माना जाता है कि रामजी की लंका सीलोन में या श्रीलंका में स्थित थी. लेकिन ईसा पूर्व 600 के पहले श्रीलंका में रिहाइश के कोई भी पुरातत्व प्रमाण नहीं मिलते हैं[i]. जबकि रामजी का समय ईसा इससे बहुत पहले आंका जाता है. विद्वान रामजी का समय इसा पूर्व 12000 से 2000 वर्ष पूर्व मानते हैं[ii]. सबसे बाद के समय इसा पूर्व 2000 पर भी श्रीलंका में पुरातत्व प्रमाण नहीं मिलते हैं. अतः या तो हमें रामजी को काल्पनिक मानना होगा अथवा लंका को दुसरे किसी स्थान पर बताना होगा.
मंदोदरी कहाँ कि बेटी थी?
मै किसी समय में जोधपुर के पास मंडोर अध्ययन करने के लिए गया हुआ था. मंदोदरी मंडोर की ही बेटी थी. वहां पर एक रावण चौरा है. बताया जाता है कि रावण मंदोदरी से विवाह करने वहां आया था और उसके सम्मान में यह चौरा बनाया गया था. वहां पर मेरी कुछ लोक गायको से मुलाकात हुई. उन्होंने बताया कि उनके सुनने में आया है की रावण कच्छ से मंडोर आया था[i]. तब मैंने पंचवटी से आगे रामजी कि यात्रा का अध्ययन किया और लंका को कच्छ की तरफ ढूंढने का प्रयास किया. विशेषकर हम पंचवटी से रामजी के दक्षिण दिशा में जाने के संकेतों का विश्लेषण करेंगे और दिखायेंगे कि इनसे कच्छ की भी दवानी निकलती है.
रावण सीता को किस दिशा में ले गया था?
पंचवटी नासिक के पास है. जब रावण ने सीताजी का हरण कर लिया तो उसके बाद रामजी ने हिरणों से पूछा “रावण सीता को किस दिशा में ले गया?” वाल्मीकि रामायण के अनुसार हिरणों ने आकाश की तरफ इशारा किया और उसके बाद वे दक्षिण में अपना मुंह करके भागे[i]. इसके दो अर्थ निकलते है. यदि हम दिशा की बात करें तो हिरणों ने अपनी असमर्थता बताई की वह आकाश की तरफ लेकर गया. लेकिन यदि हम उनके मुख की दिशा को पकड़े तो निष्कर्ष निकलता है की रावण दक्षिण दिशा की ओर गया होगा. लेकिन दोनों संभावनाएं हैं. यह दक्षिण जाने का प्रमाण नहीं है चूँकि इस घटना से दिशाहीनता भी निकलती है. इसके बाद रामजी ने पंपा सरोवर के पानी में प्रवेश करके पार किया.
पंचवटी से उत्तर में एक स्थान है जिसका नाम पंपा है. वहां पर एक विशाल तालाब है. स्थानीय लोग इसे पंपा सरोवर मानते हैं[i]. लेकिन यह बहुत गहरा है इसमें प्रवेश करके पार किया जाना कठिन है. इस तालाब में पानी पूर्णा नदी से आता है. संभव है उस समय इस पूर्णा नदी का नाम भी पंपा रहा हो और रामजी ने इस नदी को पार किया हो. रामायण में पाम्पा के लिए पुशकरिणी शब्द का उपयोग किया गया है जो नदी और सरोवर दोनों के लिए उपयोग किया जाता है.
पंचवटी से उत्तर में एक स्थान है जिसका नाम पंपा है. वहां पर एक विशाल तालाब है. स्थानीय लोग इसे पंपा सरोवर मानते हैं[i]. लेकिन यह बहुत गहरा है इसमें प्रवेश करके पार किया जाना कठिन है. इस तालाब में पानी पूर्णा नदी से आता है. संभव है उस समय इस पूर्णा नदी का नाम भी पंपा रहा हो और रामजी ने इस नदी को पार किया हो. रामायण में पाम्पा के लिए पुशकरिणी शब्द का उपयोग किया गया है जो नदी और सरोवर दोनों के लिए उपयोग किया जाता है.
