इस पोस्ट में हम विचार करेंगे की कुरान में जो अल्लाह का विवरण दिया गया है वह अल्लाह संपूर्ण सृष्टि के अंदर व्याप्त है अथवा इस सृष्टि से बाहर खड़ा हो करके किसी प्रकार से इस सृष्टि का संचालन कर रहा है? कुरान में कहा गया:“यदि तुम्हें कोई संदेह हो तो देखो हमने तुम्हें मिट्टी से पैदा किया फिर फिर लोथड़े से फिर मांस की बोटी से ताकि हम तुम पर अपने अस्तित्व को स्पष्ट कर दें.” यह सही है कि अल्लाह ने हमें पैदा किया लेकिन जब अल्लाह ने हमें पैदा किया तो वह अल्लाह हमारे अंदर था अथवा हमारे बाहर था–इस प्रश्न का उत्तर इस आया से स्पष्ट नहीं होता है. दोनों ही संभावनाएं इस आया से मेल खाती है.
ब्लैक होल और इस्लामी विचार से अल्लाह का अस्तित्व
पारंपरिक विचार है कि अल्लाह इस सृष्टि के बाहर है और बाहर से वह हमें संचालन कर रहा है. जैसे अल्लाह ने बाहर से ब्लैक होल में विस्फोट किया होगा.वैकल्पिक विचार है की अल्लाह इस ब्लैक होल के अंदर ही था और इस ब्लैक होल में व्याप्त था और उसने स्वयं अपना ही विस्फोट करके इस सृष्टि को पैदा किया.
इस दिशा में इस्लामी विचारक कहते हैं कि हमें इस बात का कोई ज्ञान नहीं है की अल्लाह कैसे स्वयं अस्तित्व में आए? इसी बात को बढ़ाते हुए हम यह भी कह सकते हैं कि हमें इस बात का कोई ज्ञान नहीं है की अल्लाह का स्वरूप क्या है?एक संभावना है कि अल्लाह इस सृष्टि की सर्व व्यापी चेतना है. जैसे कुरान में कहा गया “क्या तुमने देखा नहीं कि अल्लाह ही को सजदा करते हैं वे सब जो आकाश में है और धरती में है और सूर्य चंद्रमा तारे पहाड़ वृक्ष जानवर और बहुत से मनुष्य.” पुनः कहा गया “हमने अमानत को आकाश और धरती और पर्वतों के समक्ष प्रस्तुत किया किंतु उन्होंने उसे उठाने से इनकार कर दिया और उससे डर गए लेकिन मनुष्य ने उसे उठा लिया.” इन आयो से स्पष्ट है कि कुरान के अनुसार सूर्य चंद्रमा तारे पहाड़ वृक्ष इन सब में चेतनता है क्योंकि जब चेतनता होगी तभी वह अल्लाह को सजदा कर सकते हैं अथवा अमानत को स्वीकार एवं अस्वीकार कर सकते हैं.
इस्लाम का मूर्ति पूजा से सम्बन्ध ?
इब्न अरबी के अनुसार “अल्लाह का जो नाम है “अलहेय,” इसका अर्थ “जीवंत” है इसलिए उससे केवल जीव ही उत्पन्न हो सकते हैं. संपूर्ण सृष्टि ही जीवित है. वास्तव में सृष्टि में ऐसी कोई वस्तु है ही नहीं जो जीवित नहीं है इसलिए जिसे आप अजीव मानते हैं वह वास्तव में जीवंत है.” कुरान के अनुवादक सैयद हुसैन नस्र कहते हैं की “एक पत्थर क्योंकि वह अस्तित्व में है इसलिए जीवंत अल्लाह का प्रस्फुटन है और उसके पास ज्ञान, आत्मशक्ति और बुद्धि मनुष्य और परियों की तरह ही है लेकिन पत्थर के स्तर पर अल्लाह का प्रस्फुटन बहुत सूक्ष्म स्तर पर है.” इन वक्तव्यों से स्पष्ट है कि संपूर्ण सृष्टि का जीवंत होना कुरान से सम्मत है.
