हमारा प्रस्ताव रहा है कि यहूदी लोग किसी समय भारत से निकलकर पश्चिम एशिया पहुंचे थे. अतः हमें उनकी आनुवांशिकी अथवा जेनेटिक सूचना का भारत से संबंध मिलना चाहिए. सामान्य मान्यता है कि एक्सोडस लगभग 1500 ईसापूर्व हुआ था. इस समय मूसा यहूदियों को मित्स्रायिम नाम की जगह से निकालकर इसराइल पहुंचे थे. अतः यदि मित्स्रायिम भारत में था तो हमें 1500 ईसापूर्व के समय यहूदियों की अनुवांशिकी सूचना का सम्बन्ध भारत से मिलना चाहिए.
हमें पहली सूचना ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर स्टीफन ओपनहाइमर से मिलती है इनका परचा आप यहाँ देख सकते हैं आपने पाया कि वर्तमान मनुष्य लगभग 70 हजार वर्ष पूर्व अफ्रीका से निकले और हिंद महासागर के किनारे-किनारे चलते हुए ये दक्षिण एशिया पहुंचे. यहां से लगभग 25 हजार वर्ष पूर्व इनकी एक शाखा यहां से यूरोप पहुंची जैसा की आप इस चित्र में देख सकते है.
आधुनिक मानव 70 हजार वर्ष पूर्व अफ्रीका से निकले और हिंद महासागर से चलते हुए ये दक्षिण एशिया पहुंचे.
यद्यपि इस सूचना का सम्बन्ध भारत से दिखता है लेकिन इसे यहूदियों से जोड़ना कठिन है क्योंकि यह 25 हजार वर्ष पूर्व की बात है जबकि हमारे शोध का समय 1500 ईसापूर्व का है. इसलिए हम इस सूचना किनारे रख देते हैं.
दूसरी सूचना हमे यूनिवर्सिटी आफ पेंसिलवेनिया के प्रोफेसर स्टीव वाईत्ज़जमैन से मिलती है. इनका परचा आप यहाँ देख सकते हैं इनके अनुसार यहूदी परंपरा में मूसा के भाई आरोन ने अपने पुत्रों को पुजारी नियुक्त किया था. यह परंपरा तब से चलती आई है. वाईत्ज़जमैन ने पाया कि यहूदी पुजारियों के जीन में “कोहेन मॉडल हैप्लोटाइप” एक विशेष जीन मिलता है जिसे कहते है. यहूदी लोगों के दो भाग हैं–अशकेनाजी और शेफार्डिक. इन दोनों भागों का विभाजन लगभग 500 वर्ष ईसापूर्व हुआ था. पाया गया कि इन दोनों शाखा के पुजारियों में यह कोहान मॉडल हैप्लोटाइप मिलता है. इससे प्रमाणित होता है कि आरोन के पुत्रों के पुजारी बनने कि परंपरा 1500 ईसापूर्व की सकती है चूँकि आरोन उस समय ही हुए थे. संभव है कि 1500 ईसापूर्व से 500 ईसापूर्व तक यह परंपरा चलती रही. 500 ईसापूर्व में इन दोनों भागों में विभाजन हुआ. विभाजन के बाद भी दोनों भागो में कोहन मॉडल होलोटाइप मौजूद रहा. इसलिए आज भी दोनों भागों के पुजारियों मे यह जीन मिलता है. इस अध्ययन से बाइबल की परंपरा सही बैठती है लेकिन इससे यह सूचना नहीं मिलती है कि आरोन कहां हुए?
यहूदी पुजारी मूसा के भाई आरोन के वंशज होते है.
तीसरी सूचना हमें नेशनल ज्योग्राफिक सोसायटी के R-M124 प्रोजेक्ट से मिलती है. इनका परचा आप यहाँ देख सकते हैं. यह एक विशेष जीन है जो अशकेनाज़ी यहूदियों में और भारत मे पाया जाता है. संघमित्र साहू के अनुसार R-M124 जीन पश्चिम बंगाल में 23%, पश्चिम बंगाल के करमालियों में 100%, जौनपुर के क्षत्रियों में 87%, काम्मा चौधरीयों में 73% और बिहार के यादवों में 50% लोगों में पाया जाता है. इनका परचा आप यहाँ देख सकते हैं स्पष्ट है कि भारत के पूर्वी हिस्से में यह जीन भारी संख्या में पाया जाता है. यही जीन अशकेनाजी यहूदियों में पाया जाता है. अतः प्रश्न उठता है कि यह जीन भारत से अशकेनाजी यहूदियों में कैसे पहुंचा?
भारत से R-M124 जीन के यहूदियों में पहुचने का एक रास्ता ईरान से है.