पुष्पक विमान वास्तव में समुद्री जहाज था?
इसके बाद रामजी जनस्थान पहुंचे. वहां पर जटायु ने उनसे कहा की रावण सीताजी को दक्षिण दिशा में ले गया है. यह दक्षिण दिशा का दूसरा संदर्भ है. इसे समझने के लिए जनस्थान की पृष्टभूमि में जाना होगा. रावण का पुष्पक विमान एक समुद्री जहाज दिखता है. उसमे बड़े कमरे थे और झंडे लगे थे[i]. इसलिए रावण लंका से पंचवटी पानी के रास्ते आया होगा. पंचवटी के उत्तर में ताप्ती नदी बहती है. इसके तट पर कामरेज नाम के स्थान पर जहाजों के रुकने के बंदरगाह आदि के अवशेष मिले हैं[ii]. संभव है कि रावण ने सीताजी का नासिक में हरण किया और उन्हें वह कामरेज लेकर आया जहाँ रावण ने अपना जहाज बाँध रखा होगा. जब कामरेज से समुद्र की तरफ तपती नदी पर चलते हैं तो कुछ दूर दक्षिण दिशा में चलना पड़ता है. ताप्ती नदी सूरत के आगे थोड़ा दक्षिण दिशा में मुड़ कर के समुद्र में जाती है. अतः जटायु ने जो कहा की रावण दक्षिण दिशा में लेकर गया वह कामरेज से कुछ दूरी तक दक्षिण दिशा में रावण की यात्रा को दर्शाता हो सकता है. उसके बाद वह कहां लेकर गया इसका कोई संकेत नहीं मिलता है.
क्या मानिकनाथ गुफा ही किष्किंधा है?
इसके बाद जनस्थान से आगे रामजी किष्किंधा गए. कामरेज से उत्तर में दांता जिले में मानिकनाथ गुफा है. स्थानीय लोग कहते हैं कि यहां पहले राक्षस रहते थे. संत मानिकनाथ ने उनको यहां से हटाया था[i]. संभावना है कि वे राक्षस सुग्रीव के वंशज थे. मानिकनाथ गुफा का सुग्रीव से संबंध दिखाई पड़ता है. यही किष्किन्धा रही होगी.
हनुमान जी की यात्रा: दक्षिण दिशा या उत्तर-पश्चिम की ओर?
इसके बाद रामजी ने हनुमान जी को कहा कि आप सीताजी की खोज में जाइये. वाल्मीकि रामायण के अनुसार हनुमान जी किष्किन्धा से दक्षिण कि ओर सीताजी की खोज में निकले थे. यह दक्षिण दिशा का तीसरा उल्लेख है. रामायण यह भी कहती है कि वे अभिजित नक्षत्र में गए थे. अभिजित नक्षत्र की दिशा उत्तर-पश्चिम की है[i]. अतः यहाँ दो दिशाएं निकलती हैं. यदि हम नक्षत्र को महत्व दें तो संकेत मिलता है कि हनुमान जी किष्किंधा से उत्तर-पश्चिम को गए. लेकिन यदि उनकी यात्रा को महत्व दें तो वे दक्षिण को गए होंगे. यहाँ भी पेंच है.
मानिकनाथ की गुफा एक पहाड़ के दक्षिणी तरफ स्थित है. वहां से निकलने के लिए सड़क दक्षिण को निकलती है. संभव है कि हनुमान जी मानिकनाथ से पहाड़ के दक्षिण से निकले और मैदान में आने के बाद वे उत्तर-पश्चिम को कच्छ की तरफ गए होंगे. अतः यहाँ भी श्री लंका की ओर जाने का प्रमाण नहीं मिलता है.