इस विचारधारा में समस्या उत्पन्न होती है यदि हम मानते हैं कि पत्थरों में चेतनता है तो यह मूर्ति पूजा का समर्थन हो सकता है. लेकिन यहां पर अंतर है. मूर्ति के पत्थर में जो जीवंतता है वह बहुत सूक्ष्म स्तर पर है लेकिन जबकि मूर्ति के रूप में निहित ईश्वर की ऊंची चेतनता होती है. इसलिए पत्थर में चेतनता होने से मूर्ति पूजा का समर्थन नहीं होता है. मूर्ति पूजा एक अलग विषय है जिस पर अन्यत्र विचार किया जा सकता है.
अल नूर 24:35 में अल्लाह का विवरण
अब हम सुरा अल नूर 24.35 पर विचार करेंगे. इस आया में कहा गया “अल्लाह का प्रकाश ऐसा है जैसे एक दरार में चिराग है, चिराग एक फानूस में है, वह फानूस मानो चमकता हुआ कोई तारा हो, वह चिराग जैतून के तेल से जलाया जाता है जो कि न पूर्वी है ना पश्चिमी, उसका तेल आप ही आप भड़कता है, प्रकाश पर प्रकाश, अल्लाह जिसे चाहता है अपने प्राप्त होने का मार्ग दिखा देता है.” इस आया के दो इंटरप्रटेशन हो सकते हैं.
यहां जो अल्लाह के प्रकाश की बात की गई वह प्रकाश इस सृष्टि के अन्दर भी हो सकता है जैसे सूर्य इस सृष्टि में है, और इसके बाहर भी हो सकता है. इस विषय को समझने के लिए हम इस आया के अलग-अलग शब्दों पर विचार करेंगे और देखेंगे कि वह दोनों विचारधाराओं से सम्मत है या नहीं.
इस आया का पहला शब्द है “अल्लाह नूर” अथवा “अल्लाह रोशनी है.” अल जलालयन के अनुसार यह नूर सूर्य और चंद्रमा का प्रकाश है. लेकिन अल्लाह का यह प्रकाश सूर्य और चंद्रमा के अंदर है अथवा सूर्य और चंद्रमा के बाहर है इसका इस आया में स्पष्ट विवरण नहीं है और यह दोनों से सम्मत हो जाता है.
अगला शब्द है “आकाश और धरती का” यानी “अल्लाह रोशनी है आकाश और धरती का.” अल्लाह बाहर रहकर संपूर्ण आकाश और धरती को प्रकाशित भी कर सकता है और अंदर से भी आकाश और धरती को प्रकाशित कर सकता है.
आगे कहा गया “उदाहरण रोशनी.” इन शब्दों में अल्लाह शब्द नहीं है. हम अल्लाह शब्द को किस स्थान पर जोड़ेंगे उससे इन शब्दों का अर्थ बदल जाता है. जैसे कहा जाए के “अल्लाह की रोशनी का उदाहरण” कुछ है तो अल्लाह और रोशनी दोनों अलग-अलग सत्ताएं हो जाती हैं क्योंकि अल्लाह की रोशनी उससे अलग है. लेकिन यदि कहा जाए की “अल्लाह का उदाहरण रोशनी है” तो अल्लाह और रोशनी एक ही सत्ता हो जाती है. इसलिए ये शब्द भी अल्लाह के दोनों रूपों से सम्मत है.
इसके बाद कहा गया “दरार में दिया.” पारंपरिक विवरण में हम मानते हैं कि जैसे पहाड़ में कोई दरार थी उसमें एक दिया जल रहा था. लेकिन यहां “दरार” शब्द का अर्थ अंतरिक्ष की शुन्यता भी हो सकत है जिसमे विस्फोट हुआ हो सकता है. हम यह भी सोच सकते हैं कि शून्यता में यह दिया जल रहा था.
फानूस में जैतून का विवरण
इसके बाद कहा गया कि “दिया कांच में है.”यहाँ कांच का अर्थ वह पारदर्शिता से है. इसलिए “दिया कांच में” का अर्थ यह भी हो सकता है कि जैसे फानूस के कांच के अंदर दिया जलता है उसी प्रकार इस संपूर्ण सृष्टि कि शून्यता में एक ब्लैक होल था जिसमे विस्फोट हुआ.
इसके बाद कहा गया “कांच में जैसे तारा.” जैसे फानूस के अंदर यदि दिया जलता है तो हम उसको तारे के समान मान सकते हैं अथवा हम यह भी मान सकते हैं कि संपूर्ण अंतरिक्ष की शून्यता में कहीं एक ब्लैक होल चमक रहा था.
