ईसा बाद पहली सदी में ज्यू दार्शनिक फ्लोवीयस जोसेफस ने एरेस्टोटल के हवाले से कहा था कि “Jews are derived from the Indian Philosophers. They are called by the Indians Kalami” अर्थात “यहूदी भारतीय दार्शनिकों से निकले हैं और उन्हें भारतीय कलामी नाम से जानते है [1]।” अब हम देखना चाहेंगे की भारत में यदुवंश की परंपरा कहां से शुरू हुई और उसका बाइबल के यहूदी से कैसा संबंध बैठता है।
राजेंद्र यादव का कहना है कि पूर्व में यदुवंशी उत्तर भारत के सम्राट थे. समय क्रम में वे उत्तर भारत से दक्षिण पश्चिमी भारत यानी गुजरात या सिंध क्षेत्र में जाकर बसे थे [2]| यही बात बाइबल में जेकब के हवाले से कही गई है। अब्राहम के पुत्र जेकब किसी समय उत्तर में शिषम नाम की जगह मे रहते थे| उनके बेटे जोसेफ को दास बनाकर मितस्राइम नाम की जगह ले जाया गया। मितस्राइम को यूरोपियन इजिप्ट बोलते हैं. समय क्रम में जोसेफ बहुत ऊपर उठे और वे राजा के वजीर बन गए| उसके बाद उन्होंने अपने पिता जेकब और समस्त परिवार को उत्तर से दक्षिण बुलाया और दक्षिण में गोशन नाम के स्थान पर बसाया[3] | गोशन का संबंध गोकुल से दिखता है.दोनों मे “गो” व्यंजन है जो की गो पालन कों दर्शाता है | इस प्रकार हिंदू परंपरा में यादव उत्तर से दक्षिण में गए और बाइबल की परंपरा में जेकब के वंश के लोग उत्तर से दक्षिण में गए| इन्हें ही हम यादव कह रहे हैं और बाइबल में हिब्रू कहा जाता है|
जब तक जोसेफ जिंदा रहे तब तक वहां के राजा ने उनके वंशजों का सम्मान किया| जब पुराने राजा मर गए और जोसेफ भी मर गए उसके काफी समय बाद वहां के नए राजा ने इन हिब्रूज पर अत्याचार करना शुरू कर दिया| यही बात हिंदू परंपरा में भी कही जाती है। कंस के राज्य संभालने के बाद उन्होंने यादवों को नष्ट करना शुरू कर दिया|
विशेष यह की कंस ने पूतना आदि रक्षसियों को यादवों के बच्चों को मारने के लिए भेजा| बिल्कुल यही बात बाइबल में भी आती है की नए राजा ने वहां की दाइयों को कहा कि यदि हिब्रू परिवारों में कोई लड़का पैदा होता है तो आप उसको मार दें[4] | अगर लड़की हो तो जिंदा रहने दे| दोनों परंपराओं में नवजात लडको को मारने का वृतांत मिलता है।
श्री कृष्ण और मूसा ने टोकरी में किया नदी पार
कृष्ण का जन्म कारागार में हुआ| वासुदेव वहां से उनको लेकर निकले और एक टोकरी में अपने सर के ऊपर रखकर वे गोकुल पहुंचे | वहां नंद बाबा ने उनका पालन पोषण किया| हिब्रू शास्त्रों में कहा जाता है की मोसेस एक लेवी परिवार में पैदा हुये| लेकिन वहां के राजा हिब्रू बच्चों को मारना चाहते थे |
मोसेस की मां ने पहले बच्चे को अपने गर्भ को छुपा के रखा| जब वह बच्चा दो-तीन महीने का हो गया तब उसको एक टोकरी में डाल कर नदी में बहा दिया कि भगवान चाहेंगे तो उसकी रक्षा करेंगे। इस दोनों परंपराओं में नर संतान को मारने, नवजात कृष्णा एवें मोसेस को पानी से दूसरे स्थान पर ले जाने और वहां पर अन्य परिवार में उनका पालन पोषण होने का वृतांत मिलता है | कृष्ण ने कंस को एवं मोसेस ने लेविट को मारा और दुसरे स्थान पर चले गए|
समय क्रम में यादव लोग कंस से त्रस्त हो गए| कंस ने अक्रूर को भेजा कि आप कृष्ण और बलराम को ले आओ जिससे कि हम यहां पर उनका वध कर सके| लेकिन कृष्ण ने मथुरा आकर स्वयं कंस का ही वध कर दिया| कंस को मारने के बाद कृष्ण अवंतीपुर में संदीपनि गुरु के पास शिक्षा प्राप्त करने गए|
बाइबिल की कहानी इस प्रकार है कि मितस्राइम का रहने वाला कोई व्यक्ति किसी लेवी जाति के व्यक्ति को मार रहा था| मोसेस ने देखा कि यह गलत हो रहा है| मोसेस ने उस मारने वाले को मार दिया| परन्तु मरने वाला मितस्राइम का था मितस्राइम के राजा उसे दण्डित न करें इस भय से मोसेस अपनी जान बचा करके वहां से भागे| वे मिदियान नाम के स्थान पर जेथ्रो नाम के पुजारी के यहां जाकर रहे[5]|
संदीपनी गुरु से शिक्षा प्राप्त करके कृष्ण वापस आए तब उनके पास एक ब्राह्मण आया| उसने रुकमणी जी का एक संदेश दिया जो भागवत पुराण दशम स्कंध में है: “हे प्रियतम मैंने आपको अपने पति रूप से वरण किया है मैं आपको आत्म समर्पण कर चुकी हूं| आप अंतर्यामी है, मेरे हृदय की बात आप से छिपी नहीं है| आप यहां पधार कर मुझे अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार कीजिए|” इस संदेश को प्राप्त करने के बाद कृष्ण ने विदर्भ पर आक्रमण किया और रुकमणी का हरण करके ले आए[6]|
बिल्कुल यही कहानी फ्लोवियस जोसेफस मोसेस के बारे में केहते हैं: “Tharvis, daughter of the King of the Ethopiyans, fell deeply in love with him and sent to him the most faithful of her servants to discourse with him upon their marriage.[7]” यह संदेश प्राप्त करने के बाद मोसेस अपनी सेना को लेकर इथियोपिया गए और थार्विस को जीत करके ले आये|