वाल्मीकि रामायण का सिंधु तट कच्छ का रण हो सकता है
वाल्मीकि रामायण के अनुसार रामजी और सुग्रीव सीताजी को छुड़ाने के लिए सिंधु तट पर गए. सिंधु शब्द का एक अर्थ समुद्र होता है. यह दक्षिण दिशा का चौथा संकेत है. लेकिन सिन्धु के सीधा अर्थ सिंधु नदी से जुड़ा है. आज से 2000 वर्ष पूर्व रामजी के समय सिंधु नदी अपने वर्तमान रास्ते से नहीं बहती थी बल्कि इससे पूर्व में बहती थी और वह कच्छ के रण में आकर समुद्र में मिलती थी[i]. अतः जब कहा गया कि वे राम और सुग्रीव सिंधु तट पर गए तो सिंधु तट का मतलब कच्छ का रण भी हो सकता है क्योंकि वहां पर उस समय सिंधु नदी गिरती थी और वहां सिन्धु तट था. सिंधु के तट यानी कच्छ पहुंच कर रामजी ने समुद्र को पार किया.
कच्छ के पूर्वी हिस्से में वाडनगर बसा हुआ है. वहां पर एक स्थान है राम टेकरी. उसमें पुराने समय की ईंटायें दिखती है लेकिन उनका समय का निर्धारण अभी हमारी जानकारी में नहीं हुआ है.
इसी राम टेकरी के पास एक छोटा सा मंदिर है जिस पर रामेश्वर लिखा है. इससे यह संभावना बनती है कि रामजी और हनुमानजी वाडनगर आये होंगे, वहां पर उन्होंने डेरा डाला होगा और वहां से पश्चिम की ओर कच्छ के रण में स्थित लंका तक पहुंचने का प्रयास किया होगा.
वाल्मीकि रामायण और स्कन्द पूराण में बताया गया है कि उनकी सेना ने वृक्षों को उखाड़ा, उनके साथ पत्थरों को बांधा और समुद्र में डाला. कच्छ के रण की गहराई 10 से 20 फीट के लगभग है. उस स्थिति में यदि आप पेड़ को पत्थर से बांधकर समुद्र में फेंक दें तो पत्थर जमीन पर बैठ जाएगा और वह वृक्ष तैरेगे और अपनी जगह स्थिर रहेंगे. उन वृक्षों को पकड़ कर रामजी की सेना एक तट से दूसरे तट पर जा सकती थी.
धोलावीरा में उपलब्ध है रामायण के साक्ष्य
जूलॉजिकल सर्वे के चित्र में दिखाया गया कि वाडनगर से जब पश्चिम की तरफ चलते हैं तो पहले दो द्वीप आते हैं और उसके बाद खदिर नाम का एक द्वीप आता है जिस पर धोलावीरा की पुरातत्व साइट स्थित है. हमारा मानना है कि यही लंका थी.
जूलॉजिकल सर्वे के चित्र में दिखाया गया कि वाडनगर से जब पश्चिम की तरफ चलते हैं तो पहले दो द्वीप आते हैं और उसके बाद खदिर नाम का एक द्वीप आता है जिस पर धोलावीरा की पुरातत्व साइट स्थित है. हमारा मानना है कि यही लंका थी.
वाल्मीकि रामायण में बताया गया कि लंका में मानव निर्मित तालाब थे[i]. धोलावीरा की विशेष बात है कि वहां पर कईं मानव निर्मित तालाब है. यहाँ लंका से सम्बंधित नाम भी मिलते हैं. धोलावीरा में लंकी बाजार नाम का एक स्थान है. यहाँ से दक्षिण में रण के दूसरे छोर पर लंकी डूंगरा यानी लंका के पत्थर नाम का स्थान है.
धोलावीरा के पश्चिम में कोटेश्वर में किवदंती है की रावण किसी समय शिवजी की प्रतिमा को लेकर जा रहा था और वहां पर उसने प्रतिमा को थोड़ी देर के लिए रख दिया. उसके बाद वहां से उसे उठा नहीं पाया. इस बात से यह भी दिखाई पड़ता है कि रण का रावण से कुछ संबंध होगा अन्यथा श्रीलंका से रावण को कोटेश्वर आने की कोई आवश्यकता नहीं थी.