इसके बाद कहा गया “जलाया.” यानी कांच में जैसे दिया को जलाया अथवा जलाने का अर्थ ऐसा भी हो सकता है कि संपूर्ण अंतरिक्ष में जो ब्लैक होल था वह स्वयं विस्फोटित हुआ.
इसके बाद कहा गया “दिव्य जैतून वृक्ष.” यहां वृक्ष के लिए “सजारा” शब्द का उपयोग किया गया है जिसका एक अर्थ “बढ़ाना” भी होता है; और “जैतून”के लिए “जयतुनाह” शब्द का उपयोग किया गया जिसका अर्थ तेल और जैतून दोनों होता है. इसलिए “दिव्य जैतून वृक्ष” को हम दो प्रकार से समझ सकते हैं.एक यह कि “दिव्य जैतून के वृक्ष के तेल” से दिया जलाया गया. दूसरा अर्थ यह भी हो सकता है कि ब्लैक होल के अंदर जो अल्लाह की दिव्य शक्ति थी उसे ईंधन कहा गया और उस शक्ति से उस ब्लैक होल को बढ़ाया गया.
इसके बाद कहा गया “न पूरब का पश्चिम.” इब्न अब्बास, जलालयन, इब्न खतिर, मौदूदी सभी पूरब और पश्चिम को धरती के पूरब और पश्चिम दिशाओं से जोड़ते हैं. लेकिन सृष्टि के स्तर पर “न पूरब और न पश्चिम” का अर्थ यह भी हो सकता है कि संपूर्ण सृष्टि में कोई बिंदु नहीं है अथवा संपूर्ण सृष्टि की शून्यता में जो ब्लैक होल था वह “न पूरब का पश्चिम” में था.
इसके बाद कहा गया “जिसका तेल प्रकाशित हुआ.”इसका अर्थ यह हो सकता है कि जैतून के तेल से दिए को जलाया गया और वह प्रकाशित हुआ; और यह भी हो सकता है कि ब्लैक होल के अंदर जो अल्लाह की शक्ति थी उसने अपने को विस्फोटित किया और प्रकाशित हुई.
इसके बाद कहा गया “बिना अग्नि के संपर्क के.” यह भी कह सकते हैं की अल्लाह की दिव्य शक्ति ने बाहर से जैतून के तेल के दीए को बिना अग्नि के जला दिया; और यह भी मान सकते हैं कि ब्लैक होल में जो विस्फोट हुआ वह स्वयं बिना बाहरी अग्नि के हुआ.
इसके बाद प्रमुख शब्द हैं “रोशनी पर रोशनी.” इब्न अब्बास के अनुसार यहां प्रोफेट मोहम्मद की रोशनी की बात की गई है. अल असरार के अनुसार “विशालता, सौंदर्यता, दिव्यता, आदि” को बताया गया है. इब्न खतिर के अनुसार यह कुरान की रोशनी है. जाहिर है कि विभिन्न विचारकों ने इस रोशनी की अपनी-अपनी तरह से व्याख्या की है. हम सुझाव देना चाहेंगे कि जब ब्लैक होल के अंदर विस्फोट हुआ तो उसकी चेतना का विभाजन हुआ. कुछ चेतना ऊंची हो गई और कुछ नीची हो गई. यह जो चेतना का अंतर हुआ, इसे कहा गया “रोशनी पर रोशनी” अथवा “नीची चेतना पर ऊंची चेतना.”
इन वैकल्पिक अर्थों को यदि हम जोड़ें तो इस आया का अनुवाद इस प्रकार निकलता है:“अल्लाह इस सृष्टि की रोशनी है, उसका उदाहरण वह रोशनी है कि जो एक दरार में दिए के समान है, वह दिया शून्यता में है, उसमें दिव्य आंतरिक ईंधन से विस्फोट हुआ और उस विस्फोट से ऊंची चेतना से नीची चेतना पर प्रभाव स्थापित हुआ.” यदि हम इस प्रकार से इस आया को समझें तो यह अल्लाह के इस संपूर्ण सृष्टि के अंदर होने से मेल खाता है.
