इस आलेख के प्रथम भाग में हमने बाइबल के मित्स्राईम को सिंध के चानू दाड़ो नामक स्थल पर स्थापित किया था। आज हम इस द्वितीय भाग में मथुरा को चानू दाड़ो पर स्थापित करने का प्रयास करेंगे जिससे की मित्स्राईम और मथुरा यह दोनों एक ही स्थान पर स्थापित हो जाए।
‘भागवत पुराण में मथुरा’
भागवत पुराण के महात्म्य खंड में बड़ा रोचक विवरण दिया हुआ है, जिसमे बताया गया है की भगवान कृष्ण के पौत्र परीक्षित जी के पुत्र वज्रनाभ जी मथुरा के राजा हुए। वज्रनाभ ने मुनि शाण्डिल्य से कहा – “मैं मथुरा मंडल के राज्य पर अभिषिक्त हूं तथापि मैं यहां निर्जन वन में ही रहता हूं। इस बात का मुझे कुछ भी पता नहीं है कि यहां की प्रजा कहाँ चली गयी।” अर्थात जिस स्थान पर वज्रनाभ मथुरा के राजा बने वह स्थान वीरान था। अब यह कैसे हो सकता है कि जहां पर एक विशाल नगरी हो, तमाम भगवान कृष्ण की लीलाएं हुई हो वह स्थान पूरा वीरान हो जाए और मकान इत्यादि के अवशेष भी ना हो, ऐसा कैसे संभव है?
मुनि शाण्डिल्य जी वज्रनाभ को उत्तर देते हैं – “हे वज्रनाभ! तुम मेरी आज्ञा से बहुत से गांव बसाओ। भगवान कृष्ण ने जहां जैसी लीला की है, उसके अनुसार उस स्थान का नाम रखकर तुम अनेकों गांव बसाओ। भगवान की लीला के जितने भी स्थल है सबकी तुम्हें ठीक-ठाक पहचान हो जाएगी।”
मथुरा का स्थान
मथुरा एक विशाल नगरी थी. भगवान कृष्ण मथुरा को छोड़कर द्वारका गए और द्वारका के बाद प्रभास तीर्थ में यादवों का विध्वंस हुआ। उसके बाद वह अनजान स्थान को चले गए. मान लिया जाय कि इस घटनाक्रम में मथुरा पूरी वीरान भी हो गई तो भी उसमें मकानों के अवशेष इत्यादि तो मिलने चाहिए थे. लेकिन जहां वज्रनाभ राजा बने हैं वह स्थान तो बिल्कुल वीरान है और उन्होंने स्वविवेक से से भगवान कृष्ण की लीलाओं के स्थान पर नए गांव बसाने का क्रम शुरू किया। इससे यह प्रतीत होता है कि जो वज्रनाभ की मथुरा थी वह वास्तविक मथुरा नहीं थी, क्योंकि वास्तविक मथुरा में वीरानता का कोई अर्थ नहीं होता है।
यमुना के मार्ग में परिवर्तन
दो मथुरा की कहानी यमुना से जुड़ती है। हम यह जानते हैं कि यमुना नदी हिमालय से निकलती है फिर यमुना नगर के पास से होते हुए ये नीचे मथुरा को होते हुए प्रयागराज में जाकर गंगा में मिल जाती है। लेकिन यह यमुना की वर्तमान स्थिति है, यह पूर्व में ऐसी नहीं थी। पूर्व में यमुना, यमुना नगर से पश्चिम की ओर बहती थी और कच्छ के रण में जाकर गिरती थी। यमुना को इस पूरी यात्रा में यमुना, उसके बाद चौटांग उसके बाद घग्गर और उसके बाद हाकड़ा इन चार नामों से जाना जाता था।

भूगर्भशास्त्री के एस वाल्दिया ने इस चित्र में दर्शाया है कि यमुना ने अपना पश्चिम जाने वाला रास्ता छोड़ कर के नया दक्षिण को जाने का रास्ता अपना लिया। यह बाद में मुड़ कर के प्रयागराज की ओर चला जाता है और इसी के ऊपर वर्तमान मथुरा स्थापित है। जब यमुना पहले पश्चिम को जाती थी तो मथुरा भी पश्चिम में था और जब यमुना दक्षिण पूरब को बहने लगी तो मथुरा भी इसके किनारे नया बस गया.