कृष्ण मथुरा में थे जबकि मोसेस मितस्राइम में थे| यहां एक अंतर यह है की कृष्ण की कहानी में मथुरा और द्वारका दो स्थानों का विवरण साथ-साथ चलता है जबकि बाइबल में केवल मितस्राइम का विवरण आता है|
यमुना ओर मितस्राइम के नदी का सुख जाना
मथुरा या मितस्राइम कि नदी सूख गई[8]| कहानी इस प्रकार है कि 2000 ईसा पूर्व के पहले यमुना नदी यमुनानगर से पश्चिम को बहती थी और रण के कच्छ में गिरती थी| इसे अब घग्गर अथवा हाकड़ा नदी कहा जाता है| इसके बाद भूमि का स्तर ऊपर उठने से वह नदी पूरब में बहकर गंगा नदी से मिलती हुई बंगाल कि खाड़ी में गिरने लगी | और पूर्व में बहने से पुरानी यमुना पूरी तरह सूख गई। सूखी यमुना के पास एक पुरातत्व साइट है चानूदाड़ो| ऐसा दीखता है कि चानूदाड़ो ही पुराना मथुरा था।
यमुना नदी के सूखने का प्रमाण हमको भागवत पुराण में मिलता है[9]| कंस ने अक्रूर जी को गोकुल भेजा कि आप कृष्ण और बलराम को ले आइये जिससे कि वह उनका मथुरा में वध कर सके| उस यात्रा के दौरान भागवत पुराण में विवरण आता है कि एक स्थान पर रुक कर अक्रूर जी ने यमुना के कुंड में स्नान किया| उस कुंड का जल हरे पन्ने के रंग का था। यमुना पूरब में बहने लगी थी | पश्चिम में बहने वाली यमुना के सुख जाने से उसके रास्ते मे कई कुंड बन गए थे और इनमे काई हो जाने के कारण उस पानी हरे रंग का हो गया था|
यही बात बाइबल में अलग ढंग से कही गई है| मितस्राइम में मोसेस ने फिरौन से कहा कि आप हमारे हिब्रू कुनबे को रेगिस्तान में भगवान की पूजा करने के लिए जाने दीजिए| फिरौन ने मना कर दिया। इसके बाद मोसेस ने मथुरा पर एक के बाद एक 10 संकट लाये[10]। पहला संकट नदी के पानी का खून हो जाने का था|
अब नदी का पानी खून तो होता नहीं है| हमने देखा कि जो खून का वर्णन किया गया उसका हिब्रू शब्द है “डमान|” डमान के कई मतलब होते है: रुकना, मर जाना, रुक जाना, आराम करना, शांत हो जाना, इत्यादि| इससे अर्थ निकलता है कि जो नदी का पानी रुक गया था | यही भागवत पुराण में बताया गया है और पुरातत्व के साक्ष्य मे यमुना के पूर्व मे बहने मे मिलता है।
इसके बाद जो 9 और संकट आए उसमें चार संकट रुके हुए पानी के थे| पहला संकट मेंढकों का था| मेंढक बहुत हो गए| दूसरा संकट जूँ का, तीसरा मक्खियों का और चौथा शरीर में फुंसियों का। यह सब संकट साफ पानी की अनुपलब्धता से बनते हैं| इसलिए यह समझ में आता है यह जो प्लेग्स के बारे में बाइबल मे कहे गए है वे पानी के बहाव के रुकने के ही कारण उत्पन हुए थे|
श्री कृष्ण एवं मूसा का पलायन
समय क्रम में भगवान श्री कृष्ण को आभास हुआ कि आने वाले समय में द्वारका डूब जाएगी| उन्होंने यादवों को कहा की अब हम लोगों को द्वारका को छोड़ देना चाहिए| यादवों ने उनके कहे अनुसार उस स्थान को छोड़ा ओर कृष्ण ने भी द्वारका छोड़ दिया | इसका प्रमाण हमें महाभारत मे मिलता है| मौसल पर्व में वृतांत आता है कि जब प्रभास तीर्थ में यादवों ने एक दूसरे का संघार कर लिया तो कृष्ण वापस द्वारका आये और वासुदेव जी से मिलकर वे चले गए। उसके कुछ समय बाद अर्जुन वासुदेव जी से मिलने द्वारका आए. उस समय वासुदेव जी ने उनसे कहा “हे अर्जुन, तुम्हारा सखा कृष्ण मुझे यहां स्त्रियों और बच्चों के साथ छोड़ गया है और स्वयं किसी अज्ञात स्थान को चला गया है[11]||” यह अज्ञात स्थान इजराइल दीखता है|
यही बात बाइबल में भी आती है| हिब्रूज को फिरौन ने ईटा बनाने का काम दे रखा था| फिरौन ने कहा कि अब ईटा बनाने के लिए आप भूसा स्वयं एकत्रित कीजिए परन्तु पूर्व में जितनी ईटा बनाना होता था उतना ही ईटा बनानी होगी[12]| इस प्रकार फिरौन ने हीब्रूज पर अत्याचार करना शुरू किया| महत्व इस बात का है कि झगड़ा ईंटो को लेकर हुआ था।
अब संपूर्ण सिंधु घाटी सभ्यता में पक्की ईंटो से मकान बनाए जाते थे| इसके लिये मिट्टी को जलाना पड़ता है| ईटा बनाने में लगभग आधा खर्च इंधन का होता है| यह विवरण सिंधु घाटी सभ्यता से मिलता है क्योंकि वहां पर पक्की ईटो से शहर बनाए गये थे। इजिप्ट मे ऐसा नहीं होता था | इजिप्ट में मजदूरों के रहने के लिए कच्ची ईट से घर बनाये जाते थे|
उसमें केवल 1 प्रतिशत भूसा मिटटी कों स्थिर बनाने के लिए डाली जाती थी[13]| 1 प्रतिशत भूसे, वह भी कच्ची ईंटों को बनाने के लिए, वह भी मजदूरों के मकान बनाने के लिए– इस पर हिब्रूज का फिरौन के साथ युद्ध होना कम जमता है| वहीं यह चानूदरो में माफिक पड़ता है क्योंकि पक्की ईटा को जलाने के लिए ईंधन की बड़ी मात्रा में जरूरत पढ़ती थी| इससे स्पष्ट होता है कि ईंटो का पूरा विषय सत्यापित करता है की यह घटना सिंधु घाटी सभ्यता में हुई थी ना कि इजिप्ट में।