अल्लाह कि रचना
इस चित्र में हमने इस विकास की प्रक्रिया का चित्रण किया है. लेफ्ट साइड में जो काली पट्टी है वह ब्लैक होल है. इसमें विस्फोट के बाद विकास होता है तो हम दाहिने तरफ आगे बढ़ रहे हैं. पहले मैटर पैदा हुआ फिर लाइफ पैदा हुई फिर माइंड पैदा हुआ. इस विकास को ऊपर जो बैंड में अल्लाह या यूनिवर्सल कॉन्शसनेस लिखा गया है उसने प्रेरित किया. अथवा ऊपर वाले बैंड में स्थित अल्लाह ने ऊपर से नीचे जाने वाले तीर के माध्यम से सृष्टि को विकास के लिए आगे बढ़ाया.
अब हम इस विचार का मॉडर्न साइंस ए साथ सामंजस्य बैठाने का प्रयास करेंगे. आधुनिक विज्ञान में एक विचारधारा पेनसाइकिजम की है. इस विचारधारा के प्रमुख प्रवर्तक फिलिप गोफ़ का कहना है की भौतिक दुनिया के सबसे मौलिक घटकों जैसे इलेक्ट्रॉन और क्वार्कभी अकल्पनीय सूक्ष्म अनुभव करते हैं. यानी जिस प्रकार कुरान में कहा गया की पहाड़ आदी सजदा करते है उसी प्रकार फिलिप गोफ़ कहते हैं कि इलेक्ट्रॉन अनुभव करता है. दोनों का मेल है.
इसके आगे समाजशास्त्री एमिल डर्कहाईम कहते हैं कि “समाज” सहभागीयों के विचार और भावनाओं का एकीकरण है. जिस प्रकार हाइड्रोजन और ऑक्सीजन के मिलने से पानी उत्पन्न होता है जोकि पूर्णतया नया है; इसी प्रकार सहभागीयों की व्यक्तिगत चेतनाओं के जोड़ से सामूहिक चेतना बनती है जो कि बिलकुल नयी होती है. हाइड्रोजन और ऑक्सीजन दो अलग-अलग प्रकार के अणु है लेकिन जब वह जुड़ जाते हैं तो वे पानी बन जाते हैं जो कि दोनों से बिल्कुल अलग वस्तु है. इसी प्रकार हम कह सकते हैं कि सृष्टि में जितने पत्थर, पहाड़, वृक्ष, पशु और मनुष्य है इनकी चेतना आपस में जुड़ जाती है. हमारा सुझाव है कि संपूर्ण सृष्टि के सहयोग से उत्पन्न हुई इस चेतना को ही हम अल्लाह के रूप में जानते हैं.
कार्ल युंग के अनुसार ब्लैक होल एवं अल्लाह
मनोवैज्ञानिक कार्ल युंग कहते हैं “हम यह सोचकर हसेंगे की एक पौधा या पशु अपने को स्वयं बदल सकता है लेकिन बुद्धि अपनी वर्तमान चेतनता कि स्थिति में उसी प्रकार आई है जैसे एक बरगद का बीज वृक्ष बनता है.” युंग के अनुसार हमारी वर्तमान बुद्धि स्वयं नीचे से ऊपर उठी है और स्वयं उसने अपने को विकसित किया है. इन आधार पर हम कह सकते हैं कि ब्लैक होल की संयुक्त चेतनता ने स्वयं अपने में विस्फोट किया और अपने को बढ़ाया. तब उस सम्पूर्ण चेतना में चेतना के अलग अलग स्टार पैदा हो गए.
अल इख्लास के अनुसार ब्लैक होल से हुई अल्लाह उत्पति
अब पिचले चित्र में दिए गए ऊपर से नीचे आने वाले तीर के साथ-साथ हमने नीचे से ऊपर जाने वाले तीर को जोड़ दिया है. जैसे ब्लैक होल में विस्फोट हुआ और मैटर पैदा हुआ तो मैटर की चेतना का विस्तार हुआ जिसे ऊपर जाने वाले तीर से दर्शाया गया है. इस चेतन से सृष्टि की चेतनता पैदा हुई और उसे हम अल्लाह का नाम देते हैं. सृष्टि की इस चेतनता ने पुनः उस मैटर को गवर्न किया. जैसे किसी देश के नागरिक अपने राष्ट्रपति को चुनते हैं और चुन लिए जाने के बाद वही राष्ट्रपति उन पर गवर्न करता है. इसी प्रकार संपूर्ण सृष्टिकी चेतनता ऊपर उठी और उस संयुक्त चेतना को अल्लाह का नाम दिया गया. फिर अल्लाह ने उसी सृष्टि को बढ़ाया. यह वैज्ञानिक विचारधारा से मेल खाता है.