पश्चिम की यमुना का जब बहाव पश्चिम से बदल करके पूरब को हुआ तो पश्चिम की यमुना में कुंड बन गए। जैसे – नदी बह रही थी अब उसका पीछे से पानी आना बंद हो गया तो एक दिन में तो नदी सूखेगी नहीं. उसमें जगह जगह पानी स्थिर हो गया और उसके कुंड बन गए।
इस समय भगवान कृष्ण की हत्या करने के लिए कंस ने अक्रूर जी को गोकुल भेजा। श्रीमद् भागवत के दशम स्कंद, अध्याय 39 में कहा गया है कि – “अक्रूर जी ने दोनों भाइयों को रथ पर बैठाकर उनसे आज्ञा ली और यमुना जी के कुंड पर आकर वे विधि पूर्वक स्नान करने लगे।” अब यमुना जी का कुंड कहां से आ गया। यमुना तो एक महान नदी थी जिसमें हिमालय से पानी आता था और लगातार बहती थी उसका कुंड बन जाना इस बात का प्रमाण है कि जो वाल्दिया जी ने बताया कि यमुना का रास्ता बदल गया वह सही था और जो पुराना रास्ता था वह कुंडों में तब्दील हो गया और उस पुराने रास्ते पर यह पुरानी मथुरा स्थित थी।
चानू दाड़ो का मथुरा से संबंध
हमने खोज करना शुरू किया कि यमुना का जो पुराना रास्ता था उस पर कहां पर मथुरा हो सकती है? यमुना के पुराने रास्ते के अनुसार यमुना, यमुना नगर से पश्चिम को बही फिर हनुमानगढ़ इत्यादि को होते हुए यह दक्षिण में ‘कच्छ के रण’ में जाकर मिलती थी।
इसके किनारे दो प्रमुख स्थल है – कोट डीजी और चानू दाड़ो। इनमें चानू दाड़ो का जो रिहायश का समय है वह भगवान कृष्ण के जीवन काल से मिलता है। चानू दाड़ो में लोग लगभग 2500- 1500 ईसा पूर्व तक रहे थे और इसके बाद चानू दाड़ो समाप्त हो गया था और भगवान कृष्ण भी 1500 ईसा पूर्व के लगभग हुए थे।
इसलिए 1500 ईसा पूर्व के लगभग तीन घटनाए हमको एक साथ मिलती है – भगवान कृष्ण का जीवन काल, चानू दाड़ो की संस्कृति का लुप्त होना और यमुना का बहाव पश्चिम से पूर्व को होना। इससे यह आभास होता है कि चानू दाड़ो ही पुरानी मथुरा रही होगी। आज भी ईट के तमाम मकानों के अवशेष चानू दाड़ो में मिलते हैं।
चानू दाड़ो एक विशेष औद्योगिक शहर था। वहां पर तमाम लोहे के कारखाने थे. 1928 के लंदन न्यूज में एक लेख में चानू दाड़ो के बने हुए सामान के विषय में बताया गया है और कहा गया है कि क्या यह भारत का शेफील्ड था? जिस प्रकार इंग्लैंड में शेफील्ड को लोहे के उपकरणों के निर्माण का स्थान माना जाता है उसी प्रकार चानू दाड़ो भी भारत में लोहे के उपकरण बनाने का स्थान रहा होगा।
मेरा प्रस्ताव है कि चानू दाड़ो ही पुरानी मथुरा थी और जब पुरानी मथुरा चानू दाड़ो को छोड़ कर के वज्रनाभ द्वारा नई उत्तर प्रदेश की वर्तमान मथुरा स्थापित हुई तो उनको वह जगह वीरान मिली और इस जगह उन्होंने शांडिल्य मुनि के निर्देशानुसार और स्वविवेक का प्रयोग करके भगवान कृष्ण की लीलाओ के आधार पर नए स्थानों का नामकरण किया।