यादवों और हिब्रुज की आपसी युद्ध
समय सिंधु घाटी सभ्यता 1500 BCE के करीब समाप्त होने लगी| यमुना पूरब में बहने लगी थी| सिंधु घाटी सभ्यता का विघटन होने लगा| सिंधु घाटी के लोग वहां से कई जगह पलायन करने लगे | विवरण मिलता है कि उत्तर प्रदेश के यादव, बंगाल के बर्मन और दक्षिण के होयसला और वाडीयार आदि राज्य इनके द्वारा स्थापित किये गए| एक तरफ एक्सोडस में मूसा उनको लेकर पश्चिम को गए| दूसरी तरफ उनके तमाम घटक कई स्थान पर भारत में फैले, अतः यादवों का पश्चिम में जाना कोई आश्चर्यजनक बात नहीं है|
यदुवंशी द्वारका से प्रभास पहुंचे, वहां पर ऋषियों के श्राप के चलते और यादवों का भार पृथ्वी पर उतारने के लिए कृष्ण ने यादवों को एक दूसरे को मारने के लिए कहा| [14]
वहां पर उन्होंने मदिरा पी और उसके बाद भागवत पुराण के अनुसार मूढ़तावश पुत्र ने पिता का, भाई ने भाई का, भांजा ने मामा का, नाती ने नाना का, मित्र ने मित्र का, सुह्रद ने सुह्रद का, चाचा ने भतीजे का खून करने लगे|
यही बात हमको बाइबल में मिलती है। दसवें संकट में मितस्राइट नवजात बच्चे मरने लगे| तब फिरौन ने हिब्रूज को वहां से जाने के लिए छूट दी और वे वहां से एक्सोडस के लिए निकले| वे सिने नाम के पहाड़ के पास पहुंचे जहां भगवान की आराधना करने के लिए मोसेस पहाड़ पर गए| उनके पीछे से उनके भाई आरोन ने सब को एकत्रित किया और एक सोने का बैल बनाया और उसके चारों तरफ सब लोग नाचने लगे।
जब मोसेस पहाड़ से उतर के आए और उन्होंने यह नाचना देखा तो उनको बहुत क्रोध आया| उन्होंने इस सोने के बैल का चूर्ण बनाया और सब हिब्रूज को पिला दिया। उसके बाद मोसेस ने उनसे कहा “Let every men put his sword on his side and go in out from the entrance to entrance through out the camp and let every man kill his brother, kill his companion, kill his neighbour.[15]” यानी उस पानी को पीने के बाद वे लोग अपने भाइयों, मित्रों और पड़ोसियों को मारने लगे| इस प्रकार यह मार-काट हमको दोनों वृतांतों में मिलती है|
सिन्धु नदी और ज्वालामुखी के बाद हिब्रूज का “कान्हा के” आहते पर पहुचना !
हिब्रूज के मितस्राइम से निकलने के बाद कि कहानी हिन्दू शास्त्रों मे नहीं मिलती है | लेकिन बाइबिल मे इसराइल के यात्रा का विवरण भारत से इसराइल की यात्रा से मेल खाता है| मितस्राइम से निकलने के बाद वे किसी पानी के फैलाव के पास पहुंचे जिसे बाइबिल मे “यामसूफ” कहा जाता है| उनके वहां पहुंचने पर वह जल फट गया और हिब्रूज सूखी जमीन पर उस जल के फैलाव को पार कर गए। यह घटना सिंधु नदी की दिखती है| वहां मिट्टी के ज्वालामुखी फटते हैं [16]
ऐसा संभव है कि जहां पर हिब्रूज इस नदी को पार करके पश्चिम कों इजराइल को जाना चाहते थे उस स्थान के ऊपर एक मिट्टी का ज्वालामुखी फटा| उसने सिंधु नदी के पानी को कुछ समय तक रोक लिया| हिब्रूज उस सूखी जमीन से उस पानी के फैलाव कों पार कर गए| उसके बाद ज्वालामुखी की मिट्टी बह गई, वह पानी वापस आया और फिरौन को डूबा दिया।
दूसरी कहानी मिलती है एक ज्वालामुखी की| बाइबल में वर्णन आता है की मूसा किसी पहाड़ पर पूजा करने गए| वहां पर ज्वालामुखी के फटने का विवरण आता है| ईरान के दक्षिण पूर्वी हिस्से में टाफटान नाम का एक ज्वालामुखी है जो वर्तमान में भी जीवित है. वहां पर यह घटना हुई होगी| ध्यान दे की न तो इजिप्ट में पानी के फटने का कोई वृतांत है या संभावना है और न ही कोई ज्वालामुखी है|
इसके बाद हिब्रूज “परान” नाम के स्थान पर पहुचे | आज भी टाफटान के पश्चिम मे इसफहान के पास परान नाम की जगह है जहां आज भी किसी पर पुराने ज्यू समुदाय की रिहाइश है।
इसके बाद वे पश्चिम की ओर गए | ईरान के पश्चिमी हिस्से में एक स्थान है “कंगावार”[17] ये नाम अवेसता के “कान्हा वारा” से बना है. कान्हा वारा यानी “कान्हा का बाड़ा” या enclosure of Kanha. अब कान्हा नाम तो हमारे कृष्ण का बिल्कुल साफ-साफ है. इससे पता लगता है कि यह “कान्हा वारा” हिब्रूज द्वारा बसाया गया होगा जो परान से निकलकर कंगावार पहुंचे. संभवतः यह बाइबिल का माउंटहोर होगा | इससे और पश्चिम चलते हैं तो हिब्रूज कों दूसरा यामसुफ यानी कि जल का फैलाव मिलता है जो की टिगरिस और युफ्रिटिस नदियों का दिखता है।
इस प्रकार मथुरा से यादवों का निकलना और मौसल पर्व में कहना की कृष्ण किसी अज्ञात स्थान को चले गए हैं; और मितस्राइम से हिब्रूज का निकलना और यामसुफ, ज्वालामुखी, परान, कान्हा वारा , को पार करते हुए इजराइल पहुंचना दोनों बराबर के वृतांत है|
यादवों और हिब्रूज की अनुवांशिकीय यादें सिन्धु घाटी मे ?