इस विचारधारा में एक आपत्ति यह हो सकती है अल्लाह को ब्लैक होल में समाहित करना उसे सीमित करना है. लेकिन यह सही नहीं है. कारण कि ब्लैक होल का वजन है असीमित है. ब्लैक होल के वजन की असीमितता और अल्लाह की शक्ति की असीमितता दोनों एक दूसरे से मेल खाखाते है. इसलिए अल्लाह को यदि हम ब्लैक होल में मानते हैं तो उसकी असीमितता का रूप मात्र बदलता है. इससे अल्लाह का लिमिटेशन पैदा नहीं होता है.
अब हम कुरान की अल इख्लास सूरा कि चार आयों पर विचार करेंगे. इस सूरा में अल्लाह के अस्तित्व पर चिंतन किया गया है. कहा गया कि “अल्लाह एक है.”अतः जो संपूर्ण सृष्टि की यूनिवर्सल कॉन्शसनेस है अथवा संपूर्ण सृष्टि की चेतनता का संयोग है वह एक है क्योंकि वह संपूर्ण सृष्टि को समाहित करता है.
दूसरी आया में कहा गया “अल्लाह सब की शरण है उसी पर सब निर्भर है.” तो जब संपूर्ण सृष्टि की चेतनता ने ऊंचा स्तर ले लिया जिसे हम अल्लाह के नाम से जानते हैं तो उस ऊंची चेतनता पर सब निर्भर हो जाते है उसी प्रकार जैसे एक राष्ट्रपति पर सभी नागरिक निर्भर हो जाते हैं.
तीसरी आया में कहा गया “वह न किसी से उत्पन्न हुआ है न वह किसी को उत्पन्न करता है.” यहां पर समझ यह है कि अल्लाह निरंतर है. ब्लैक होल में विस्फोट हुआ उसके पहले भी अल्लाह हो सकता है. मॉडर्न साइंस इस बात का कोई उत्तर नहीं देती कि ब्लैक होल के पहले सृष्टि का क्या रूप था. संभव है कि ब्लैक होल के पहले जो भी सृष्टि का रूप हुआ हो वही अल्लाह था और उसमें निरंतरता बनी हुई है. यानी विस्फोट को शुन्य से नयी सृष्टि का उत्पन्न होना नहीं मानते हैं बल्कि वह विस्फोट सृष्टि की निरंतरता की एक छोटी सी घटना कही जा सकती है.
चौथी आया में कहा गया “उसकी कोई बराबरी नहीं है.” यह भी बिल्कुल सही है. यदि अल्लाह यूनिवर्सल कॉन्शसनेस है तो यूनिवर्सल होने के कारण उसकी कोई बराबरी नहीं है चूँकि सब कुछ उसी में है.
इस प्रकार अल्लाह की दो कल्पना हो सकती है. एक यह कि अल्लाह हमारी सृष्टि के बाहर है और दूसरा यह की अल्लाह इस सृष्टि के अंदर है. दोनों कुरान से सम्मत है. अंतर यह है की यदि हम अल्लाह को इस सृष्टि के अंदर मानते हैं तो यह आधुनिक विज्ञान से मेल खाता है जैसा कि पेनसाइकिजम आदि विचारधाराओं में कहा गया है.
कुरान एवं विज्ञान में समानताये
हमें कुरान और विज्ञान को साथ में रखना है जैसा इस चित्र में दिखाया गया है. कुरान बहुत सारी बातें कहती है और विज्ञान बहुत सारी बातें कहता है. हमारा यह आशय नहीं है कि यह दोनों एक ही है. हम इन दोनों के बीच में जो कॉमन एरिया है उस को चिन्हित करें और फिर इन दोनों को समझने की कोशिश करें जैसा इस चित्र में दिखाया गया है. इसी दृष्टि से कुरान में कहा गया “अल्लाह की दृष्टि में वह बहरे गूंगे हैं जो बुद्धि से काम नहीं लेते.” हम बुद्धि से काम लेना चाहते हैं.
इस विषय पर इंडोनेशिया की स्टेट इस्लामिक यूनिवर्सिटी सोराबाया द्वारा प्रकाशित टियोशफी पत्रिका में हने एक विस्तृत लेख प्रकाशित किया है जिसे आप निचे दिए गए लिंक में देख सकते हैं. http://jurnalfuf.uinsby.ac.id/index.php/teosofi/article/view/1691/1263
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