पुरातात्विक साक्ष्य
अब हम पुरातात्विक साक्ष्यों पर विचार करते है। वर्तमान मथुरा में जो रिहाइश के मकानों के अवशेष मिले हैं वह शुंग और कुषाण काल से पूर्व के नहीं है। यह लगभग 200-300 ईसा पूर्व के ही है, जबकि भगवान कृष्ण तो 1500 ईसा पूर्व में हुए। वर्तमान मथुरा में 1500 ईसा पूर्व के कहीं भी कोई भी अवशेष नहीं है।
विनय कुमार गुप्ता ने कहा कि ‘गोशना से कोयले के नमूने’ 2150 ईसा पूर्व के मिले है, लेकिन मकानों की संरचना के प्रमाण केवल शुंग और कुषाण की पहली सहस्त्राब्दी के अंत में मिले है. यह कैसे संभव है कि भगवान कृष्ण 1500 ईसा पूर्व में हुए और उस समय के कोई मकानों के अवशेष आज के दिन नहीं मिलते हैं।
एक संभावना यह बनती है कि जो वर्तमान मथुरा शहर है ये अवशेष उसके नीचे दबे हुए हो और उनकी खुदाई नहीं की गयी हो। यह मान भी लिया जाए तो केवल मथुरा की खुदाई का सवाल नहीं है, मथुरा के आसपास गोशना या अन्य जो साइट्स है उनमें कहीं पर भी कोई मकान की संरचना नहीं मिली है। जिससे संकेत मिलता है कि 1500 ईसा पूर्व के लगभग यहां पर कोई मकान नहीं थे और यह मथुरा के नीचे अगर दब भी गए हो तो बगल के तमाम स्थानों में इनका अवशेष मिलना चाहिए।
इसलिए कुल मिलाकर स्तिथि यह है कि यमुना लगभग 1500 ईसा पूर्व के पहले पश्चिम से हटकर पूर्व को आई इसलिए यमुना के किनारे बसा हुआ मथुरा भी पश्चिम से हटकर पूरब को आना लाजमी है। दूसरी बात यह कि जो पुरातात्विक अवशेष है वह हमको चानू दाड़ो में 1500 ईसा पूर्व तक मिलते हैं और जबकि मथुरा में केवल 200-300 ईसा पूर्व के करीब मिलते हैं।
निष्कर्ष
इस आधार पर मेरा ये कहना है कि भगवान कृष्ण की असली मथुरा चानू दाड़ो या उसके आसपास कोई और दूसरी साइट हो सकती है, लेकिन ये ऐसी जगह है जो कि हाकड़ा नदी के किनारे बसी हुई है क्योंकि हाकड़ा नदी का बहना बंद होना इस बात का प्रमाण है कि यह मथुरा वहां से उठ कर के यहां आई।
हम बता चुके हैं कि जो बाइबल का मित्स्राईम था वह भी चानू दाड़ो में था और अब हमने यह बताया कि भगवान कृष्ण की जो मथुरा थी वो भी चानू दाड़ो में थी। इस प्रकार चानू दाड़ो वह केंद्र बनता है जहां से एक तरफ भगवान कृष्ण अपनी जीवन लीला के अंत में यादवों का संहार होने के बाद अज्ञात दिशा को चले गए और दूसरी तरफ वज्रनाभ वहां से निकल कर उत्तर प्रदेश को आए और यहां पर उन्होंने अपनी नई मथुरा बसाई।
English Article: https://www.commonprophets.com/2024/was-krishnas-mathura-located-in-sindh/
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