अभी तक हमने कृष्ण और मोसेस की यात्रा के समानताएं बताई है| अब इनकी अनुवांशिकीय को देखते हैं| Stephen Oppenheimer [18] के अनुसार वर्तमान मनुष्य आज से 160,000 वर्ष पूर्व अफ्रीका से निकले और वे लगभग 60,000 वर्ष पूर्व सबसे पहले दक्षिण एशिया यानी भारत को आए| इसके बाद 40,000 से 15,000 वर्ष पूर्व वे दक्षिण एशिया से निकल कर यूरोप को गए|
फर्डिनेंड हेनरबिखलर ने एनाटोल कायलोसोव के हवाले से एक चित्र दिया है जिसमें आज से 3,500 वर्ष पूर्व पुनः एक घटक का उत्तर भारत से पश्चिम को जाने का विवरण मिलता है| यह पश्चिम को जाना बिल्कुल एक्सोडस से मेल खाता | इस समय यादव या हिब्रूज भारत से निकलकर पश्चिम एशिया को लगभग 1500 ईसा पूर्व या आज से 3500 वर्ष पूर्व गए थे | जेनेटिक सूचना भी बताती है कि एक्सोडस के समय भारत से कुछ लोग पश्चिम को गए थे |
एक और विशेष सूचना हमारे सामने है की नेशनल जेओग्रफी सोसाइटी ने R-M124 हैप्लो ग्रुप का एक प्रोजेक्ट लिया है[19]| यह हैप्लो ग्रुप लगभग 2 प्रतिशत आस्केनाजिज यहूदी में पाया जाता है| ये यहूदी मे सबसे पुराने घटक है| यह R-M124 हैप्लो ग्रुप यूरोप नहीं पाया जाता है| तो आस्केनाजी यहूदी मे इसका स्रोत क्या है इसकी पड़ताल नेशनल जेओग्रफी सोसाइटी कर रही है |
साहू द्वारा किए गए एक अध्ययन में पाया गया कि बंगाल के करमालियों में 100 प्रतिशत, जौनपुर के क्षत्रियों में 87 प्रतिशत और बिहार के यादवों में 50 प्रतिशत लोगों में यह R-M124 हेप्लो ग्रुप पाया जाता है| इससे स्पष्ट है कि ये अनुवांशिकीय एक तरफ पूर्व भारत में पाई जाती है और दूसरी तरफ आस्केनाजी यहूदी में| यद्यपि उनका प्रतिशत कमजोर है|
अतःयह संभावना बनती है कि सिंधु घाटी सभ्यता में जो यादव या हिब्रूज थे उनका एक घटक सिंधु घाटी से निकल करके पश्चिम में गया जो आस्केनाजी यहूदी का बना जिनके साथ R-M124 जीन गया; और दूसरी तरफ सिंधु घाटी के यादव पूर्व में गए जिस कारण भारत के यादवों में R-M124 जीन मिलता है| अतः अनुवांशिकी से भी इस बात का समर्थन मिलता है कि भारत के यादव और इजरायल के यहूदी दोनों की यादें सिंधु घाटी में हो सकती है|
सिन्धु घाटी लिपि और हिब्रूज चिन्हों की समानता!
