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यहूदी, ईसाई, मुस्लिम एवं हिन्दू के साझा पूर्वज

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Historicity of the Garden of Eden

मेरे अध्ययन के अनुसार बाइबिल और कुरानिक धर्मों की उत्पत्ति सिंधु घाटी में हुई थी और मूसा ने मिस्र से नहीं, बल्कि सिंधु घाटी से पलायन (Exodus) का नेतृत्व किया था 1446 ईसा पूर्व के आसपास, जो पारंपरिक रूप से पलायन का समय माना जाता है। मिस्र में यहूदियों का कोई पुरातात्विक साक्ष्य नहीं है। इसके विपरीत सिंधु घाटी सभ्यता लगभग 1500 ईसा पूर्व के आसपास ध्वस्त हो गई थी जिसके कारण वहां के लोग सभी दिशाओं में फैल गए। इन लोगों में से कुछ पश्चिम एशिया गए और वही यहूदी बन गए। मूसा ने आदम, नूह और अब्राहम की यादें सिंधु घाटी से लीं और ये सभी व्यक्ति मूल रूप से सिंधु घाटी में रहते थे। इन यादों को बाइबिल में समाहित कर लिया गया। महाभारत के मौसल पर्व में उल्लेख है कि यादवों के आपसी संघर्ष के बाद कृष्ण एक अज्ञात देश के लिए रवाना हो गए। यह अज्ञात देश इसराइल था जिससे यह संकेत मिलता है कि कृष्ण ही मूसा थे।

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क्या बाइबिल यहूदियों के इजराइल पर अधिकार को बताता है?

Posted on January 26, 2024October 18, 2024 By ekishwar

बाइबिल में पहले कहा गया की इश्वर ने अब्रहाम के वंशजों को मिस्र की और पेरथ नदी के बीच की जमीन दी। इसके बाद अब्रहाम का विस्तार हुआ। और वे सम्पूर्ण मानवता…. के अग्रणी हो गए। इसके बाद इश्वर ने उनके अनुयायियों को कनान की धरती दी। अनुयायियों में यहूदी और अन्य शामिल हैं। अतः इश्वर ने यहूदियों मात्र को इजराइल पर अधिकार नहीं दिया।

आज धर्मो के बीच विवाद का एक मुख्य कारण इजराइल है। यहूदियों की मान्यता है कि बाइबिल मे भगवान ने उन्हें इस भूमि को प्रदान किया था इसलिए उन्होंने इस भूमि पर जबरन कब्ज़ा किया। लेकिन बाइबिल को हम दूसरी तरह से भी पढ़ सकते है।

कहानी कि शुरुआत बाइबिल के श्लोक 15:18 से होती है, उस श्लोक मे भगवान ने मिस्र के और पेरत नदी के बीच की जमीन इब्राहम के वंशजो को दी। इस आधार पर ही इजराइल राज्य की स्थापना हुई है। मिस्र कि नदी इजिप्ट मे है और पेरत नदी इराक़ मे है। बीच मे इजराइल स्थित है।

जेनेसिस के श्लोक 17:3 मे इब्राहम का स्तर बड़ा हो जाता है। अब्रहाम का पुराना नाम अब्राम था उसमे ‘ह’ जोड़ा जाता है और उनका नाम ‘अब्रहाम’ हो जाता है। यहूदी विद्वान बताते है कि ‘ह’ को जोड़ने का अर्थ: उनका विस्तार या बडापन या सर्वव्यापी होना है। यानि जेनेसिस 17:3 के पूर्व अब्रहाम अपने परिवार के मुखिया थे लेकिन जेनेसिस 17:3 के बाद अब्रहाम सम्पूर्ण मानवता के मुखिया हो जाते है।

जेनेसिस 17:15 से 22 मे, भगवान ने अब्रहाम के वंशजो को आशिर्वाद दिया कि आपके पुत्र हो। जेनेसिस 22:17 मे भगवान ने अब्रहाम के वंशजो को आशिर्वाद दिया कि वे अपने शत्रुओं पर विजय पाए। लेकिन जेनेसिस 17:3 मे अब्रहाम के सर्वव्यापी हो जाने के बाद भगवान ने भूमि अपने वंशजों अथवा यहूदियों को को प्रदान नही की। अब प्रश्न है कि क्या हम जेनेसिस 15 के अधार पर आज भी यहूदी समुदाय का अधिकार इजराइल पर मानेगे?

यदि हम उनके पूर्व के अधिकार को निरस्त मानते हैं और यह मानते है कि अब्रहाम सर्वव्यापी हो गए तो फिर पूर्व का वह अधिकार समाप्त हो गया। यह विषय इसलिए प्रमुख है कि आज मे धर्मो के बीच कलह का एक प्रमुख कारण इजराइल राज्य की स्थापना है। इसमे कोई शंशय नहीं है कि यहूदियों ने मानवता के प्रति बहुत उपकार किया है. उन्होंने अब्रहाम के एक ईश्वरवाद के सन्देश को संग्रह करके रखा और तमाम मानवता तक पहुँचाया है।

यहूदी संस्कृति के दो हिस्से हुए। एक हिस्सा उनके एक ईश्वरवाद के सिधान्त का संग्रह और विस्तार करना है। दूसरा हिस्सा यहूदियों द्वारा इजराइल की भूमि का कब्ज़ा करना है। हमारा मानना है की जो भूमि भगवान ने पहले इब्राहम के वंशजो को दी थी वह बाद मे सभी एक इश्वर को मानाने वालों को दे दी। फिर इजराइल पर यहूदियों का अधिकार क्षीण हो जाता है।

आज अब्रहाम द्वारा बताये गए एक ईश्वरवाद सिदांत को मानने वाले आपस मे मार काट कर रहे है। आखिर क्यों? इसलिए की इश्वर ने पूर्व में जो भूमि अब्रहाम के वंशजो को दी थी उससे यहूदी उभर नही पा रहे है। यहूदियों को इस विषय पर पुनः विचार करना चाहिए और सम्पूर्ण समाज को भी यहूदियों को सम्मान देना चाहिए कि उन्होंने अब्रहाम के एक ईश्वर के सिधान्त का संग्रह किया और मानवता तक पहुंचाया।

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