विशेष बात यह है कि धोलावीरा में ईसा पूर्व 3000 वर्ष के समय से इसा पूर्व 2000 तक रिहाईश के प्रमाण भी मिलते हैं[i]. वहां पर तमाम पत्थरों कि बनी हुई सड़के हैं. जहां श्रीलंका में पुरातत्व का घोर अभाव है वहीं धोलावीरा में उनकी प्रचुर उपलब्धि है.
इन सब तथ्यों को देखते हुए हमें गंभीरता से विचार करना चाहिए कि पंचवटी से रामजी दक्षिण को श्रीलंका को ना जाकर वे वास्तव में उत्तर पश्चिम को धोलावीरा आए होंगे. यहां उन्होंने रावण से युद्ध किया और सीताजी को छुड़ाकर वापस अयोध्या गए. इस शोध का महत्व यह है की इससे रामजी की ऐतिहासिकता सिद्ध होती है. यदि हम श्रीलंका को पकड़ कर बैठे रहेंगे तो पुरातत्व प्रमाण के आभाव में हमें रामजी को काल्पनिक मानना होगा.
नोट: YouTube पर इस विडियो को देखने के लिए यहाँ क्लिक करे
References
[i] Archaeological Survey of India (2013), Excavations – Dholavira, http://asi.nic.in/asi_exca_2007_dholavira.asp, Retrieved July 24, 2013.
[i] Ramayana, Sundar Kanda 2:12.
[i] Snelgrove, Alfred K, Migrations of the Indus River, Pakistan, in Response to Plate Tectonic Motions, Journal of Geological Society of India, Vol 30, August 1979, Page 394.
[i] Bangalore Venkat Raman, Prasna Marga, Motilal Banarsidass Publ., 1999, Page 642.
[i] Prabhu Bhai Desai, former Village Headperson of Kunwarsi Village.
[i] The Pushpaka Vimana “is thought to resemble a ship” (Monier-Williams, Monier, Sanskrit-English Dictionary, Southern Publications, Madras, 1987,Page 980).
[ii] Gupta, Sunil, Port structures at early historic Kamrej, 7th National Conference on Marine Archaeology of Indian Ocean Countries : Session 1, CSIR National Institute of Oceanography, Dona Paula, Goa, http://www.nio.org/index/option/com_eventdisplay/task/view/tid/4/sid/114/eid/28, Retrieved March 24, 2016).
[i] The Ramayana uses “Pampa” 3 times with the adjective “Pushkarini” (Ramayana, Aranya Kanda 73:10, 74:1, Kishkindha Kanda 1:1). “Pushkarini” means blue-lotus (Monier-Williams, Sanskrit-English…, Page 638). Thus, “pushkarini” could refer to a pond or a river.
[i] The Ramayana uses “Pampa” 3 times with the adjective “Pushkarini” (Ramayana, Aranya Kanda 73:10, 74:1, Kishkindha Kanda 1:1). “Pushkarini” means blue-lotus (Monier-Williams, Sanskrit-English…, Page 638). Thus, “pushkarini” could refer to a pond or a river.
[i] Ramayana, Aranya Kanda 64:16-17.
[i] Tulsi Singh Rathod at Pabuji Temple located between Jodhpur and Phalodi.
[i] Excavation Division, Prehistoric Research Excavations, Department of Archaeology, Sri Lanka, www.archaeology.gov.lk/web/index.php?option=com…id…, 2013, Retrieved July 24, 2013.
[ii] Roy, S B, “Scientific (Astro-Dynastic) Chronology of Ancient India,” in C Margabandhu et. al., Editors, Indian Archaeological Heritage, Agamkala Prakashan, Delhi, 1991, Page 702-703.
But he was able to free it priligy dosage