सिंधु घाटी सभ्यता की भाषा पढ़ी नहीं जा सकी.[20] लेकिन उनके चिन्ह उपलब्ध है | पुरातत्ववेत्ता एसoआरo राव ने सिंधु घाटी के चिन्ह और पुराने हिब्रू भाषा के चिन्ह को एक चार्ट में दिखाया है. आप देख सकते हैं कि रो नम्बर 1. 5. 6. 8. 10. 11. 12. 13. 14 नम्बर पर चिन्ह बिल्कुल सामान है|
हिब्रू भाषा का इजिप्शियन से हमारी जानकारी में केवल एक संबंध दिखता है| बेंजामिन नूनन[21], एसोसिएट प्रोफेसर कोलंबिया इंटरनेशनल यूनिवर्सिटी के अध्ययन के अनुसार हिब्रू में 0. 64 प्रतिशत इजिप्शियन से उधार लिए गए शब्द मिलते हैं| इस आधार पर कहा जाता है की हिब्रूज भाषा कि जड़ें इजिप्ट में है और वह से हिब्रुज निकल कर के इजराइल को गये|
लेकिन यहां तिन समस्या है| पहली बात तो यह है कि 0. 64 प्रतिशत केवल शब्दों की समानता मिलती है| जबकि हम देख चुके हैं कि चिन्हों की समानता बहुत ज्यादा है| दूसरी बात यह है की जो यह 0.64 प्रतिशत चिन्ह मिलते हैं यह लगभग 1300 ईसा पूर्व वर्ष के हो सकते हैं| जानकारों के अनुसार सिन्धु घाटी से हिब्रूज 1446 मे थे और लगभग 1400 मे इसराइल मे प्रवेश किये थे| 1300 BCE तक इजिप्शियन राजाओ का इसराइल पर अधिकार था| उस समय यह 0.64 प्रतिशत इजिप्शियन शब्द हिब्रू में प्रवेश किए जा सकते हैं|
श्री कृष्णा एवं मोसेस की समानतर वंशावली
अगला बिंदु वंशावली का है| हिन्दू वंशावली के अनुसार स्वयंभू मनु प्रथम मनुष्य हुए| उनकी संतान हुए इंद्र, वृत्त और विवासवान| विवासवान के पुत्र वैवस्वत मनु हुए| वैवस्वत मनु के पुत्र नहुष हुए| बिल्कुल यही कहानी बाइबल में मिलती है| प्रथम पुरुष आदम हुए| आदम के तीन पुत्र हुए एबल, केन और सेठ| इनमे तीसरे यानी सेठ के वंशज हुए नोआ| यह हिन्दू इंद्र, वृत्त और विवासवान के सामानांतर है. नोआ के वंशज हुए नाहौर | हिन्दू नहुष ही बाइबिल के नहोर हुवे |
नाहौर के समय थोड़ा सा अंतर आता है| भारतीय परंपरा में नहुष की संतान ययाति हुए. ययाति की दो संताने हुई यदु और नाभाग| यदु के वंशज हुए कृष्ण जो कि यदुवंश के थे| और नाभाग के वंशज हुए राम| यानी हिंदू परंपरा के अनुसार राम और कृष्ण याताती के बाद अलग-अलग वंशो में हुए यद्यपि यह दोनों वंश ययाति से निकले है|
बाइबल के अनुसार नाहौर के वंशज हुए अब्राहम और अब्राहम के वंशज हुए जेकब| जेकब के वंशजों में कुनबे हुए जिसमें एक था लेवी और उसी लेवी कुनबे में पैदा हुए मोसेस|
दोनों परंपराओं में स्वयंभू मनु, या आदम से नहुष, या नाहौर तक दोनों वंशावली बिल्कुल समानांतर हैं| उसके बाद भारतीय परंपरा में राम और कृष्ण अलग-अलग वंश मे हुए जबकि बाइबल में अब्राहम और मोसेस एक ही वंश में पैदा हुए| यह दोनों में अंतर दिखता है|
श्री कृष्णा और मोसेस का एक ही समय ?
अब इसके बाद विषय आता है समय का| यदि यदुवंशी ही इजराइल गए तो कृष्ण का अज्ञात दिशा में जाना और मोसेस का एक्सोडस को लीड करना एक ही समय हुआ होगा| यहां महाभारत युद्ध के समय पर भारतीय वैज्ञानिकों में एकमतता नहीं है| महाभारत का समय निर्धारित करने के लिए मुख्यतः एस्ट्रोलॉजी का सहारा लिया जाता है | निलेश ओख के अनुसार यह युद्ध 5561 ईसा पूर्व हुआ था| नरहरि अचार और सरोज बाला के अनुसार यह लगभग 3100 वर्ष ईसा पूर्व हुआ था| अशोक भटनागर के अनुसार यह 2250 और 1280 ईसा पूर्व के बीच हुआ था | आरo एनo अयंगर के अनुसार 1478 BCE में ये युद्ध हुआ|
जिन ग्रहों के आधार पर यह गणना की जाती है उनके शास्त्रों में वर्णन परस्पर विरोधी है| अतः हम एस्ट्रोलॉजी के आधार पर समय निर्धारित नहीं कर पाते हैं| बरहाल श्री कृष्ण का समय 5500 BCE se 1280 BCE के बीच में रहा होगा. फिर भी अधिकतर वैज्ञानिक महाभारत युद्ध को 3100 ईसा पूर्व मानते हैं| यहाँ समस्या की यदि महाभारत युद्ध 3100 BCE में हुआ तो महाभारत के पूर्व जो स्वयंभू मनु से लेकर राम तक तमाम राजा हुए उनका स्थान कहां था, एवं इनके आर्कियोलॉजिकल प्रमाण कहां है? क्योंकि हमारे यहां शहरों की उत्पत्ति लगभग 3500 BCE से 3100 BCE तक की ही है| अतः यदि हम महाभारत को 3100 BCE मे रखें तो इसके पूर्व के पुरातत्व प्रमाण नहीं मिलते है|
और यदि हम महाभारत को 3100 BCE मानते हैं तो जो सिंधु घाटी के तमाम बड़े-बड़े शहर हमको 3100 BCE से ले कर के 1500 BCE तक दिखते हैं उनके शास्त्र कहां है? यानी जहां अवशेष नहीं मिलते हैं उसकी तो हमारे पास इतनी कहानिया है| और जहां अवशेष मिलते हैं वहां कहानिया नहीं है| इसलिए ज्यादा संभावना श्री कृष्ण की 1500 BCE की है जिस समय पुरातत्व अवशेष भी मिलते हैं और कहानिया भी |
समय के सन्दर्भ मे बाइबल के वैज्ञानिकों के बीच डिबेट इस बात का है की एक्सोडस लगभग 1440 वर्ष ईसा पूर्व में हुआ था अथवा 1280 ईसा पूर्व में? बाइबल में कहा गया है कि जब सोलोमन द्वारा मंदिर बनना शुरू किया गया उसके 480 वर्ष पहले एक्सोडस हुआ था| सोलोमन का मंदिर 966 ईसा पूर्व में बना था| इस हिसाब से एक्सोडस 1446 वर्ष ईसा पूर्व मे हुआ था| लेकिन इजिप्ट में 1446 ईसा पूर्व के समय पुरातत्व अवशेष नहीं मिलते हैं [|22] लोगों के वहां से निकलने के प्रमाण नहीं मिलते है|
