं। तो यदि मनुष्यों की जनसंख्या बढ़ेगी, तो पशुओं में से अधिक को मनुष्य का शरीर मिलेगा। यदि मनुष्यों की संख्या घटेगी, तो जो मनुष्य मरेंगे, उन्हें मनुष्य शरीर नहीं मिलेगा, बल्कि उन्हें पशु शरीर में जाना पड़ेगा। तो इन बातों से पुनर्जन्म का खंडन नहीं होता है।
इस संदर्भ में कुरान की एक आयत से तर्क दिया जाता है कि पुनर्जन्म नहीं होता। इस आयत में कहा गया – “जब उनमें से किसी की मृत्यु आ जाती है, तो वह कहता है, ‘मेरे रब, मुझे वापस भेज दो ताकि मैं जो कुछ भूल गया हूँ, उसके संबंध में अच्छे कर्म करूँ।’ लेकिन नहीं! ये तो बस शब्द हैं जो वह कहता है। उनके पीछे एक ‘ बरज़ख ‘ (बाधा) लगा दी जाती है, उस दिन तक के लिए जब वे जीवित किये जाएँगे।” (कुरान 23:99-100)
कुरान का यह कहना बिल्कुल सही है कि आत्मा अपने पुराने शरीर में वापिस नहीं जा सकती परन्तु वह आत्मा आगे तो जा सकती है एक नये शारीर में। इसलिए, इससे पुनर्जन्म का खंडन नहीं होता। कुरान भी इसे नहीं नकारता आत्मा नया शरीर प्राप्त कर सकती है।
इसी क्रम में एक आयात यह कहती है – “जो लोग अभागे हैं, वे आग में जायेंगे। उनके लिए उसमें साँस छोड़ना और लेना है। वे उसमें तब तक रहेंगे जब तक आकाश और धरती टिके रहेंगे, जब तक कि तुम्हारा रब कुछ और न चाहे। (अल-कुरान: 11:106-108). इस आयत में विशेष बात यह है कि ” जब तक तुम्हारा रब कुछ और न चाहे।” यानी कि यदि अल्लाह चाहते हैं कि हम मरने के बाद कुछ और करें, तो ऐसा हो सकता है। केवल जब अल्लाह चाहेंगे कि हम वहीं जलते रहें, तब तक हमें जलना है। लेकिन यह अनिवार्य नहीं है कि हम सदा के लिए जलें। अल्लाह तो यह चाहते हैं कि हर व्यक्ति उनकी ओर अग्रसर हो। यदि कोई मनुष्य मरता है और वह अल्लाह तक नहीं पहुँच पाता, तो अल्लाह अवश्य चाहेंगे कि उसे फिर से एक मौका दिया जाए ताकि वह फिर से अपना प्रयास कर सके और ऊपर उठ सके। एक सीमा के बाद, जब कोई व्यक्ति सुधर चुका होता है, तब अल्लाह उसे मुक्ति देते हैं और उसे फिर धरती पर नए जन्म में भेज सकते हैं, ताकि वह फिर से जन्म लेकर अपना जीवन सुधार सके और अल्लाह को प्राप्त कर सके।
इसलिए यह कहा जा सकता है कि पुनर्जनम का – इस्लाम और इसाई धर्म में पूरी तरह से खंडन नहीं किया गया है. यह गलत परिभाषा के कारण कहा जाता है कि इन धर्मो में पुनर्जनम का खंडन है।
यदि हम पुनर्जन्म को मानें, तो इसका यह अर्थ नहीं है कि मनुष्य पापी हो जाएगा, क्योंकि उसे यह मालूम है कि यदि इस जन्म में उसने पाप किए, तो अगले जन्म में उसे निकृष्ट योनि मिलेगी। इसलिए, पुनर्जन्म के कारण वह पाप करे, ऐसी कोई संभावना नहीं बनती है। यह सब समझने और समझाने की बात है।
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