R-M124 जीन के अशकेनाजी यहूदियों में पहुंचने के दो रास्ते संभावित हैं. एक सम्भावना पर्शिया के रास्ते की है. लगभग 600 ईसापूर्व यहूदियों को इसराइल से निष्कासित किया गया था. वे 60 वर्षों तक बेबीलोनिया यानी पुरातन इराक में रहे थे. उसके बाद वे पुन: इसराइल लौट गए थे. नेशनल ज्योग्राफिक के उपरोक्त प्रोजेक्ट का अनुमान है कि 600 ईसापूर्व भारत से कुछ लोग पर्शिया पहुंचे होंगे. साइरस ने उस समय पश्चिम की ओर आक्रमण किया था. भारत के ये लोग पर्शिया से साइरस के साथ बेबीलोन पहुंचे. बेबीलोन में इनका यहूदियों से संपर्क हुआ हो सकता है जिससे यह R-M124 जीन यहूदियों में प्रवेश कर गया. इस संभावना को नकारा नहीं जा सकता है परंतु यह स्पेक्युलेटिव है: पहले भारत के RM-124 पर्शिया गए; दुसरे ये लोग पेर्सिया से बेबीलोन गए; तीसरे उनका यहाँ यहूदियों से संबंध हुआ. ये प्रमाण हमें कम ही मिलते हैं.
R-M124 जीन के अशकेनाजी यहूदियों में पहुंचने की दूसरी संभावना का संकेत हमें फर्डिनन्ड हेनरबिखलर के अध्यनन से मिलता है. इनका परचा आप यहाँ देख सकते हैं इन्होंने इराक में खुर्दो के जीन का अध्ययन किया है. इन्होंने बताया है कि पुरातन इराक में “उमन मंडा” नाम के लोगों का विवरण 21वीं सदी ईसापूर्व से लेकर 5वीं सदी ईसापूर्व के बीच मिलता है. हेनरबिखलर ने संभावना जतायी है यह शब्द “आर्मी ट्रूप्स,” “सिपही” अथवा “किसी दूर के इलाके में पहाड़ी क्षेत्र:” को इंगित कर सकता है. यह आखरी संभावना हमें भारत की तरफ ले जाती है क्योंकि भारत का खैबर पास या पाकिस्तान का सिंधु घाटी सभ्यता का इलाका इराक के पूर्व दूर में पड़ता है. उन्होंने यह भी बताया है कि “उमन मंडा” शब्द 18वीं और 17वीं सदी ईसापूर्व में यहूदियों के लिए उपयोग किया जाता था. इसलिए उमन मंडा का संबंध एक तरफ पूर्वी क्षेत्र से और दूसरी तरफ यहूदियों से हमें मिल रहा है. इनके द्वारा एक चित्र दिया गया है जो आप यहां देख सकते हैं.
3500 ईसा पूर्व के समय उत्तरी भारत से पश्चिम की ओर पलायन हुआ था जो एक्सोडस का हो सकता है.
इसमें बताया गया है कि आज से लगभग 3500 वर्ष पूर्व (अथवा 1500 वर्ष ईसापूर्व) अफ़ग़ानिस्तान से पश्चिम को कुछ लोगों पलायन हुआ था. ये लोग भारतीय हो सकते हैं. इसलिए संभावना बनती है कि R-M124 जीन भारत के यादवों में था, इन यादवों के ही एक घटक को भारत से लेकर मूसा इजराइल तक पलायन किए थे. ये ही उम्मन मुंडा थे. यदि ऐसा है तो कई बातें सही बैठ जाती है.
सिंधु घाटी से R-M124 जीन पूरब में उत्तर प्रदेश और पश्चिम में इजराइल को गया हो सकता है?
1] 1500 ईसापूर्व एक्सोडस हुआ और उसी समय फर्डिनन्ड हेनरबिखलर के अनुसार कुछ लोग भारत से पश्चिम को पलायन किए.
2] स्टीव वाईत्ज़जमैन के अनुसार आरोन के वंशजों के यहूदी पुजारी बनाने की परंपरा 1500 इसा पूर्व स्थापित हुई थी जिस समय ये लोग सिंधु घाटी से निकलकर इजराइल को गए.
3] नेशनल ज्योग्राफिक सोसायटी एवं संघमित्र साहू के अनुसार R-M124 जीन अशकेनाज़ी यहूदियों और भारत मे पाया जाता है.
4] फर्डिनन्ड हेनरबिखलर के अनुसार उम्मन मुंडा का सम्बन्ध एक तरफ सिन्धु घाटी और दूसरी तरफ यहूदियों से मिलता है.
इसलिए संभव है कि 1500 ईसापूर्व यादवों का एक घटक सिंधु घाटी सभ्यता से निकलकर पश्चिम एशिया को गया. यह अपने साथ R-M124 जीन लेकर गए. वहां से यह जीन अशकेनाजी यहूदियों में पहुंचा. साथ-साथ सिंधु घाटी के पतन के बाद यही यादव लोग पूर्व को फैले और आज उन्हीं के वंशज हमें पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार और बंगाल में मिलते हैं. इस प्रकार R-M124 जीन से हमे भारत के यादवों और यहूदियों का संबंध भी मिल जाता है. अतः हमे विचार करना चाहिए कि एक्सोडस के समय जिन लोगो को मूसा इजराइल ले गए थे वे कहीं भारत के यादवों का एक घटक तो नहीं था?
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