इसलिए बाइबल के जानकारों के एक घटक का मानना है की एक्सोडस 1280 ईसा मे हुआ था| उनका आधार यह है की बाइबिल में कहा गया है की हिब्रूज ने रामेसेस और पिथौम नाम के दो शहर बनाएं थे| पुरातत्व अवशेषों और मिस्र के साहित्य के अनुसार रामेसिस और पिथौम नाम के शहरों के अवशेष लगभग 1280 में मिलते हैं| इसलिए उनका मानना है कि एक्सोडस 1280 वर्ष ईसा पूर्व में हुआ होगा|
हम इस विवाद को यहां हल नहीं कर सकते हैं| लेकिन इतना जरूर है कि भारतीय ज्योतिष के अनुसार महाभारत लगभग 1500 ईसा पूर्व और बाइबल के अनुसार लगभग 1500 ईसा पूर्व में एक्सोडस हुआ होगा| स्मरण रहे कि चनुदारू का अंत 1500 ईसा पूर्व हुआ था| यानी की जिस समय हिन्दू ज्योतिसः और बाइबल के अनुसार एक्सोडस हुआ उसी समय चनुदारू का अंत हुआ |
हिन्दू और बाइबलीय नामों में समानताये
अब हम नामों की समानता को देखते हैं| पहले स्थानो को देखें| मथुरा शब्द में एम टी और आर तीन व्यंजन मिलते हैं| बाइबल में इजिप्ट नाम का एक भी उल्लेख नहीं है| वहां पर शब्द है मितस्राइम जिसमें भी व्यंजन है एम टी और आर हैं | ध्यान दे की मिस्र के लोग अपने को उस समय कमेट कहते थे | मिस्रशब्द का पहला उल्लेख 1300 ईशा पूर्व मे मिलता है जो की एक्सोडस के बाद है और प्रवेश करने वाले हिब्रूज से लिए गया हो सकता है | इसलिए मथुरा और मितस्राइम एक ही स्थान के नाम हो सकते हैं|
यमुना और जॉर्डन एक समान है क्योंकि J का Y हो जाना सामान्य है | दोनों मे J और N व्यंजन मिलते है | रामेसिस संभवतः हमारा रामेश्वर होगा| गोकुल बाइबल का गोसेन होगा | दोनों मे गो आता है जो की गायों के लिए उपयोग होता है एवं यादव और हिब्रूज दोनों गो पलक थे|
व्यक्तियों के नाम एक ही वंश की परंपरा में मिलते है| भारतीय सगर बाइबिल के एबर हुए| राघव रियु हुए| शीघ्रग शेरुग हुए| दशरथ तेराह हुए. राम अब्राहम हुए| इनका नाम पहले अब्राम था जिसके संधि विच्छेद हुआ अब-राम| अब्राम से बना अब्राहम | भगवान कृष्ण और मोसेस के पूर्वजों के नामों के बीच भी समानता मिलती है| लेकिन यह उच्चारण की नहीं बल्कि उनके नामो में अर्थो की है|
कृष्ण के पिता का नाम था वासुदेव | जिसका अर्थ होता है एक्सीलेंट, गूड या बेनिफिसिएन्ट| मोसेस के पिता का नाम था, अमराम जिसका अर्थ होता है एग्सौलटेड या एक्सीलेंट| ये एक समान है| कृष्ण की माँ का नाम देवकी था जिसका अर्थ होता है डिवाइन या सेलेस्टियल| मोसेस की माँ का नाम था जोकेबिड जिसका अर्थ होता है ईश्वर का वैभव|
कृष्ण का नाम स्वयं काले रंग से गिना जाता है कृष्ण यानी काला| मोसेस का नाम में तो काला नहीं मिलता लेकिन मोसेस की एक कहानी है कि मोसेस का जब पहाड़ पर भगवान से साक्षात्कार हुआ तब भगवान ने मोसेस से कहा कि तुम अपने हाथ को अपने कपड़े के अंदर डालो| जब मोसेस ने हाथ बाहर निकाला तो वह सफेद था|
जब मोसेस ने उसे वापस डाला तो भगवान ने फिर उसे पूर्ववत्त बना दिया| मोसेस के हाथ का रंग सफेद हो जाना इस बात को प्रमाणित करता है कि मोसेस का वास्तविक रंग काला था| कृष्ण के भाई का नाम बलराम और मोसेस के भाई का नाम एरोन दोनों ध्वनि मे समानांतर है| यह भी समानांतर है की बलराम और एरोन की मृत्यु कृष्ण और मोसेस के पहले हुई थी|
धार्मिक मूल्यों की समानता
हमारा अंतिम विषय धार्मिक मूल्यों का है| कृष्ण और यहूदी की विचारधारा में एक प्रमुख अंतर ईश्वर के रूप का है| कृष्ण ईश्वर को सर्वव्यापी मानते हैं जबकि यहूदी गॉड को पर्सनल मानते हैं| यानी कृष्ण की विचारधारा सर्वव्यापी है जबकि यहूदी की विचारधारा एकईश्वर वादी है| लेकिन हम जब ध्यान से देखते हैं तो यह शब्दों का खेल का अंतर है|
मोसेस ने जब पहाड़ पर भगवान का साक्षात्कार किया| उसके बाद जब वे नीचे आए तो उन्होंने 10 आदेश दिए| जिन्हें 10 commandments काहा जाता है | पहला आदेश था “the lord am your God who brought you out from the land of Egypt from the house of slavery.” अब इस वाकया के हिब्रू में शब्द निमं प्रकार हैं : I lord God who out land Egypt house slavery. इन हिब्रू शब्दों मे यदि हम अलग-अलग शब्द जोड़ें तो बाइबिल और हिन्दू बराबर हो जाते हैं|
समान्यता बाइबल के अनुसार इनमे इटैलिक मे दिए गए शब्द जोड़े जाते हैं “I the lord am your God who brought you out of from the land of Egypt from the house of slavery.” इससे अर्थ निकलता है कि भगवान एक मनुष्य के सरीखा हिब्रूज को इजिप्ट से निकाल करके दास्ता से बाहर लाये| लेकिन इन्ही शब्दों का दूसरा अर्थ भी हो सकता है| अब इन्हें हिंदू दृष्टि से पढ़ें: “I am the lord God by connecting with whom you came out from the let land of Egypt from the house of slavery”.
यहाँ हिब्रूज शब्द वही है| परन्तु हिंदू शब्दों में देखें तो भगवान कह रहे हैं कि मैं वह ईश्वर हूं जिससे जुड़कर तुम इजिप्ट की गुलामी से बाहर आए| अर्थात भारत का अद्वैतवाद निर्देशक (यहूदी) जियुस का अद्वैतवाद मूलतः एक ही है| केवल उसमें जिन शब्दों को जोड़ा गया है उसके अनुसार उसका अर्थ बदल जाता है|
मोसेस का दूसरा आदेश था कि अकेले मेरी पूजा करो और दूसरी मूर्तियों की पूजा मत करो| लगभग यही बात कृष्ण भी कहते हैं| भागवत पुराण के 10:84 में कृष्ण कहते हैं कि “जो मिट्टी, पत्थर, काष्ट आदि पार्थव विकारों को ही इष्ट देव मानता है तथा जो केवल जल को ही तीर्थ समझता है, ज्ञानी महापुरुषों को नहीं; वह मनुष्य होने पर भी पशुओं में भी नीच गधा है|”
कृष्ण यह तो नहीं कहते की मूर्ति पूजा मत करो लेकिन बिल्कुल स्पष्ट कहते हैं कि पत्थरों आदि मूर्तियों की पूजा करना अधम व्यवस्था है| इसलिए इन धार्मिक मान्यताओं में अंतर विरोध नहीं है|
अगला विषय सब्बत का है| भारतीय परंपरा में एकम या प्रतिपदा का धार्मिक महत्व है. जियुस (यहूदी) परंपरा में चंद्रमा का महत्व कम और साप्ताहिक अवकाश का महत्व ज्यादा है जिसे सब्बत कहा जाता है| लेकिन मॉरेस जास्ट्रो द्वारा प्रकाशित एक पर्चे में बताया गया की जियुस (यहूदी) द्वारा पूर्व में प्रतिपदा को ही पवित्र माना जाता था[23] | साप्ताहिक अवकाश केवल सामाजिक व्यवस्था का था जिसमें दासों और पशुओं को एक दिन आराम करने का समय दिया जाता था| समय क्रम में प्रतिपदा पीछे हो गई और सब्बत आगे हो गया| इसलिए आज दिखता है कि भारत में प्रतिपदा का महत्व है और यहूदी में शब्द के साप्ताहिक अवकाश का लेकिन यह अंतर बाद का है|
उपवास करने की समानता
एक और अंतर उपवास का है| भारतीय परंपरा में उपवास का बहुत महत्व है जैसा गांधी जी के संदर्भ में हम देख सकते हैं| लेकिन पुनः बाइबिल के ईसाया 58:6 में कहा गया कि मैं उपवास से प्रसन्न होता हूं| ईसाइयो के अनुसार उपवास का महत्व बिल्कुल भारतीय परंपरा जैसा है| समय क्रम में यह उपवास की परंपरा यहूदी ने छोड़ दी है | यह परंपरा पूर्व में एक दूसरे के समान थी|
धार्मिक मान्यता में अन्य भी तमाम समानताएं है| रफी मेड्स द्वारा तोरा वेदा नाम की वेबसाइट पर बताया गया की दोनों धर्मो के ईश्वर का वर्णन समान है[24] | वह समय और क्षेत्र से आगे है, वह सतत है, वह प्रथम है, वह एक है, वह पूर्ण है, वह अवर्णीय अनंत और सर्वव्यापी है, वह सर्व जानकार है, और वह मूल है| इन वर्णन मे भेद नहीं है| इनके बीच दो-तीन अंतर है| एक यह कि भारत में चंद्रमा का कैलेंडर काम में लिया जाता है जबकि यहूदी में चंद्रमा और सूर्य का सम्मिलित कैलेंडर होता है| यहूदी में खतने की परंपरा है| जबकि भारत में यह नहीं है| ये मामूली अंतर दिखते है|
जियुस का इश्वर से कथित विशेष सम्बन्ध
वर्तमान समय में यादवों और यहूदी के बीच एक विशेष अंतर है| भारतीय परंपरा में यादव समेत सभी ने किसी भी कौम से अपने को ईश्वर का विशेष पात्र नहीं कहा| भारतीय परंपरा में सब जीव ईश्वर के बराबर हकदार है| इसके विपरीत जुइस की परंपरा में यहूदी को विशेष दर्जा दिया गया है| बाइबल के जेनेसिस 15:18 में कहा जाता है कि भगवान ने अब्राहम से एक समझौता किया और कहा की मैं तुम्हारे वन्शंजो को इजरायल की भूमि देता हूं| यहां जो वन्शंजो का शब्द है वह जेरा ‘ZERA’ है|
इस शब्द का दो तरह का अर्थ है| एक अर्थ है सीड, वंशज, बच्चे इत्यादि | और दूसरा अर्थ है नैतिक व्यक्ति और धर्म का पालन करने वाला|
प्रश्न यह उठता है कि जेनेसिस 15.18 में जो ZERA कहा गया वह उनके भौतिक वंशजों के लिए है या उनके नैतिक वंशजों के लिए ? दोनों हो सकता है|
इसके अतिरिक्त जेनेसिस 17.5 में अब्राम का नाम बदल करके भगवान ने अब्राहम कर दिया| अब्राम में H जोड़ दिया| बाइबल के जानकारों का कहना है कि यह जो H का व्यंजन जोड़ा गया इसका अर्थ व्यापक होना है| अतः यदि हम यह भी माने की इजराईल की भूमि अब्राहम के वंशजों को दी गई तो भी उनके वंशजों में संपूर्ण मानवता को जोड़ लिया गया है | अतः मूल यहूदइ धर्म शास्त्रों में जीयूस का कोई विशेष दर्जा होना जरूरी नही है. यह उनकी अपनी समझ है जो की बाद की हो सकती है | अतः मूलतः भारतीय धर्म शास्त्र जीयूस धर्म शास्त्र के बराबर है|
कृष्णा ही मोसेस है!
अंतिम विषय है कि यदि हम मान ले की जीयूस भारतीय यदुवंशी हैं तो हम उनको कौरव मानेंगे या पांडव? दोनों ही यदुवंशी है| इसलिए मैं आगाह करना चाहूंगा कि हमें यादवों और जीयूस की समानता के आधार पर इजराइल का ना तो समर्थन करना चाहिए न भर्तसना करना चाहिए| वह एक अलग विषय है| परंतु यह तो हम कह ही सकते हैं कि जीयूस भारत के यदुवंशी है|
इस पोस्ट का उद्देश्य यह है कि जो भारत के यादवों और भगवान कृष्ण की जो सर्वव्यापकता है हम उस दिशा में यहूदी लोगों को लेकर जाए| उनका जो अपना कथित विशेष दर्जा है उसे वे छोड़े और ईश्वर की सर्वव्यापकता को अपनायें जिससे संपूर्ण सृष्टि में एक भाव बने और हम लोग आपस में मिलकर रह सके| इस विषय पर मेरे द्वारा एक विस्तृत पुस्तक द कॉमन प्रॉफिटस ऑफ जीयूस क्रिश्चियनस मुस्लिमस एण्ड हिन्दुस प्रकाशित की गई है जिसमें स्वयंभू मनु से लेकर भगवान कृष्ण तक की जीवन वृतांत की विस्तृत रिसर्च उपलब्ध है जो की अमेजॉन पर आसानी से उपलब्ध है|
References
[1] Against Apion, Book I:22.
[2] Rajendra Yadav, Yaduvanshi Kshatriya Rajvansh, Yaduvanshi Maitri Mahasangh, New Delhi, No Date. Prakkathan.
[3] Genesis 47:1.
[4] Exodus 1:16
[5] Exodus 2:21
[6] Bhagwat Puran 10:52
[7] Josephus, Antiquities of the jews 2:10
[8] Valdiya, K S, “River Piracy: Sarasvati that Disappeared,” in S Kalyanraman, Editor, Vedic Sarasvati River and Hindu Civilization, Aryan Books International, New Delhi, 2008, Figure 8.
[9] Bhagwat 0:39:40
[10] Exodus 7:14
[11] Mahabharat, Mausala Parv , 6:17, 24-25
[12] Exodus 5:7
[13] Half pound of straw is to be added to one cubic foot mud to make mud bricks. (Biblical Archaeology Society Staff, How to Make a Mudbrick, http://www.biblicalarchaeology.org/daily/ancient-cultures/daily-life-and-practice/how-to-make-a-mudbrick/, May 1, 2014, Retrieved March 6, 2017.) The weight of one cubic foot mud is 34 kilograms. Half pound straw weighs 227 grams. The straw added works out to 0.6% by weight.
[14] Bhagwat Puran 11:30:13, 19-21.
[15] Exodus 32:25-29
[16] Mabdullah, Hangol Mud Volcano, Hangol National Park, Pakistan, 2007, Wikimedia Commons, https://commons.wikimedia.org/wiki/File:HangolMudvolcano3.JPG, Retrieved March 24, 2016.
[17] “The name Kangavar, or Kankivar, Gk. Kory/coftdp, may be derived from *Kahha-vara, c enclosure of Kanha,’ the first element of the compound being probably a proper name, Kahha, as in Avestan Kahha-daeza and Firdausi’s Kang-diz, and the second element, vara, ‘enclosure,’ being cognate with the designation of the Vara of Jamshid” (Jackson, A. V. Williams, Persia Past and Present: A Book of Travel and Research, London: Macmillan & Co. Ltd., 1900, Page 214). The word “Kanha” is also rendered as “Kanjha” which is translated as dkalk, which, in turn, means brass in Sanskrit. It is thus, identified with a “cauldron” of brass (Encyclopedia Iranica, Kangdez,
[18] Oppeneheimer, S. (2012). ‘Out-of-Africa, the peopling of continents and island: tracing uniparental geme trees across the map,’ Phil. Trans. R. Soc. B, [Online]. Available at: https://www.ncbi.nlm.nih.gov/pmc/articles/ PMC3267120/ (Accessed 23 January 2021).
[19] Jewish R-M124 Haplogroup. https://www.familytreedna.com/groups/jewish-r-m124/about/background.
[20] Rao, S R, Dwarka: The Submerged City of Krishna, xa.yimg.com/kq/groups/3167322/546050894/…/1-Dr+S+R+Rao.pdf, Retrieved July 25, 2013.
[21] Benjamin J. Noonan, Egyptian Loanwords as Evidence for the Authenticity of the Exodus and Wilderness Traditions, https://www.degruyter.com/document/doi/10.1515/9781575064307-005/html?lang=en.
[22] Janzen, Mark D., The Exodus: Historicity, Chronology and Theological Implications, Zondervan Academic 2011, Page 15.
[23] Jastrow, Morris Jr, The Original Character of Hebrew Sabbayj, The American Journal of Theology, https://www.journals.uchicago.edu/doi/epdf/10.1086/476827.
[24] http://torahveda.org/.
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